Friday, October 10, 2025
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Parkinson Disease: भारत में तेजी से पैर पसार रहा पार्किंसन, 50 से कम उम्र लोगों को बना रहा शिकार

Parkinson Disease: बढ़ती उम्र को अब तक पार्किंसन रोग का एक प्रमुख कारण माना जा रहा था। लेकिन अब एक नई स्टडी में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने खुलासा किया है कि 50 वर्ष से कम उम्र के लोगों में भी ये बीमारी हो सकती है। उन्होंने इस पर चिंता भी व्यक्त की है।

पार्किंसनिज्‍म एंड रिलेटेड डिसऑर्डर जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में पार्किंसंन रोग तेजी से पांव पसार रहा है। अब यह बाकी देशों की तुलना में 10 साल पहले हो रहा है।

क्या है पार्किंसन बीमारी (Parkinson’s Disease)

पार्किंसन एक दिमागी बीमारी होता है जिसमें मरीज की स्थिति धीरे-धीरे बिगड़ती चली जाती है। जैसे-जैसे यह रोग बढ़ता है पीड़ित व्यक्ति के लिए अपनी शारीरिक गतिविधियों पर नियंत्रण बनाए रखना मुश्किल होता जाता है। उसे कंपन और मांसपेशियों में अकड़न होने जैसी दिक्कतें होती हैं। यह मस्तिष्क में डोपामाइन नामक एक रासायनिक संदेशवाहक (neurotransmitter) की कमी के कारण होता है।

पार्किंसन पर नए शोध में क्या कहा गया?

भाईलाल अमीन जनरल हॉस्पिटल वडोदरा की कंसल्टेंट न्यूरो-फिजिशियन डॉ. आश्का पोंडा ने आईएएनएस को बताया, ”पहले ऐसी धारणा थी कि पार्किंसन रोग मुख्य रूप से उम्र दराज व्यक्तियों को प्रभावित करता है। लेकिन नए शोध से यह बात सामने आई है कि यह कम उम्र के लोगों को भी अपनी चपेट में ले रहा है। पार्किंसन के मामलों में हालिया वृद्धि से यह पता चला है कि इस रोग के लक्षण 50 वर्ष की आयु से पहले देखे जा रहे हैं।”

पार्किंसन के लिए जिम्मेदार कारक (Factors responsible for Parkinson’s)

स्टडी में पार्किंसन के लिए पर्यावरण, जेनेटिक्स और लाइफस्टाइल को मुख्य रूप से दोषी ठहराया गया है। डॉक्टर ने कहा, “कीटनाशकों के संपर्क में आना, वायु प्रदूषण और खान-पान की आदतें जैसे कारक आनुवांशिक संवेदनशीलता के साथ मिलकर रोग को बढ़ाते हैं।”

पार्किंसन रोग के लक्षण (Parkinson’s Disease Symptoms)

पार्किंसन रोग के लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं। लक्षणों में कम गतिशीलता, स्टिफनेस, कंपकंपी और संतुलन का बिगड़ना है। पार्किंसन दैनिक गतिविधियों और गतिशीलता को काफी हद तक बाधित कर सकता है, जिससे परेशानी हो सकती है। अन्य लक्षणों की बात करें तो पीड़ित बोलने-लिखने में कठिनाई महसूस करता है। निगलने में परेशानी के साथ मनोदशा में बदलाव, नींद की समस्याएं, याददाश्त में कमी, और सूंघने की क्षमता में कमी जैसे लक्षण सामने आने लगते हैं।

पार्किंसन कम उम्र के लोगों को बना रहा शिकार

डॉ. आशका ने कहा, “पार्किंसन के रोगियों का एक बड़ा हिस्सा अब कम उम्र के वर्ग में आता है, इसलिए यह जानना जरूरी है कि यह तंत्रिका संबंधी विकार केवल उम्र के आधार पर भेदभाव नहीं करता। इसके बजाय, आनुवंशिक प्रवृत्तियों, पर्यावरणीय जोखिमों और दूसरी बिमारियों का होना पार्किंसंस रोग की जटिलता को रेखांकित करता है।”

अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में न्यूरोलॉजी और स्ट्रोक मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय पांडे ने कहा, “पार्किंसंस रोग का शीघ्र पता लगाना और इसका प्रबंधन रोग की प्रगति को धीमा कर सकता है जिससे रोगी के जीवन को थोड़ा बेहतर बनाया जा सकता है।”

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