Thursday, October 9, 2025
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पुस्तक समीक्षा: अरुंधति ने ये ‘प्रेम गीत’, दर्द में डूब कर लिखा है!

‘मदर मेरी कम्स टू मी’ प्रकाशन के बाद से ही हिंदी साहित्य समाज में लगातार चर्चा में है। लेकिन यह चर्चा सामान्यतया किताब के आवरण और शीर्षक तक ही सीमित रही। निंदा और आरोप के हद तक पहुँच चुकी इस चर्चा के दौरान कुछ लोग यह भी भूल गये कि यहाँ ‘मदर मेरी’ से अरुंधति रॉय की माँ संदर्भित होती हैं, न कि ‘जीसस’ की मां। शुरुआत में अधिकांश चर्चाकारों को तो यह भी नहीं पता था कि इस पुस्तक का आवरण भी प्रयोगधर्मी है और यह उतना तक ही सीमित नहीं है जितना ऊपर से दिखता है। पुस्तक के भीतरी आवरण पर एक मॉथ यानी पतिंगा है। अरुंधति ने कई बार अपने हृदय में किसी ‘ब्लैक मॉथ’ के बैठे रहने की बात की है। काला पतिंगा यानी कृष्ण शलभ उनका पुराना बिम्ब है, जिसका उल्लेख उनकी किताब ‘गॉड ऑफ़ स्माल थिंग्स’ में भी है। यह भय का बिम्ब है। अकेले, असुरक्षित और अप्रासंगिक हो जाने के भय का। इस किताब पर बात करना कई अन्य सवालों से रूबरू होना भी है। मसलन यह उपन्यास है, संस्मरण है या फिर आत्ममकथा? यह एक राजनैतिक कथा है या प्रेम कथा? इस किताब पर केन्द्रित समरेन्द्र सिंह का यह समीक्षा-आलेख, ऐसे कई प्रश्नों से टकराता है, जो जितना सघन और आत्मीय है, उतना ही वस्तुपरक भी।

जमाने बाद कोई किताब पूरी पढ़ी। अपनी ही गिरफ्त से कुछ पलों के लिए खुद को बाहर निकाल लेना, चुरा लेना एक सुंदर अहसास है। ‘मदर मेरी कम्स टू मी’ के लिए अरुंधति रॉय को धन्यवाद! उन्होंने बड़ी प्यारी किताब लिखी है।

अरुंधति रॉय की इस किताब में प्रेजेंटेशन के लिहाज से कुछ कलात्मक प्रयोग है। फ्लैप आधा है। उस पर अरुंधति की तस्वीर है। वो बीड़ी पी रही हैं। तस्वीर ब्लैक एंड व्हाइट है। मगर अरुंधति की आंख में नमी देखी जा सकती है। साथ ही बीड़ी का सिरा लाल है। इससे एक रहस्य उत्पन्न होता है। जैसे वो किन्हीं ख्यालों में गुम हों। ये तस्वीर खूबसूरत है। आकर्षक है। जिसने भी ये तस्वीर खींची है, वो तारीफ के काबिल है।

फ्लैप के भीतर एक मॉथ (Moth) है। तितली नहीं है। मॉथ यानी पतंगा है। वो रोशनी के पीछे भागता है। आमतौर पर अंधेरे में निकलता है। मॉथ का जिक्र बार बार आता है। मुझे लगता है कि ये अरुंधति के भीतर के डर, असुरक्षा और संशय को प्रतिबिंबित करता है। किताब के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते, जब अरुंधति कामयाबी और पहचान हासिल कर लेती हैं तो उनका ये मॉथ पंख फैलाता है।

कवर के भीतर एक ही तस्वीर चार बार प्रिंट की गई है। इसमें अरुंधति मां और भाई के साथ हैं। ये उनके बचपन की तस्वीर है। पहला प्रिंट गाढ़ा है। दूसरा थोड़ा हल्का है और आखिरी बहुत हल्का है। कुछ कुछ साए जैसा। जैसे यादें समय के साथ धुंधली हो जाती हैं। जैसे अस्तित्व के अनगिनत आयाम वक्त के साथ गायब हो जाते हैं।

अरुंधति को भी ये अहसास है इसलिए उन्होंने इस किताब के बहाने उन स्मृतियों को जीवित रखने की कोशिश है। जिंदगी अतीत और वर्तमान में ही है। वक्त के साथ जो बहुत गाढ़े हों वैसे कुछ हादसे, कुछ घटनाएं, कुछ अहसास, कुछ भाव रह जाते हैं। ये हमारे जेहन और जिस्म दोनों पर दर्ज रहते हैं। अरुंधति ने इस किताब में अपनी मां को जीने की कोशिश की है। मां के बहाने खुद को जीने की कोशिश की है।

