Homeविचार-विमर्शजब फुटबॉल के मैदान में जलवे बिखेरते थे बीरेन सिंह

जब फुटबॉल के मैदान में जलवे बिखेरते थे बीरेन सिंह

जातीय हिंसा से जल रहे मणिपुर में हालात सामान्य कर पाने में नाकाम रहने के बाद मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उनके इस्तीफे दिल्ली और देश के नामवर फुटबॉल खिलाड़ी और प्रेमी निराश हैं। वे बीरेन सिंह को एक अलग तरह से जानते हैं। दरअसल बीरेन सिंह राजधानी के अंबेडकर स्टेडियम में 1980 के दशक में सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की फुटबॉल टीम की तरफ से डूरंड और डीसीएम फुटबॉल चैंपियनशिप में बार-बार खेलने आते थे। बीरेन सिंह फुल बैक की पोजीशन पर खेलते थे। बीरेन सिंह के लिए 1981 का डूरंड कप का फाइनल मैच यादगार रहा था। फाइनल मैच बीएसएफ और जेसीटी मिल्स की टीमों के बीच खेला गया था। फाइनल मैच को देखने के लिए देश के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी भी पधारे थे। पंजाब की टीमों को देखने के लिए दिल्ली के दर्शक जान निसार करते थे। उस कांटे के फाइनल में जीत बीरेन सिंह की टीम की हुई थी।

किससे सीखी थीं फुटबॉल की बारीकियों को

बीरेन सिंह ने बीएसएफ में दिल्ली के मशहूर फुटबॉलर सुखपाल सिंह बिष्ट की कोचिंग में फुटबॉल की बारीकियों को सीखा था। मणिपुर के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे बीरेन सिंह जब बीएसएफ, जालंधर से खेल रहे थे तब उस टीम के कोच सुखपाल सिंह बिष्ट थे। दिल्ली यूनिवर्सिटी के किरोड़ीमल कॉलेज और राउज एवेन्यू के सर्वोदय विद्यालय में पढ़े सुखपाल बिष्ट बीएसएफ की फुटबॉल टीम के कप्तान भी रहे।

बीरेन सिंह उस दौर में बीएसएफ की टीम में थे जब उसकी फुटबॉल टीम में रक्षा पंक्ति के खिलाड़ी ‘चक दे, और ‘लपेट दे’ जैसे संबोधनों से प्रतिद्वंद्वी फारवर्ड खिलाड़ियों में दहशत फैलाते थे। इन आक्रांताओं में गठीले बदन वाले बीरेन सिंह भी थे। वे अपनी टीम की दीवार के रूप में जाने जाते थे। बीरेन सिंह बीएसएफ टीम के अहम मेंबर थे जब उनकी टीम ने मोहन बागान, ईस्ट बंगाल और जेसीटी को कई बार धूल चटाई और कई बड़े टूर्नामेंट जीते।  

हार नहीं मानते थे बीरेन सिंह

दिल्ली फुटबॉल को लंबे समय से कवर कर रहे पत्रकार राजेन्द्र सजवान कहते हैं कि बीरेन सिंह बीएसएफ की नौकरी छोड़कर वापस मणिपुर चले गए थे। फिर कुछ समय तक पत्रकार रहे और उसके बाद राजनीति में आ गए। पर उन्होंने अपने फुटबॉल के दौर के दोस्तों से संबंध बनाए रखे। वे दिल्ली आने पर सुखपाल सिंह बिष्ट और बाकी दोस्तों से बात करना नहीं भूलते। वे दिल्ली फुटबॉल के दो बेहद जाने-पहचाने हस्ताक्षरों क्रमश: अनादि बरूआ और गौस मोहम्मद के भी संपर्क में रहते हैं। रायसीना बंगाली स्कूल में पढ़े बरूआ भारतीय महिला फुटबॉल टीम के कोच रहे हैं। गौस मोहम्मद ने संतोष ट्रॉफी में दिल्ली में दिल्ली की नुमाइंदगी की। वे फुटबॉल कमेंटेटर भी हैं।

गौस मोहम्मद बता रहे थे कि बीरेन सिंह बहुत जुझारू खिलाड़ी थे। वे मैदान में लगातार सक्रिय रह करते थे। उनमें गजब का स्टैमिना था। कभी हार नहीं मानते थे। अगर बात फुटबॉल से हटकर करें तो वे जमीन से जुड़े इंसान हैं। अपने पुराने दोस्तों से मिलते-जुलते हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि वे फिर से अपने फुटबॉल के दिनों के मित्रों से मिलेंगे।

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