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केंद्र से तनातनी, तमिलनाडु की स्टालिन सरकार ने राज्य में ONGC कुंओं की खुदाई पर लगाई रोक

तमिलनाडु में हाइड्रोकार्बन परियोजना को लेकर पहले SEIAA ने ONGC को कुंओं की खुदाई के लिए अनुमति दी और बाद में सरकार ने इस पर रोक लगाने का फैसला किया।

चेन्नईः तमिलनाडु सरकार ने यह संकेत दिया है कि यह तेल और प्राकृतिक गैस (ONGC) के कुंओं की खुदाई के लिए पर्यावरणीय मंजूरी रद्द करने के लिए कदम उठाएगी। सरकार यह कदम राननाथपुरम जिले के 20 कुंओं के लिए उठाया।

सरकार ये कदम राजनैतिक दलों, कार्यकर्ताओं और किसानों के विरोध के बाद उठाया। विरोध में इन लोगों ने पारिस्थितिकी विनाश और पूर्व में किए गए वादों के साथ विश्वासघात की चेतावनी दी थी।

SEIAA ने दी थी मंजूरी

दरअसल केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के अधीन आने वाले राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण (SEIAA) द्वारा परियोजना के लिए ऑनलाइन स्वीकृति जारी करने के कुछ ही घंटों बाद लिया गया। 11 मार्च को जारी की गई इस अनुमति के बाद ओएनजीसी को रामनाद उप-बेसिन में 1,403 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में 2,000 से 3,000 मीटर की गहराई तक कुएं खोदने की अनुमति मिल गई है। यह पारिस्थितिकीय रूप से संवेदनशील मन्नार समुद्री राष्ट्रीय उद्यान की खाड़ी और कई पक्षी अभ्यारण्यों के पास है। इनमें से प्रत्येक कुएं की खुदाई में चार महीने का समय लगना था।

इस कदम से राजनैतिक विवाद हो गया। विपक्षी दलों ने सत्तारूढ़ डीएमके पार्टी पर कपट का आरोप लगाया और सहयोगी दल इससे दूरी बनाने लगे। इसके बाद 24 अगस्त (रविवार) को वित्त एवं पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्री थंगम थेन्नारासु ने कहा है कि सीएम स्टालिन ने राज्य में कहीं भी हाइड्रोकार्बन अन्वेषण के खिलाफ “दृढ़ नीतिगत रुख” अपनाया है।

उन्होंने कहा कि SEIAA से उनका फैसला वापस लेने के लिए कहा जाएगा। उन्होंने कहा “किसानों और आम जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए तमिलनाडु सरकार न तो अभी और न ही भविष्य में ऐसी परियोजनाओं की अनुमति देगी।”

तमिलनाडु राज्य में संवेदनशीलता को करता है रेखांकित

यह विवाद तमिलनाडु में हाइड्रोकार्बन परियोजनाओं को लेकर व्याप्त संवेदनशीलता को रेखांकित करता है। यहां पर कावेरी डेल्टा में ड्रिलिंग के पिछले प्रयासों ने किसानों के विरोध को भड़काया और राज्य व केंद्र दोनों सरकारों को पीछे हटने पर मजबूर किया था। ऐसे में विधानसभा चुनाव 2026 से पहले इसे अनुमति देना और फिर वापस लेना विपक्षी दलों के लिए मुद्दा बन गया है। विकास तथा लोकलुभावन पर्यावरणवाद के बीच डीएमके के अस्थिर संतुलन की याद दिलाता है।

डीएमके पार्टी की ही सहयोगी पार्टी एमडीएमके के महासचिव वाइको भी शामिल थे। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि इससे राज्य के मछुआरों की आजीविका खतरे में पड़ जाएगी। उन्होंने कहा, “कंपनियाँ तेल और गैस परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की कोशिश करती रहती हैं, और केंद्र नीलामी की मंजूरी देता रहता है। यह मंजूरी पर्यावरण को तबाह कर देगी और इसे तुरंत वापस लिया जाना चाहिए।”

वहीं, एक अन्य क्षेत्रीय पार्टी पीएमके ने डीएमके पर विश्वासघात का आरोप लगाया। पार्टी मुखिया अंबुमणि रामदास ने इस मंजूरी को “चौंकाने वाला” बताया और यह भी आरोप लगाया कि इससे कावेरी डेल्टा और तटीय जिले रेगिस्तान में बदल जाएंगे। उन्होंने कहा, “ओएनजीसी के सभी हाइड्रोकार्बन कुओं की खुदाई लगभग 3,000 फीट तक की जाएगी। हाइड्रोलिक फ्रैक्चरिंग तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा, जिससे भूकंप का ख़तरा पैदा होगा और भूजल समाप्त हो जाएगा। रामनाथपुरम रेगिस्तान बन जाएगा।”

इस दौरान उन्होंने 2010 में डीएमके सरकार के उस फैसले का उदाहरण दिया जिसमें डेल्टा में मेथेन गैस की खोज की अनुमति दी गई थी, इसे जनविरोध के बाद हटा लिया गया था।

इसी तरह एएमएमके और एमएमके पार्टियों के नेताओं ने भी डीएमके पर इस फैसले को लेकर निशाना साधा। इस बीच पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों ने भी ड्रिलिंग के खतरों के प्रति आगाह करते हुए कहा कि इससे जमीन का पानी कम होगा और खेती को नुकसान होगा।

अमरेन्द्र यादव
लखनऊ विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक करने के बाद जामिया मिल्लिया इस्लामिया से पत्रकारिता की पढ़ाई। जागरण न्यू मीडिया में बतौर कंटेंट राइटर काम करने के बाद 'बोले भारत' में कॉपी राइटर के रूप में कार्यरत...सीखना निरंतर जारी है...

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