‘मदर मेरी कम्स टू मी’ में दो विद्रोही स्त्रियां हैं। एक वो खुद हैं और दूसरी उनकी मां मेरी रॉय है। किताब मां को समर्पित है, लेकिन कहानी उनकी अपनी है। इनके इर्द गिर्द कुछ और किरदार हैं। अरुंधति के मामा इसाक हैं। उनके भाई एलकेसी रॉय हैं। प्रेमी ‘जीजस क्राइस्ट’ हैं। लॉरी बेकर हैं। प्रदीप और संजय हैं। मिकी है। दूसरे कई लोग हैं।

इसमें और भी बहुत कुछ है। कश्मीर है। माओवादी हैं। संसद का आतंकी हमला है। नर्मदा बचाओ आंदोलन है। 1984 के दंगे हैं। गुजरात दंगे हैं। नरेंद्र मोदी हैं। क्रिश्चियन सोसायटी है। और फूलन देवी हैं। बहुत सारी राजनीति है।

मैं इन मसलों पर बात नहीं करूंगा। जिन्हें करना हो वे बेशक करें। इनमें कुछ भी नया नहीं है। अरुंधति के वही पुराने तर्क हैं। कुछ जायज हैं। कुछ नाजायज हैं। कुछ बच्चों जैसे मासूम तर्क हैं। राजनीति कुछ भी हो सकती है। मासूम नहीं हो सकती। बंदूक उठा कर निहत्थे लोगों को कत्ल करने वाले मासूम नहीं होते। चाहे वो आतंकवादी हो या फिर माओवादी। मैं और वो, मेरा और उनका – जैसे तर्कों के आधार पर मुल्कों की सीमा निर्धारित नहीं होती है।

इसलिए मैं इसके राजनीतिक पक्ष पर चर्चा नहीं करूंगा। मैं एक दूसरे पहलू पर बात करूंगा। ये पहलू है प्रेम का। संबंधों का। प्रेम सरल होता है। हमने इसे कठिन बना दिया है। जटिल बना दिया है। लेकिन अरुंधति ने इसकी कुछ गांठे खोली हैं। सरल बनाने की कोशिश की है। सहज बनाया है। इसके लिए पाठक उनके आभारी रहेंगे।

प्रेम खंडित नहीं करता। समग्रता में देखता है। आप किसी को खंडित करके उससे प्रेम नहीं कर सकते। फिर जो होगा, जो कुछ भी होगा – वो प्रेम नहीं होगा। अरुंधति ने प्रेम के इसी मायने को विस्तार दिया है। बताया है कि परफेक्ट, पूर्ण, आदर्श कोई भी नहीं है। न वो, न उनके आसपास मौजूद लोग, न मैं और न आप!

थोड़ी बहुत मिलावट सबमें है। हमारी आर्थिक सामाजिक स्थिति, हमारा धर्म, हमारा डर, हमारी असुरक्षा, हमारे आसपास की घटनाएं हमें गढ़ती हैं। इसलिए सबके कुछ गुनाह हैं। कोई पूर्णतः निर्दोष नहीं है। मगर सबके खाते में गुनाह होने का ये अर्थ भी नहीं कि सभी गुनहगार हों। कुछ ही मूलतः अपराधी होते हैं। बाकी तो जिंदगी हादसों से भरी हुई है। घटनाओं से भरी हुई है। हादसों के लिए, घटनाओं में किसी को अपराधी, किसी को पीड़ित क्या समझना? यदि समझना भी तो उनमें खुद को क्यों जकड़ना? क्यों ठहरना? माफ कर के आगे बढ़ जाना ही जिंदगी है। माफ नहीं कर सकते तो इग्नोर करके आगे बढ़िए। जहां इग्नोर भी नहीं कर सकते, वहां लड़ लीजिए। मगर रुकिए मत।

इसलिए बुकर पुरस्कार मिलने पर जब अरुंधति के पिता उनसे कहते हैं कि न्यू यॉर्क टाइम्स अरुंधती के बारे में उनका इंटरव्यू लेना चाहता है? तो अरुंधति कहती हैं – ‘सब कहिए, जो मन आए वो कहिए, मैं आप पर शर्मिंदा नहीं हूं।’ ये कमाल की बात है। जिस पिता के बगैर उनका बचपन बीता। और जवानी बीती। जो पिता शराबी है। बेपरवाह है। लापरवाह है। जिसने अपना कोई फर्ज, कोई धर्म नहीं निभाया, जो तरह तरह के बहाने बना कर पैसे मांगता है, उसे अरुंधति ने वैसे ही स्वीकार कर लिया। जीने का ये एक खूबसूरत सलीका है।

