अमेरिका पिछले कुछ महीनों से भारत के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर लगातार दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित उनके सहयोगी लोगों और अधिकारियों की ओर से भी भारत के लिए बेहद कड़वे शब्द आते रहे हैं। ट्रंप लगातार कभी नरमी और कभी सख्ती वाले लहजे के साथ भारत के साथ अपनी शर्तों पर ट्रेड डील के लिए दबाव बनाना जारी रखे हुए हैं।
दूसरी ओर अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने एक बार फिर भारत के लिए कड़े शब्दों का इस्तेमाल करते हुए हमला बोला है। इस बार उन्होंने अमेरिकी मक्के को मुद्दा बनाया है। कुछ दिन पहले लुटनिक ने ही ये बयान दिया था कि भारत दो महीने में माफी मांगेगा और ट्रंप के साथ समझौता करने की कोशिश करेगा।
बहरहाल, लुटनिन के Axios को दिए एक ताजा इंटरव्यू में कहा, ‘भारत शेखी बघारता है कि उसके पास 1.4 अरब लोग हैं। 1.4 अरब लोग एक बुशल (माप की इकाई) अमेरिकी मक्का क्यों नहीं खरीदेंगे? क्या यह बात आपको बुरी नहीं लगती कि वे हमें सब कुछ बेचते हैं, और हमारा मक्का नहीं खरीदते। वे हर चीज पर टैरिफ लगाते हैं।’
सवाल है कि आखिर भारत-अमेरिका के व्यापारिक संबंधों में मक्के का जिक्र कैसे आया। भारत आखिर क्यों अमेरिका में उगाए गए मक्का को नहीं लेना चाहता और वॉशिंगटन नई दिल्ली पर इसे लेने के लिए क्यों दबाव बना रहा है? आईए सभी पहलु को समझने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले ये जानते हैं कि हॉवर्ड लुटनिक ने मक्कों का जिक्र करते हुए क्या कहा?
भारत-अमेरिका के बीच मक्के पर लुटनिक ने क्या कहा?
इंटरव्यू में लुटनिक से पूछा गया कि अमेरिका मौजूदा समय में भारत, कनाडा और ब्राजील जैसे अहम सहयोगियों के साथ अपने रिश्तों को इन देशों पर लगाए गए टैरिफ के जरिए प्रभावित कर रहा है? इस पर अमेरिकी अधिकारी ने कहा, ‘ये रिश्ते एकतरफा हैं, वे हमें बेचते हैं और हमारा फायदा उठाते हैं। वे हमें अपनी अर्थव्यवस्था से दूर रखते हैं, और हमें बेचते हैं जबकि हमने उनके आने और फायदा उठाने के लिए अपने बाजार पूरी तरह खुले रखे हैं।’ उन्होंने आगे कहा, ‘राष्ट्रपति इसे कहते हैं, ‘निष्पक्ष और पारस्परिक व्यापार’।
लुटनिक ने आगे सवाल किया कि अपनी विशाल आबादी के बावजूद भारत अमेरिका से न्यूनतम मात्रा में भी अमेरिकी मक्का क्यों नहीं आयात करता, जबकि वो हमे बहुत कुछ बेचता है। लुटनिक ने कहा, ‘भारत शेखी बघारता है कि उसके पास 1.4 अरब लोग हैं। 1.4 अरब लोग एक बुशल अमेरिकी मक्का क्यों नहीं खरीदेंगे? क्या यह बात आपको बुरी नहीं लगती कि वे हमें सब कुछ बेचते हैं और हमारा मक्का नहीं खरीदते? वे हर चीज पर टैरिफ लगाते हैं।’
अमेरिकी वाणिज्य सचिव ने आगे कहा, ‘हमें सालों से हुई गलतियों को सुधारना है, इसलिए हम चाहते हैं कि जब तक हम इसे ठीक नहीं कर लेते, तब तक टैरिफ दूसरी दिशा में रहे।’
उन्होंने कहा, ‘यही राष्ट्रपति का मॉडल है, और या तो आप इसे स्वीकार करें या फिर आपको दुनिया के सबसे बड़े उपभोक्ता के साथ व्यापार करने में मुश्किल होगी।’
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है जब लुटनिक भारत की व्यापार नीतियों पर कटाक्ष कर रहे हैं। इस महीने की शुरुआत में ट्रंप के इस अधिकारी ने कहा था कि नई दिल्ली कुछ ही महीनों में वाशिंगटन के साथ व्यापार समझौता करने के लिए वापस आएगा। ब्लूमबर्ग से बात करते हुए उन्होंने कहा था, ‘मुझे लगता है, हाँ, एक या दो महीने में, भारत बातचीत की मेज पर होगा और वे माफी मांगेंगे और डोनाल्ड ट्रंप के साथ समझौता करने की कोशिश करेंगे।’
भारत क्यों नहीं चाहता अमेरिकी कॉर्न?
