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‘तमिलनाडु के 10 विधेयकों पर राष्ट्रपति की कार्रवाई भी गैरकानूनी’; सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों से जुड़े एक मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित और राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर अब तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए। यह पहली बार है जब देश की सर्वोच्च अदालत ने राष्ट्रपति के लिए एक स्पष्ट समय-सीमा तय की है। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने 8 अप्रैल को दिए गए अपने निर्णय को सार्वजनिक करते हुए कहा कि राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने में यदि तीन महीने से अधिक का समय लगता है तो “उचित कारण बताना और राज्य को सूचित करना” अनिवार्य होगा।

संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या

जस्टिस जेपी पारदीवाला व जस्टिस आर महादेवन की पीठ की ओर से तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि मामले में आठ अप्रैल को सुनाए फैसले को चौथे दिन सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर शुक्रवार रात 10:54 बजे अपलोड किया गया। संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या करते हुए पीठ ने कहा, राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए सुरक्षित नहीं रख सकते हैं, जब उसे विधानसभा की ओर से दोबारा पारित कर दिया गया हो, भले ही राज्यपाल ने पहले चरण में अपनी स्वीकृति रोक ली थी।

पीठ ने 415 पेज के अपने फैसले में स्पष्ट कहा, राज्यपाल डॉ. रवि का 10 विधेयकों को रोकने का फैसला अवैध था। राष्ट्रपति की ओर से 10 विधेयकों के संबंध में उठाए गए कदम भी कानून के मुताबिक वैध नहीं हैं। पीठ ने कहा, जब ये 10 विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद दूसरी बार राज्यपाल के समक्ष पेश किए गए, तो इन विधेयकों को राज्यपाल से स्वीकृत माना जाए। शीर्ष अदालत ने अपनी रजिस्ट्री को इस फैसले की प्रति सभी हाईकोर्ट और सभी राज्यों के राज्यपालों के प्रधान सचिव को भेजने के निर्देश दिए।

अनुच्छेद 200 में राज्यपाल के पास सिर्फ तीन विकल्प

पीठ ने कहा, विधानसभा से पारित होने के बाद विधेयक राज्यपाल के समक्ष पेश किए जाने पर राज्यपाल के पास अनुच्छेद 200 के तहत तीन विकल्प होंगे। पहला इसे स्वीकृति दें। दूसरा स्वीकृति रोकें और तीसरा राष्ट्रपति के विचार के लिए विधेयक को सुरक्षित रख लें।

पीठ ने कहा कि जहां राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ सुरक्षित रखते हैं और राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति नहीं देते, वहां राज्य सरकार को शीर्ष अदालत में जाने का अधिकार होगा। जब राष्ट्रपति अनुच्छेद 201 के तहत स्वीकृति के लिए उनके समक्ष किसी विधेयक पर निर्धारित समयसीमा के भीतर निर्णय नहीं लेते, तो भी राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट से परमादेश रिट की मांग करने का अधिकार होगा।

विधेयक दोबारा पारित हुआ तो एक माह में देनी होगी मंजूरी

अनुच्छेद 200 में राज्यपाल के लिए समय सीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन कहा गया है कि वह जितनी जल्द हो सके फैसला लेंगे। विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे जाने की स्थिति में, राज्यपाल से अपेक्षा की जाती है कि वह अधिकतम एक महीने में सहमति देंगे। मंजूरी नहीं देने पर संदेश के साथ अधिकतम तीन माह के भीतर उसे वापस करना होगा। विधानमंडल विधेयक दोबारा पारित कर भेजता है तो राज्यपाल को एक माह में स्वीकृति देनी होगी। 

कोर्ट ने संविधान के तहत राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों के प्रयोग की व्याख्या की

शीर्ष अदालत ने फैसले में संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल को मिली शक्तियों और अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति को प्राप्त शक्तियों के प्रयोग की न्यायिक समीक्षा भी की। पीठ ने कहा, जहां राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के विपरीत किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ अपने विवेकानुसार सुरक्षित रखते हैं, वहां राज्य सरकार ऐसी कार्रवाई को हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकती है।

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