Friday, October 10, 2025
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मैसूर दशहरा उद्घाटन विवाद: SC ने लेखक बानू मुश्ताक की भागीदारी को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

याचिकाकर्ता गौरव ने तर्क दिया था कि उद्घाटन कार्यक्रम में देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में पूजा-अर्चना भी शामिल होती है और इसे किसी गैर-हिंदू से नहीं कराया जा सकता।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें कर्नाटक सरकार के फैसले पर रोक लगाने की मांग की गई थी। राज्य सरकार ने अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता बानू मुश्ताक को 22 सितंबर को मैसूरु दशहरा महोत्सव के उद्घाटन के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील एचएस गौरव से पूछा कि उन्होंने यह याचिका क्यों दायर की है। याचिकाकर्ता गौरव ने तर्क दिया था कि उद्घाटन कार्यक्रम में देवी चामुंडेश्वरी के मंदिर में पूजा-अर्चना भी शामिल होती है और इसे किसी गैर-हिंदू से नहीं कराया जा सकता।

गौरव ने तर्क दिया कि यह मुद्दा संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत उनके मुवक्किल के अधिकारों को प्रभावित करता है। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उनसे भारत की प्रस्तावना के बारे में पूछा। जब गौरव ने ‘धर्मनिरपेक्ष’ जवाब दिया, तो उन्होंने आगे कहा, ‘लेकिन इससे मेरे धार्मिक कार्यों में हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।’

याचिका खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

शीर्ष अदालत ने उनकी अपील खारिज करते हुए कहा, ‘यह एक राज्य का कार्यक्रम है… राज्य ए, बी और सी के बीच भेदभाव कैसे कर सकता है?’ कोर्ट ने यह भी याद दिलाया कि संविधान की प्रस्तावना ‘धर्मनिरपेक्षता’ पर जोर देती है।

इसपर गौरव ने तर्क दिया कि मंदिर के अंदर पूजा करना एक धार्मिक कार्य है, न कि धर्मनिरपेक्ष। उन्होंने दावा किया कि मुश्ताक की भागीदारी से लोगों की भावनाएं आहत होंगी, क्योंकि उन्होंने अतीत में हिंदू विरोधी बयान दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसे बयान दिए गए हैं जो हमारे धर्म के खिलाफ हैं। इन परिस्थितियों में, आप ऐसे लोगों को आमंत्रित नहीं कर सकते। एक व्यक्ति धर्मनिरपेक्षता का दावा करता है, और दूसरा हमारे खिलाफ पूरी तरह से विपरीत रुख अपनाता है।’

याचिकाकर्ता गौरव ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा अपनी याचिका खारिज किए जाने के बाद शीर्ष अदालत का रुख किया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि धार्मिक उत्सवों में अंतर-धार्मिक भागीदारी संविधान के खिलाफ नहीं है।

इससे पहले 15 सितंबर को, कर्नाटक उच्च न्यायालय की एक पीठ ने गौरव की याचिका सहित कई याचिकाओं को खारिज कर दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा था कि मुश्ताक एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं और इस मामले में संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत मान्यता प्राप्त किसी भी गारंटी का उल्लंघन नहीं होता है।

उच्च न्यायालय ने कहा, “यह निर्विवाद है कि उत्सव हर साल राज्य द्वारा आयोजित किए जाते हैं। और उद्घाटन समारोह के लिए एक प्रतिष्ठित व्यक्ति को बुलाया जाता है। अतीत में, इसमें वैज्ञानिक, शिक्षाविद, लेखक, स्वतंत्रता सेनानी शामिल रहे हैं। मुश्ताक एक प्रतिष्ठित लेखक और 2025 बुकर पुरस्कार विजेता हैं। वह एक वकील और सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं।”

उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि किसी विशेष धर्म का पालन करने वाले व्यक्ति का अन्य धर्मों के उत्सवों में भाग लेना भारत के संविधान के तहत उपलब्ध अधिकारों का उल्लंघन नहीं करता है।

गौरव ने अपनी याचिका में कहा था कि उच्च न्यायालय यह मानने में विफल रहा कि उद्घाटन की शुरुआत लाखों भक्तों की उपस्थिति में अनुष्ठान और धार्मिक भजन के प्रदर्शन से होती है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा उद्घाटन किसी अलग धर्म के व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो यह हिंदू उपासकों की धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन करता है।

गौरव ने यह भी कहा कि उच्च न्यायालय यह मानने में विफल रहा कि हालांकि राज्य सांस्कृतिक समारोहों का समर्थन कर सकता है, लेकिन यह किसी हिंदू त्योहार के अंतर्निहित धार्मिक चरित्र को बदल या कमजोर नहीं कर सकता है।

सरकार का रुख

कांग्रेस के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने दशहरा उत्सव का उद्घाटन बानू मुश्ताक से कराने के अपने रुख को दोहराया है। सरकार का कहना है कि दशहरा एक ‘नाडा हब्बा’ (राज्य का त्योहार) है, न कि केवल एक धार्मिक आयोजन। उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार ने कहा कि चामुंडी हिल्स सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं है, जिससे यह विवाद और बढ़ गया था।

राज्य सरकार के इस फैसले के बाद भाजपा के कई नेताओं ने मुश्ताक के चयन पर सवाल उठाए थे। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि, सांसद प्रताप सिम्हा और निष्कासित विधायक बसनगौड़ा आर. पाटिल (यत्नाल) ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा था कि वे मुश्ताक के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि उनके एक हिंदू देवी की पूजा करने के खिलाफ हैं।

प्रताप सिम्हा ने सोशल मीडिया पर कहा था कि मुश्ताक किसी कन्नड़ साहित्यिक सम्मेलन की अध्यक्ष बन सकती हैं, लेकिन एक हिंदू धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनना उनके लिए अनुचित है। उन्होंने एक वीडियो क्लिप साझा किया था जिसमें मुश्ताक को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कन्नड़ भाषा को एक धर्म के बराबर माना जाता है ताकि उन जैसे अल्पसंख्यकों को बाहर किया जा सके। सिम्हा ने पूछा था कि जो लेखिका कन्नड़ को दुनिया की देवी के रूप में स्वीकार नहीं करती”, वह देवी चामुंडेश्वरी की पूजा कैसे कर सकती हैं।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.in
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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