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गृह मंत्रालय ने गुजरात दंगा पीड़ितों के परिजनों को सरकारी नौकरियों में दी जा रही उम्र छूट खत्म की

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 2002 के गुजरात दंगों में मारे गए लोगों के परिजनों को केंद्र सरकार की नौकरियों में दी जा रही उम्र सीमा में छूट को वापस ले लिया है। यह सुविधा 2007 से लागू थी।

गृह मंत्रालय ने 28 मार्च को गुजरात के मुख्य सचिव को संबोधित एक आदेश में कहा, “इस मंत्रालय के दिनांक 14.05.2007 के पत्र के संदर्भ में सूचित किया जाता है कि 2002 के गुजरात दंगों में मारे गए लोगों के बच्चों/परिजनों को अर्धसैनिक बलों, भारत रिजर्व बटालियन, राज्य पुलिस बलों, सार्वजनिक उपक्रमों और अन्य राज्य तथा केंद्र सरकार के विभागों में भर्ती के दौरान दी जा रही उम्र में छूट की सुविधा तत्काल प्रभाव से समाप्त की जाती है।”

यूपीए सरकार ने शुरू की थी ये व्यवस्था

कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार ने जनवरी 2007 में 2002 के दंगा पीड़ितों के बच्चों और परिजनों के पुनर्वास और राहत के लिए यह विशेष व्यवस्था शुरू की थी। इसके तहत उन्हें आर्थिक मुआवजे के साथ-साथ सरकारी भर्तियों में उम्र में छूट और प्राथमिकता दी जाती थी।

2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले केंद्र सरकार ने इस छूट के दायरे को बढ़ाकर खुफिया ब्यूरो (आईबी) और केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) की नौकरियों को भी शामिल कर लिया था।

 गृह मंत्रालय द्वारा जारी दो विज्ञापनों में स्पष्ट किया गया था कि गुजरात दंगों के पीड़ितों के बच्चों (दत्तक पुत्र/पुत्री सहित), आश्रित जीवनसाथी, भाई-बहन (यदि पीड़ित अविवाहित था) को पांच वर्ष तक की उम्र में छूट दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?

हालांकि जुलाई 2015 में, 2002 के दंगा पीड़ितों के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर सरकारी नौकरी देने की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देने से इनकार कर दिया था।

अदालत ने कहा था कि दंगा पीड़ितों को पहले ही मुआवजा दिया जा चुका है, इसलिए सरकार को नौकरी देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। यह मामला अब भी सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

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