सब संवेदनशील हों, सब जिम्मेदार हों – ये जरूरी तो नहीं। जिंदगी में और संबंधों में खुद की मुक्ति के लिए दूसरों को भी मुक्त करना होगा। माफ करना होगा। कभी-कभी खुद को भी माफ करना होगा। खुद से प्यार करना होगा। वरना आगे बढ़ना संभव नहीं है। समय ठहरता नहीं है। आप ठहरेंगे तो भी वो गुजर जाएगा। आपको उसी लम्हे में, उसी पल में, उसी मुकाम पर छोड़ कर जिंदगी गुजर जाएगी।

इसलिए अरुंधति जब बीस साल बाद गोवा लौटती हैं तो अपने पुराने साथी जे सी से मिलती हैं। इस अहसास के साथ कि जिंदगी आगे बढ़ चुकी है और जेसी और उनके साथ बिताया समय उनकी जिंदगी का एक खूबसूरत पन्ना था। इस मुलाकात में कुछ सवाल तो हुए होंगे ही। जीवन के उनके इस अध्याय पर एक रिपोर्टर ने सवाल किया था कि How did he (JC) allow you to leave? अरुंधति ने उससे कहा था कि ये सवाल रीफ्रेज करें कि जेसी ने उनका दिल तोड़ा या उन्होंने जेसी का दिल तोड़ा। “But allow was not the best word to use with me.”

जब कोई संबंध तोड़ता है, किसी को छोड़ कर आगे बढ़ जाता है, तो कुछ सवाल शेष रह जाते हैं। वो सवाल उस मुलाकात में उठे जरूर होंगे। लेकिन अरुंधति उन सबको निजी बनाए रखती हैं। दोनों की दुनिया बदल चुकी थी।

अरुंधति बस इतना लिखती हैं कि जेसी ने खुद को गार्ड कर रखा था। एक दूरी बनी हुई थी। ये स्वभाविक है। बिछड़ने पर जमी बर्फ बहुत बार मिलने पर भी पिघलती नहीं है। बर्फ पिघलाना मकसद भी नहीं रहा होगा। मुझे लगता है कि अरुंधति खुद को माफ करने के लिए या फिर कुछ राहत बटोरने के लिए जेसी से मिलने गई होंगी। कई बार अतीत की गलतियों, गुनाहों और फैसलों से मानसिक तौर पर उबरने के लिए वर्तमान की नजर से देखना जरूरी होता है।

सब कुछ अनित्य है। और अगर इस अनित्य जीवन को खूबसूरत बनाना है तो प्रेम को स्थायी भाव बनाना होगा। प्रेम के अनेक रूप हैं। और उनके बगैर जिंदगी का कोई अर्थ नहीं। इसलिए प्रेम को सबसे अधिक अहमियत देनी होगी। अरुंधती की मां से उनके मामा इसाक ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। संपत्ति विवाद था। संपत्ति विवाद खतरनाक होते हैं। लेकिन बहन से लड़ते वक्त भी इसाक ने बहन के बच्चों से प्रेम करना नहीं छोड़ा। अरुंधति और उनके भाई एलकेसी पर प्रेम बरसाया। बच्चों से तो प्रेम ही करना चाहिए। चाहे वो दुश्मन के ही बच्चे क्यों नहीं हों। उन्हें नफरत का वारिस नहीं बनाया जा सकता। फिर यहां तो नफरत भी नहीं थी। अरुंधति के व्यक्तित्व पर इसाक के प्रेम की भी छाया है।

(Photo: IANS)

अरुंधति ने ये भी बताया है कि फेल होने में कुछ गलत नहीं है। अपने आसपास बहुत इंसान ऐसे मिलेंगे जो कामयाबी की सामाजिक और भौतिक परिभाषा के मुताबिक फेल हो गए हैं। मगर उन्होंने लड़ना बंद नहीं किया है और जीना तो कत्तई बंद नहीं किया है। वो कामयाब नहीं हैं, मगर खूबसूरत हैं। जिंदगी से भरे हुए हैं। आपको भी अपने आस-पास कुछ ऐसे लोग मिलेंगे जो कामयाब हैं मगर क्रूर और अश्लील हैं। इसलिए जिंदगी में किसी का मूल्यांकन इससे नहीं होना चाहिए कि वो कामयाब है या नाकामयाब। उसका मूल्यांकन इससे होना चाहिए कि उसका मन कितना खूबसूरत है। अगर खूबसूरत है तो सहेज कर रखिए। जीवन जीने में मदद मिलेगी। जिंदगी खूबसूरत लगेगी।