भारत और अमेरिकी मक्के के बारे में लुटनिक की ताजा टिप्पणी दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता के बीच आई है। दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते की बातचीत के दौरान भी मक्का एक अहम मुद्दा रहा है।
नई दिल्ली ने अमेरिकी मक्के के लिए भारतीय बाजार में पहुँच की वॉशिंगटन की माँग को मानने से इनकार किया है और कहा है कि वह आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) किस्म के आयात की अनुमति नहीं देना चाहता और ‘सिद्धांत के आधार पर’ इस संबंध में समझौता नहीं करना चाहता।
दरअसल, मक्के के मामले में भारत एक तरह से आत्मनिर्भर है। भारत दुनिया में मक्के का पाँचवाँ सबसे बड़ा उत्पादक है और यहां इसे छोटे किसान उगाते हैं, जिन्हें जाहिर तौर पर एक संरक्षण की आवश्यकता है। दूसरी ओर अमेरिका में मक्के का उत्पादन बड़े पैमाने पर ज्यादातर बड़े कॉर्पोरेट फार्मों द्वारा किया जाता है। इसलिए भारत का कहना है कि वह अपने किसानों के हितों की रक्षा करना चाहता है और अमेरिकी मक्के से परहेज करेगा।

यह भी एक तथ्य है कि अमेरिका में उगाया जाने वाला अधिकांश मक्के का उत्पादन आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) होता है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले साल अमेरिका में मक्के की कुल बुवाई के 94 प्रतिशत क्षेत्र में आनुवंशिक रूप से संशोधित (जीएम) किस्में उगाई गई थीं। हालाँकि, भारत जीएम अनाज- मसलन दालें, तिलहन, फल और इसी तरह के खाद्य/चारा उत्पादों के आयात की अनुमति नहीं देता है।
वैसे, भारत और अमेरिका के बीच पहले हुई एक बातचीत के दौरान ईंधन इथेनॉल बनाने के लिए केवल फीडस्टॉक के रूप में अमेरिकी जीएम मक्के के आयात की अनुमति देने का प्रस्ताव रखा गया था।
हालांकि, बाद में भारत ने भी इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि किसानों का कहना है कि अगर पशु आहार के लिए भी जीएम मक्के के आयात को अनुमति दी जाती है, तो इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को भारतीय कृषि में दाखिल होने का एक रास्ता मिल जाएगा। इससे छोटे किसान प्रभावित होंगे। उन्हें महंगे, पेटेंट वाले बीजों पर निर्भर रहना पड़ेगा। बीज संरक्षण की सदियों पुरानी प्रथा नष्ट होगी, और बहुत कुछ खेतों से हटकर बड़ी कंपनियों के बोर्डरूम में चली जाएगी।
इसके अलावा भारत में चीनी मिलें भी इथेनॉल के लिए जीएम मक्का के इस्तेमाल को लेकर आशंकित हैं। आयातित जीएम मक्के को भारत में अपनाने की प्रक्रिया शुरू होती है तो जाहिर तौर पर इथेनॉल-मिश्रित पेट्रोल (ईबीपी) कार्यक्रम में गन्ने के इस्तेमाल को और हाशिए पर धकेल दिया जाएगा।
भारत पर मक्के के लिए इतना दबाव क्यों बना रहा अमेरिका?
सवाल ये भी उठ रहे हैं कि आखिर अमेरिका मक्के को लेकर भारत पर क्यों दबाव बढ़ा रहा है। जानकार इसमें एक एंगल चीन का भी बताते हैं। वाशिंगटन के साथ ट्रेड शुरू होने के बाद से ही बीजिंग ने दरअसल अमेरिकी मक्के से दूरी बना रहा है। Nikkei Asia की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण से चार दिन पहले 16 जनवरी से अमेरिकी मक्के और सोयाबीन का कोई ऑर्डर नहीं दिया है।
समाचार एजेंसी रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, 2020-2021 में अमेरिका के मक्का निर्यात का रिकॉर्ड 31 प्रतिशत चीन को गया था। लेकिन 2022-23 तक यह घटकर 18 प्रतिशत रह गया, और हाल ही में 2023-24 सीजन में यह छह प्रतिशत से भी नीचे चला गया। इसके विपरीत, कैलेंडर वर्ष 2022 में ब्राजील से चीन में मक्का निर्यात तीन प्रतिशत से भी कम था। पिछले साल यह हिस्सा बढ़कर 29 प्रतिशत हो गया।
अमेरिका ऐसे में अब भारत में मक्के को लेकर एक बड़ा संभावित बाजार देख रहा है। भारत की घरेलू मक्के की खपत 2022-23 में 34.7 मिलियन टन (एमटी) से बढ़कर 2040 में 98 मिलियन टन और 2050 में 200.2 मिलियन टन होने की उम्मीद है। ऐसे में इस माँग को पूरा करने के लिए भारत को क्रमशः 46 मिलियन टन और 134 मिलियन टन मक्के का आयात करना होगा। अमेरिका संभवत: चाहता है कि किसी और देश से पहले वो इस मांग को पूरा करने की संभावना को भारत में तलाशे।