इस्लामाबाद: पाकिस्तान ने एक बड़े नीतिगत बदलाव के तहत कहा है कि अफगान तालिबान शासन वैध नहीं है। यह 2021 में पाकिस्तान के पहले के रुख से बिल्कुल उलट है। दरअसल काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद इस शास का समर्थन करने वाले पहले देशों में पाकिस्तान भी शामिल था। सूत्रों के अनुसार तालिबान और पाकिस्तान के बीच जारी तनाव के बीच इस्लामाबाद का ताजा फैसला अब स्पष्ट संकेत दे रहा है कि दोनों पड़ोसियों के बीच कभी घनिष्ठ रहे संबंधों में अब साफ तौर पर दरार आ गई है।
एक औपचारिक बयान में पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने 11-12 अक्टूबर की रात को पाक-अफगान सीमा पर ‘अफगान तालिबान, आतंकवादियों और चरमपंथियों द्वारा किए गए अनुचित आक्रमण’ पर गहरी चिंता व्यक्त की। बयान में कहा गया है कि हमलों का उद्देश्य ‘पाक-अफगान सीमा को अस्थिर करना’ था और ‘दो भाईचारे वाले देशों’ के बीच शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक संबंधों की भावना का उल्लंघन करना था।
पाकिस्तान ने दावा किया कि उसने ‘सीमा पर हमलों को प्रभावी ढंग से विफल’ करके, ‘तालिबानी बलों और उससे जुड़े ख्वारजियों’ को ‘भारी नुकसान’ पहुँचाकर अपने आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग किया। इस्लामाबाद ने जोर देकर कहा कि उसकी द्वारा लक्षित ढाँचों का इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ आतंकवादी हमलों की योजना बनाने आदि के लिए किया जा रहा था।
बयान में यह भी कहा गया है कि अतिरिक्त क्षति को रोकने और नागरिकों की सुरक्षा के लिए सभी संभव उपाय किए गए हैं। साथ ही यह भी दोहराया गया है कि ‘पाकिस्तान बातचीत और कूटनीति को महत्व देता है’ लेकिन वह अपने क्षेत्र और लोगों की सुरक्षा के लिए हर संभव उपाय करेगा। इसमें चेतावनी दी गई है कि ‘किसी भी और उकसावे का डटकर और मुंहतोड़ जवाब दिया जाएगा।’
मजबूरी में पाकिस्तान ने तालिबान की मान्यता को नकारा
न्यूज-18 की रिपोर्ट में भारतीय खुफिया सूत्रों के हवाले से कहा गया है कि पाकिस्तान द्वारा तालिबान से अचानक नाता तोड़ना नीति में कोई नैतिक या राजनीतिक बदलाव नहीं है, बल्कि मजबूरी में लिया गया फैसला है। पाकिस्तान का फैसला दरअसल तालिबान द्वारा उसकी बात नहीं मानना, सीमा पर हमलों और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) की बढ़ती हिंसा की प्रतिक्रिया है।
2021 में, काबुल के सेरेना होटल में तत्कालीन डीजी आईएसआई लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद की मौजूदगी तालिबान नेतृत्व पर पाकिस्तान के नियंत्रण का प्रतीक थी। चार साल बाद वह नियंत्रण खत्म होता दिख रहा है। इस्लामाबाद ने कथित तौर पर हिबतुल्लाह अखुंदजादा के प्रति वफादार कंधारी गुट और हक्कानी नेटवर्क, दोनों पर अपना प्रभाव खो दिया है।
ताजा घटनाक्रम पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रही रणनीति को भी झटका है, जिसके तहत वो अफगान शासन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ करने की कोशिशें करता रहा है। कभी भारत के खिलाफ एक अहम हथियार के रूप में देखा जाने वाला तालिबान अब पाकिस्तान के लिए ही दुश्मन बन गया है, और उसकी सीमाओं को चुनौती दे रहा है। तालिबानी शासन पाकिस्तान के पश्तून-बहुल कबायली क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा बन गया है।
पाकिस्तान-अफगानिस्तान की बढ़ती तल्खी
पाकिस्तान और तालिबानी शासन वाले अफगानिस्तान के बीच तल्खी कितनी बढ़ती जा रही है, इसका उदाहरण रविवार को भी नजर आया। अफगानिस्तान इस्लामिक अमीरात के प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने अपने एक बयान में शर्त रखी कि या तो पाक आईएसआईएस को देश निकाला दे या फिर उन्हें सौंप दे और अगर ऐसा नहीं किया गया तो काबुल उन्हें अपने तरीके से निपटा देगा।
मुजाहिद की इस धमकी के बाद पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने रविवार को दावा किया कि इस्लामाबाद ने सीमा पर इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान (आईईए) के ठिकानों पर “उचित रक्षात्मक हमले” किए हैं।
डार ने एक्स पर लिखा, ‘तालिबान (आईईए) सरकार द्वारा पाक-अफगान सीमा पर बिना उकसावे की गोलीबारी और छापे एक गंभीर उकसावे की कार्रवाई है। पाकिस्तान की उचित प्रतिक्रिया और हमले तालिबान (आईईए) के बुनियादी ढांचे के खिलाफ और अफगान धरती से सक्रिय फितना-ए-ख्वारिज जैसे आतंकवादी तत्वों को बेअसर करने के लिए हैं।’
इससे पहले मुजाहिद ने अफगानिस्तान की कार्रवाई को उचित ठहराते हुए कहा कि आईईए बलों ने रात भर ‘प्रतिशोध अभियान’ चलाया, जिसमें 58 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए, 30 घायल हुए, और 20 से अधिक सुरक्षा चौकियों पर कब्जा कर लिया गया। मुजाहिद ने कथित घुसपैठ के विरोध में काबुल में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल के आगामी दौरे को रद्द करने की भी घोषणा की।
काबुल में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने कहा कि पाकिस्तान नशीले पदार्थों की खेती में शामिल है और उसने आईएसआईएल संबद्ध (दाएश) नेटवर्कों को सुरक्षित पनाहगाह मुहैया कराई है, जिनका इस्तेमाल, अफगानिस्तान और उसके बाहर हमलों की योजना बनाने के लिए किया गया था।