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सृजन घोटाले में सुप्रीम कोर्ट से तीन आरोपियों को जमानत, ट्रायल में देरी को बताया वजह

करीब 1,000 करोड़ रुपये के बहुचर्चित सृजन घोटाले में फंसे तीन आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। मंगलवार को शीर्ष अदालत ने रजनी प्रिया और दो अन्य आरोपियों को अंतरिम जमानत दे दी। अदालत ने यह फैसला इस आधार पर सुनाया कि आरोपी लंबे समय से जेल में हैं और अब तक मुकदमे की सुनवाई (ट्रायल) शुरू नहीं हुई है।

न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि तीनों आरोपी सात दिनों के भीतर संबंधित ट्रायल कोर्ट के समक्ष पेश हों, जहां जमानत की शर्तें तय की जाएंगी। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रायल में अनुचित देरी के चलते यह राहत दी जा रही है और ट्रायल कोर्ट की प्रक्रिया से आरोपी को भागने नहीं दिया जाएगा।

क्या है सृजन घोटाला?

यह घोटाला बिहार के भागलपुर जिले के सबौर ब्लॉक स्थित सृजन महिला सहयोग समिति नामक एक एनजीओ से जुड़ा है। यह एनजीओ मूलतः महिलाओं को सिलाई-कढ़ाई, कम्प्यूटर और अन्य स्वरोजगार से जुड़े प्रशिक्षण देने का कार्य करता था। लेकिन 2004 से 2014 के बीच इस एनजीओ ने सरकारी विभागों के खातों से फर्जीवाड़ा कर करोड़ों रुपये अपने खातों में ट्रांसफर करा लिए।

घोटाले में आरोप है कि जिला प्रशासन, बैंक अधिकारियों और एनजीओ के पदाधिकारियों की मिलीभगत से सरकारी योजनाओं का पैसा गबन कर लिया गया। यह पैसा बैंक ऑफ बड़ौदा, इंडियन बैंक, बैंक ऑफ इंडिया जैसे कई बैंकों के जरिए जाली चेकों और फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से हड़पा गया।

कौन हैं रजनी प्रिया?

रजनी प्रिया घोटाले की एक प्रमुख आरोपी हैं, जिन्हें 10 अगस्त 2013 को साहिबाबाद (उत्तर प्रदेश) से गिरफ्तार किया गया था। पटना की एक अदालत ने उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किया था, क्योंकि वे लंबे समय से फरार चल रही थीं। गिरफ्तारी के बाद उन्हें सीबीआई के हवाले किया गया।

सीबीआई को क्यों सौंपी गई जांच?

बिहार सरकार ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए जांच की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंप दी थी। जांच में सामने आया कि सरकारी धन की हेराफेरी के लिए एनजीओ पदाधिकारियों ने बैंकों के अधिकारियों के साथ मिलकर जाली कागजात, फर्जी चेक और गलत बैंक एंट्री का इस्तेमाल किया।

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