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महबूबा मुफ्ती ने ईरान की बहादुरी को सराहा, ट्रंप के लिए कहा- वे क्या कहते हैं, क्या करते हैं…ये दुनिया के लिए खतरे की घंटी

पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इजराइल-ईरान संघर्ष पर बड़ा बयान दिया। उन्होंने कहा कि इस युद्ध ने ईरान को मुस्लिम दुनिया में नेतृत्व की भूमिका में ला खड़ा किया है, क्योंकि इसने अमेरिका और इजराइल को घुटनों पर ला दिया है। 

मुफ्ती ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर भी निशाना साधते हुए कहा कि ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति जैसे बड़े पद को ‘कमजोर और छोटा’ कर दिया है। महबूबा ने कहा, “उन्हें नहीं पता कि वे क्या कह रहे हैं या क्या करने वाले हैं और यह पूरी दुनिया के लिए एक खतरे की घंटी है।” उन्होंने पाकिस्तान द्वारा ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने को ‘बचकाना और अपरिपक्व’ बताया।

मैं ईरान की जनता, सेना और नेतृत्व को सलाम करती हूंः महबूबा

महबूबा ने युद्धविराम को वैश्विक स्तर पर राहत की खबर बताया और कहा कि “मैं ईरान की जनता, सेना और नेतृत्व को सलाम करती हूं, जिन्होंने बिना परमाणु हथियारों और सीमित संसाधनों के बावजूद सिर्फ आस्था और बलिदान की भावना से यह लड़ाई लड़ी। उन्होंने अमेरिका और उसके ‘पाले हुए’ देश इजराइल को घुटनों पर ला खड़ा किया।”

पीडीपी प्रमुख ने कहा कि अमेरिका और इजराइल इस युद्ध से बिल्कुल विपरीत नतीजों की उम्मीद कर रहे थे। अब अमेरिका को यह समझ आ गया है कि हर मुस्लिम देश को कमजोर करना उसके लिए संभव नहीं। आज अमेरिका को भी बातचीत के लिए कतर को बीच में लाना पड़ा। ये ईरान की कूटनीतिक और सामरिक जीत है।

उन्होंने यह भी जोड़ा कि कोई भी एक इस्लामिक देश नहीं बचा है जिसे अमेरिका ने नष्ट न किया हो। उन्होंने इराक, ईरान, लीबिया, सीरिया और अफगानिस्तान को निशाना बनाया, और फिर विनाश को ‘लोकतंत्र’ या ‘सत्ता परिवर्तन’ जैसे शब्दों के नीचे छिपा दिया। लेकिन आज ईरान ने दिखा दिया कि बिना परमाणु हथियारों के भी लड़ाई जीती जा सकती है। उन्होंने कहा, अमेरिका को इस युद्ध से सबक लेना चाहिए,” क्योंकि उनके हस्तक्षेप से उनकी प्रतिष्ठा को नुकसान हुआ है।

रूस-चीन की तारीफ, भारत को लेकर महबूबा ने क्या कहा?

महबूबा ने इस युद्ध में रूस और चीन की भूमिका की भी प्रशंसा की और कहा कि जब मुस्लिम देश सिर्फ बयानबाजी में लगे थे, तब इन दो देशों ने वास्तव में ईरान का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने भारत की भूमिका पर निराशा जताई कि इतने लंबे सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों के बावजूद भारत ने तटस्थता की बजाय अलग नीति अपनाई।

 

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