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नरेंद्र मोदी पहली बार चलाएंगे गठबंधन सरकार, नीतीश और चंद्रबाबू नायडू को बांधे रखना क्यों मुश्किल है…दोनों ने क्या मांगे रखी हैं?

दिल्ली: लोकसभा चुनाव के नतीजे से साफ है कि नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। इससे पहले केवल जवाहरलाल नेहरू लगातार करीब 16 साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे हैं। इस लिहाज से यह भारत की राजनीतिक में ऐतिहासिक क्षण है। हालांकि, चुनावी नतीजों ने यह भी साफ कर दिया है कि पीएम मोदी के लिए तीसरा कार्यकाल आसान नहीं रहने वाला है। चूकी भाजपा बहुमत से दूर है तो ऐसे में उसे अपने सहयोगियों पर निर्भर रहना होगा। खासकर टीडीपी और जदयू की भूमिका अहम रहने वाली है। ऐसे में सवाल है कि क्या मोदी इस गठबंधन सरकार को सफलतापूर्व चला सकेंगे?

पहली बार गठबंधन सरकार चलाएंगे मोदी

नरेंद्र मोदी गुजरात के करीब 13 साल मुख्यमंत्री रहे। इसके बाद 2014 से 2014 के बीच वे प्रधानमंत्री रहे। इस दौरान उनकी पार्टी बहुमत में रही। जाहिर है पीएम मोदी बुलंद तरीके से सरकार के फैसलों को लेते रहे और उस पर आगे बढ़ते रहे। कभी किसी रोक-टोक या मान-मनौव्वल की परिस्थिति नहीं बनी। कोई सहयोगी किसी फैसले पर नाराज भी हुआ या एनडीए छोड़कर चला भी गया तो भाजपा के लिए दिक्कत नहीं होती थी।

अब हालांकि परिस्थिति बदली हुई है। एनडीए को 292 सीटों के साथ लोकसभा में बहुमत तो है लेकिन भाजपा की इसमें सीटें 240 ही हैं। लोकसभा में बहुमत के लिए 272 की जरूरत होती है। ऐसे में भाजपा के पास 32 सीटें कम हैं। एनडीए में भाजपा के बाद चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम (टीडीपी) और नीतीश कुमार की जदयू सबसे बड़ी पार्टियां हैं। टीडीपी को 16 और जदयू को 12 सीटें मिली हैं। इसके अलावा चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की पांच सीटें, शिवसेना की 7, जनसेना पार्टी की 2 सहित कुछ और छोटी पार्टियों की कुछ सीटें शामिल है। चूकी टीडीपी और जदयू एनडीए में भाजपा के बाद सबसे ज्यादा सीटें लाने वाली पार्टियां हैं, इसलिए सरकार चलाने के लिए इन्हें नजरअंदाज करना मुश्किल होगा।

नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू को बांधे रखना कितना मुश्किल?

दोनों पार्टियां पहले भी भाजपा की सहयोगी रही हैं लेकिन दोनों की नाराजगी और भाजपा को छोड़ कर जाने का भी इतिहास रहा है। ये भी स्पष्ट है कि कई मामलों पर भाजपा और मोदी की सोच से इनके विचार मेल नहीं खाते हैं। ऐसे में इन्हें बांधे रखना भाजपा के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। मसलन पूरे चुनाव में मुस्लिमों के आरक्षण के खिलाफ खुल कर प्रधानमंत्री मोदी बोलते रहे। वहीं, नायडू के बयान इससे उलट रहे। नायडू के 2018 में एनडीए से अलग होने की कहानी भी जगजाहिर है।

नीतीश कुमार के भी मुस्लिमों के मामले पर भाजपा से वैचारिक मतभेद हैं। 2014 के चुनाव से पहले जब मोदी को बतौर पीएम उम्मीदवार भाजपा की ओर से घोषित किया गया तब नीतीश एनडीए से अलग हो गए थे। बाद में गठबंधन और अलग होने का खेल और भी चला। जाति जनगणना भी ऐसा ही मसला है जिसके समर्थन में नीतीश खुल कर बोलते रहे हैं। बिहार में इसे अंजाम भी दिया गया। दूसरी ओर भाजपा विरोध करती रही है। कुल मिलाकर पीएम मोदी को नीतीश और चंद्रबाबू नायडू को बांधे रखने के लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

मोदी को समर्थन देने के बदले नीतीश कुमार की क्या मांगे हैं?

पहले नीतीश कुमार की बात करते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव-2029 में जदयू को 16 सीटें मिली थी। हालांकि भाजपा के पास खुद स्पष्ट बहुमत था इसलिए जदयू के पास बहुत गुंजाइश नहीं थी। जदयू को मोदी कैबिनेट में एक मंत्री पद मिला था। इस बार जदयू का महत्व काफी बढ़ गया है। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि नीतीश कुमार की पार्टी की नजर रेलवे, ग्रामीण विकास और जल शक्ति मंत्रालय पर है। इसके अलावा ट्रांसपोर्ट और कृषि भी दूसरे विकल्प हो सकते हैं।

एक जदयू नेता ने समाचार पत्र को बताया, ‘एनडीए सरकार में नीतीश के पास रेलवे, कृषि और परिवहन विभाग रहे हैं। हम चाहते हैं कि हमारे सांसद ऐसे विभाग लें जो राज्य के विकास में मदद कर सकें। घटते जल स्तर और बाढ़ की चुनौतियों के साथ-साथ जल संकट का सामना कर रहे बिहार के संदर्भ में जल शक्ति महत्वपूर्ण है। हम नदी परियोजनाओं को जोड़ने पर भी जोर दे सकते हैं।’

जदयू नेता ने आगे तर्क दिया, ‘ग्रामीण विकास मंत्रालय ग्रामीण बुनियादी ढांचे और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है और रेलवे मिलना निश्चित रूप से बिहार के लिए गर्व की बात होगी।’

इतना ही नहीं पार्टी नेताओं का कहना है कि जब एनडीए अगले साल बिहार में विधानसभा चुनाव लड़ेगा तो वे चाहते हैं कि नीतीश ही नेतृत्व करें। उन्होंने उन अटकलों को भी खारिज कर दिया कि राज्य में निकट भविष्य में नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है।

चंद्रबाबू नायडू को क्या चाहिए?

सूत्रों के अनुसार नायडू आंध्र प्रदेश के लिए विशेष राज्य का दर्जा चाहते हैं। साथ ही लोकसभा का स्पीकर पद और कैबिनेट में कुछ मंत्रालय चाहते हैं। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के अनुसार नायडू कैबिनेट में पार्टी के लिए पांच मंत्री पद चाहते हैं। इसमें संभवत: वित्त राज्य मंत्री का एक पद भी शामिल है। इसके अलावा पंचायती राज सहित स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़े मंत्रालय की मांग नायडू ने रखी है। वहीं, कर्नाटक की जेडीएस, जिसने दो सीटें जीती हैं, उसकी भी मांगे हैं। जेडीएस अपने नेता और सांसद एचडी कुमारस्वामी के लिए केंद्रीय मंत्री पद की मांग पर जोर दे सकती है और कृषि मंत्रालय चाहती है।

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