नई दिल्ली: प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-माओवादी (CPI-M) ने एक कथित बयान में संघर्ष विराम की पेशकश की है। साथ ही उसने केंद्र सरकार के साथ शांति वार्ता की मांग की है। माओवादी नेता मल्लोजुला वेणुगल राव के उपनाम अभय के नाम से जारी चिट्ठी में सीपीआई (माओवादी) ने कहा है कि वह मुख्यधारा की राजनीति में शामिल होने के लिए सशस्त्र विद्रोह छोड़ देगी। संगठन ने केंद्र से एक महीने का संघर्ष विराम घोषित करने और मध्य एवं पूर्वी भारत में चल रहे अभियानों को रोकने का भी अनुरोध किया है।
माओवादियों की ओर से कथित तौर पर जो चिट्ठी सामने आई है, वो 15 अगस्त 2025 को जारी की गई थी। हालांकि, ये सामने अब आया है।
छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि उसे इस बयान की जानकारी है और वह इस चिट्ठी की सत्यता की जाँच कर रही है। राज्य सरकार ने माओवादियों द्वारा रखी गई शर्तों पर भी आपत्ति जताई और कहा कि मुख्यधारा में शामिल होने का सबसे अच्छा तरीका सरकारी पुनर्वास नीति के तहत हथियार छोड़ना है।
नक्सलियों के खिलाफ जारी है सरकार का कड़ा एक्शन
प्रतिबंधित संगठन की ओर से इस तरह का बयान ऐसे समय में आया है जब केंद्रीय और राज्य सुरक्षा बलों ने हाल के वर्षों में शीर्ष माओवादी नेताओं को मार गिराया है। बताया जा रहा है कि सरकार का अभियान अपने अंतिम चरण में है। मोदी सरकार की ओर से कहा जा चुका है कि वह 31 मार्च, 2026 तक ऐसे सशस्त्र विद्रोह को कुचल देगी।
इस साल अकेले छत्तीसगढ़ में ही 241 नक्सली मारे गए हैं। इसी साल मई में छत्तीसगढ़ पुलिस ने राज्य के नारायणपुर जिले के जंगलों में सीपीआई (माओवादी) महासचिव नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजू को मार डाला था। राव के नारे जाने के बाद से सहदेव सोरेन, रघुनाथ हेम्ब्राम, वीरसेन गंझू और मॉडेम बालकृष्ण जैसे कई शीर्ष माओवादी मारे जा चुके हैं। बसवराजू पर 1.5 करोड़ रुपये का इनाम था।
इस साल यह कम से कम तीसरी बार है जब सीपीआई (एम) ने ऐसा प्रस्ताव दिया है। इससे पहले, संगठन ने अप्रैल और मई में भी प्रस्ताव दिया था। अप्रैल में भी अभय के नाम से बयान जारी किया गया था। मई में बसवराजू के मारे जाने के बाद यह खबर आई थी कि अभय भी आने वाले महीनों में आत्मसमर्पण कर सकता है।
‘हमने हथियार छोड़ने का फैसला किया है’
समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार 15 अगस्त को जारी एक बयान में माकपा नेता अभय ने कहा कि माओवादियों ने बदली हुई राष्ट्रीय और वैश्विक परिस्थितियों के मद्देनजर हथियार छोड़ने का फैसला किया है। बयान में कहा गया है, ‘पार्टी महासचिव (दिवंगत बसवराजू) की पहल पर शुरू की गई शांति वार्ता की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए, हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि बदली हुई वैश्विक और राष्ट्रीय परिस्थितियों के साथ-साथ देश के प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने के निरंतर अनुरोधों को देखते हुए, हमने हथियार छोड़ने का फैसला किया है।’
चिट्ठी के अनुसार संगठन ने आगे कहा कि उसने सशस्त्र संघर्ष पर अस्थायी रोक लगाने का फैसला किया है। साथ ही सरकार के साथ बातचीत के लिए आम सहमति बनाने के प्रयास के तहत कार्यकर्ताओं और संगठन के नेताओं के साथ विचार-विमर्श करने के लिए एक महीने का समय माँगा। सीपीआई (एम) ने कहा कि वह गृह मंत्री अमित शाह या उनके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति या प्रतिनिधिमंडल से बातचीत करेगी।
