नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार, 22 सितंबर को कहा कि मानहानि को अपराधमुक्त करने का समय आ गया है। सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी उसकी 2016 के एक फैसले के बदलाव का संकेत है जिसमें आपराधिक मानहानि कानूनों की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा गया था और कहा गया था कि प्रतिष्ठा का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और सम्मान के मौलिक अधिकार के अंतर्गत आता है।
साल 2016 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 499 को बरकरार रखा, जो उस समय से लागू थी। तब से भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 लागू हो गई जिसने भारतीय दंड संहिता का स्थान ले लिया।
ऐसे में मानहानि को लेकर एक नई बहस हो सकती है कि इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाए या फिर बाहर किया जाए?
मानहानि मामले में अदालत ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने आज यह सुझाव उस वक्त दिया जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने आपराधिक मानहानि मामले में ऑनलाइन प्रकाशन द वायर को मजिस्ट्रेट द्वारा जारी समन को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। इसे बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा।
आपराधिक मानहानि का मुकदमा द वायर और इसके रिपोर्टर के खिलाफ 2016 एक लेख के बाद दायर किया गया था। इस लेख में प्रोफेसर पर “जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय: अलगाववाद और आतंकवाद का अड्डा” शीर्षक से 200 पृष्ठ का विवादित डोजियर संकलित करने में शामिल होने का आरोप लगाया गया था जिसमें जेएनयू को “संगठित सेक्स रैकेट का अड्डा” कहा गया था।
यह भी पढ़ें – वाराणसी जा रहे विमान के कॉकपिट को जबरन खोलने की कोशिश, हाईजैक के डर से कैप्टन ने नहीं खोला दरवाजा, 9 गिरफ्तार
सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान जस्टिस एमएम सुंद्रेश ने कहा ” मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि इस सब को अपराधमुक्त किया जाए… ” द वायर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अदालत की इस टिप्पणी से सहमति जताते हुए सुधार की आवश्यकता का समर्थन जताया।
सोमवार को सुनवाई के दौरान सुंद्रेश की एकल पीठ ने मानहानि के बढ़ते मामलों पर न्यायालय की चिंता को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि यह सुब्रमण्यम स्वामी मामले में उठाए गए प्रश्न को फिर से खोलती है कि क्या किसी व्यक्ति द्वारा किसी व्यक्ति की मानहानि को अपराध माना जा सकता है क्योंकि यह किसी भी सार्वजनिक हित को पूरा नहीं करता है।
2016 में सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणी की थी?
भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 के तहत भारत में मानहानि एक आपराधिक कृत्य बना हुआ है, यह प्रावधान भारतीय दंड संहिता की धारा 499 का स्थान लेता है।
यह भी पढ़ें – कनाडाः पन्नू का करीबी खालिस्तानी आतंकी गिरफ्तार, अजीत डोभाल की भूमिका की क्यों रही चर्चा?
साल 2016 में सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता को बरकरार रखा। अदालत ने फैसला सुनाया कि यह अनुच्छेद 19 के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक उचित प्रतिबंध के रूप में काम करता है और जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का मौलिक पहलू है।