इस किताब की एक खूबसूरत बात और है। जो है अर्थ की, पूंजी की, पैसे की महत्ता और सार्थकता। ‘द गॉड ऑफ स्माल थिंग्स’ की डील तय होने पर उनके दोस्त गोलक ने खुशी का इजहार करते हुए कहा कि “Good, Roy. Thank God we are rich.” अरुंधति लिखती हैं कि पैसे को लेकर यही सबसे सार्थक नजरिया है। उसे शेयर करना चाहिए। आपके पास पैसे हों और आपके इर्द गिर्द मौजूद वो लोग जिन्होंने आपसे प्रेम किया, आपका साथ दिया है, वो दर्द में हों तो उस पैसे का कोई मोल नहीं। आपके होने का कोई अर्थ नहीं। इसलिए उसका सदुपयोग होना चाहिए। आस-पास मौजूद लोगों के जीवन में भी खुशियां आनी चाहिए।

अरुंधति की जिंदगी में कुछ भी निर्धारित नहीं है। जैसे कोई नदी पहाड़ से बहना शुरू करती है तो लहरें पत्थरों से टकराने लगती हैं और अपना रास्ता बनाती चली जाती हैं, वैसे ही अरुंधति भी रास्ता बनाती हैं। प्रयोग करती हैं और लड़ती हैं। कभी फेल होती हैं। कभी पास होती हैं।

न्याय के पक्ष में लड़ना उन्होंने अपनी मां से सीखा है। उनकी मां ने भी इस पितृसत्ता को चुनौती दी। धर्म सत्ता को चुनौती दी। व्यवस्था को चुनौती दी और आखिर में जीत हासिल की और इस संघर्ष के बीच बराबरी की भावना से एक स्कूल तैयार किया।

अरुंधति ने भी अपने तरीके से लड़ाई लड़ी। पहले मां से, फिर समाज से और आखिर में इस समूची व्यवस्था से। लेकिन जिस तरह उनकी मां ने प्रेम का सिरा थामे सृजन किया, अनेक बच्चों का वर्तमान और भविष्य संजोया, अरुंधती भी सृजन करती हैं। बहुत कुछ रचती हैं। देश और दुनिया को सुंदर बनाने, अधिक मानवीय बनाने की कोशिश करती हैं। ये किताब उन्हीं कोशिशों का एक और हिस्सा है।

आप ये किताब जरूर पढ़िए। इसे पढ़ने के लिए अरुंधति के राजनीतिक विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं। राजनीतिक तौर पर उनसे असहमत होते हुए भी ये किताब पढ़ी जा सकती है। और इसे पढ़कर भी अरुंधति से बहुत से मसलों पर असहमत रहा जा सकता है। उनकी राजनीति खारिज की जा सकती है। उनके मासूम तर्क इग्नोर किए जा सकते हैं।

मगर बहुत से मसलों पर उनसे सहमत भी हुआ जा सकता है। मसलन ‘नफरत’ की जगह ‘मुहब्बत’ का उनका चयन अच्छा है, अच्छे से भी कहीं ज्यादा बहुत सुंदर है। दुनिया को बदसूरत और कठोर बनाने की जगह सुंदर, नर्म और उदार बनाने की कोशिश होनी चाहिए और इसकी शुरुआत खुद से करनी होगी। जो खुद को प्यार नहीं करेगा, वो दूसरों को कैसे प्यार करेगा? खुद से प्यार कीजिए। अपने प्रति, अपने अधिकारों के प्रति सजग रहिए। न किसी का शोषण कीजिए, न अपना शोषण होने दीजिए।

अरुंधति रॉय को इस बेहतरीन कृति के लिए पुनः पुन: धन्यवाद!

पुस्तक- ‘मदर मेरी कम्स टू मी’
अरुंधती रॉय
Penguin Hamish Hamilton
376 पृष्ठ; कीमत- 642 रुपये

समरेंद्र सिंह
समरेंद्र सिंह
समरेंद्र सिंह। मीडिया में लगभग तीन दशक का अनुभव। अमर उजाला, जी न्यूज, स्टार न्यूज, एनडीटीवी इंडिया और टाइम्स नेटवर्क जैसे प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों में काम। इन दिनों बोले भारत के लिए कभी-कभी लिखते हैं।
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