इसमें आगे कहा गया है कि ऐसी बातचीत के लिए केंद्र को तुरंत एक महीने के लिए औपचारिक युद्धविराम की घोषणा करनी चाहिए, तलाशी अभियान रोकना चाहिए और शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाना चाहिए। बयान में आगे कहा गया, ‘हम यह स्पष्ट कर रहे हैं कि भविष्य में, हम जहाँ तक संभव होगा, जनहित के लिए लड़ने वाले सभी राजनीतिक दलों और संगठनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे।’
केंद्र ने सीपीआई (एम) को गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत एक आतंकी संगठन के रूप में घोषित किया है। माओवादी विद्रोह में शामिल रहा यह संगठन, 2004 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी-लेनिनवादी पीपुल्स वार ग्रुप (CPI ML-PWG) और माओवादी कम्युनिस्ट सेंटर ऑफ इंडिया (MCCI) के विलय से बना था।
चिट्ठी की जांच कर रही छत्तीसगढ़ सरकार
केंद्र ने अभी तक माओवादियों की ओर से चिट्ठी के जरिए आए बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है। वहीं, छत्तीसगढ़ सरकार ने कहा है कि वह बयान की पुष्टि कर रही है और उसके अनुसार ही आगे की कार्रवाई करेगी। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार उपमुख्यमंत्री विजय शर्मा ने बताया कि बयान की प्रामाणिकता की पुष्टि अभी बाकी है, लेकिन पिछले बयानों से इसमें कुछ उल्लेखनीय अंतर हैं। मसलन इसमें पहली बार चिट्ठी पर कथित तौर पर इसे जारी करने वाले की तस्वीर का इस्तेमाल, लेखन शैली में बदलाव और ईमेल आईडी का उल्लेख अहम है।
विजय शर्मा छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री भी हैं। उन्होंने माओवादी संगठन द्वारा ‘युद्धविराम’ शब्द के इस्तेमाल पर भी आपत्ति जताई है। शर्मा ने कहा, ‘युद्धविराम शब्द बेहद आपत्तिजनक है क्योंकि यहाँ कोई ऐसा युद्ध नहीं चल रहा है जिसके लिए युद्धविराम की आवश्यकता हो। लोकतंत्र में कोई ‘शर्तों’ वाली बातचीत नहीं हो सकती और वे फिर से पहले जैसी शर्तें लेकर आए हैं। लेकिन, प्रेस नोट की पुष्टि के बाद, हम सरकार के भीतर चर्चा करेंगे और कोई निर्णय लेंगे। इसके अलावा, युद्धविराम का पत्र 15 अगस्त का है और माओवादियों ने तब से भी ग्रामीणों की हत्या की है और आईईडी लगाए हैं जिससे हमारे जवान घायल हुए हैं।’
शर्मा ने कहा कि माओवादियों के लिए सबसे अच्छा तरीका यह है कि वे आत्मसमर्पण करें, पुनर्वास नीति के प्रावधानों का लाभ उठाएं और एक राजनीतिक व्यक्ति के रूप में भी राष्ट्र निर्माण में योगदान दें। गौरतलब है कि विजय शर्मा ने पिछले साल माओवादियों से उनकी पसंद के किसी भी मंच पर जैसे वीडियो कॉल, आमने-सामने की मुलाकात या टेलीफोन पर भी शांति वार्ता में हिस्सा लेने के लिए आह्वान किया था।
बहरहाल, इन सबके बीच सीएनएन-न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार खुफिया विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया है कि प्रथम दृष्टया यह चिट्ठी प्रामाणिक प्रतीत होती है, लेकिन अगले 48 घंटे यह देखने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि क्या कोई और स्पष्टीकरण या खंडन आता है। अधिकारी ने कहा, ‘नक्सली दबाव में हैं। इस साल की शुरुआत में भी, केंद्रीय समिति के सदस्यों ने सशर्त आत्मसमर्पण का जिक्र किया था, लेकिन यह पहली बार है जब बिना शर्त हथियार छोड़ने का जिक्र किया गया है। साथ ही, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री की अपील का जिक्र भी नया है।’