इस्लामाबादः प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) मुरीदके में अपने मरकज तैयबा मुख्यालय का पुनर्निर्माण करने में जुटा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सेनाओं के हमले में इसे नष्ट कर दिया गया था। इसे बनाने में उन पैसों का इस्तेमाल किया जा रहा है जो पाकिस्तान में आए हालिया बाढ़ के पीड़ितों के लिए दी जाने वाली राहत के रूप में इस्तेमाल करना था।
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान मुरीदके में भारतीय सेनाओं द्वारा तीन इमारतों को मुख्य रूप से निशाना बनाया गया था। इन मस्जिदों का इस्तेमाल कैडरों के रहने, हथियारों को रखने और प्रशिक्षण केंद्रों के रूप में किया जाता था। भारतीय सैन्य बलों के हमले के बाद इन इमारतों का केवल ढांचा ही बचा था। ऐसे में ये जगह आतंकवादी संगठन के काम की जरूरतों के लिए उपयोगी नहीं रह गई।
लश्कर-ए-तैयबा कर रहा पुनर्निर्माण
इंडिया टुडे ने सूत्रों के हवाले से लिखा कि ऐसे में मरकज तैयबा कैंप को फिर से व्यवस्थित रूप से ध्वस्त करने की शुरुआत 18 अगस्त को हुई। इस दौरान लश्कर-ए-तैयबा ने इसके अवशेषों को साफ करने के लिए पांच जेसीबी मशीनें लगाई गईं। जेसीबी के इस्तेमाल से 20 अगस्त तक उम्म-उल-कुरा ट्रेनिंग कैंप को आंशिक रूप से ध्वस्त कर दिया गया और फिर 4 सितंबर को इसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया।
आखिर में बुरी तरह क्षतिग्रस्त आवासीय ब्लॉक को भी 7 सितम्बर तक पूरी तरह ध्वस्त कर दिया गया। अब यह पूरा कैंप मलबे में तब्दील हो चुका है और मलबा हटाया जा रहा है। मलबा पूरी तरह से हटने के बाद पुनर्निर्माण शुरू होगा।
ऐसा कहा जाता है कि मई में पाकिस्तान सरकार ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि वह आतंकी संगठनों लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के ठिकानों को पुनः स्थापित करने के लिए धन उपलब्ध कराएगी। पाकिस्तान सरकार ने लश्कर-ए-तैयबा को मरकज तैयबा के पुनर्निर्माण के लिए 14 अगस्त को पाकिस्तान से 4 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (1.25 करोड़ रुपये) दिए थे। हालांकि समूह के आंतरिक आकलन के मुताबिक, इस कैंप को हमले से पहले की तरह बनाने के लिए करीब 15 करोड़ पाकिस्तानी रुपये (4.70 करोड़ रुपये) से ज्यादा की आवश्यकता होगी।
भारतीय एजेंसियों के मुताबिक, इनके पुनर्निर्माण के लिए बाढ़ पीड़ितों के लिए आई राहत राशि के जरिए पैसा इकट्ठा किया जा रहा है। इसी तरह साल 2005 में भी हुआ था जब पाकिस्तान/पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में भूकंप आया था। और इसके बाद राहत राशि का इस्तेमाल जमात-उद-दावा मोर्चे के तहत लश्कर-ए-तैयबा ने भारी मात्रा में पैसा इकट्ठा किया था। इस राशि के लगभग 80% पैसे को आतंकवादी बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए इस्तेमाल किया गया था।
लश्कर के गुर्गे बाढ़ इलाकों में खिंचा रहे तस्वीरें
इन दिनों लश्कर के गुर्गे बाढ़ राहत स्थलों पर पाकिस्तानी रेंजर्स और अन्य अधिकारियों के साथ तस्वीरें खिंचवा रहे हैं। एक अधिकारी ने द हिंदू को बताया, “आकलन से साफ पता चलता है कि लश्कर के खिदमत-ए-खल्क द्वारा चलाया जा रहा धन उगाही अभियान एक दिखावा है। सार्वजनिक रूप से इसे बाढ़ पीड़ितों की मदद के रूप में पेश किया जाता है लेकिन एकत्रित धन का इस्तेमाल मुरीदके मुख्यालय और अन्य क्षतिग्रस्त शिविरों के पुनर्निर्माण में किया जा रहा है।”
अधिकारी के मुताबिक, “हमें जानकारी मिली है कि निर्माण कार्य पूरा करने की समय सीमा 5 फरवरी, 2026 तय की गई है। जिसे पाकिस्तान में कश्मीर एकजुटता दिवस के रूप में मनाया जाता है। सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, यह लश्कर-ए-तैयबा के वार्षिक कश्मीर-केंद्रित जिहाद सम्मेलन के साथ मेल खाता है। इस साल इसी दिन प्रतिबंधित आतंकी संगठनों, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद और हिजबुल मुजाहिदीन के गुर्गों ने पीओके में हमास नेतृत्व से मुलाकात की थी।
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अधिकारी ने कहा, “पाकिस्तान ‘आतंकवाद-विरोधी’ मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर महत्वपूर्ण पदों पर काबिज रहा है और इसके लिए उसे आतंकवाद पर लगाम लगाने के झूठे आश्वासन दिए जाते हैं। अब यह पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान, इसके बजाय, आतंकी संगठनों के ज़रिए छद्म युद्ध छेड़ रहा है। ये संगठन अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने या भारत में आतंकी हमले करते समय अपनी पहचान गुप्त रखने के लिए अक्सर अपना नाम बदलते रहते हैं।”
इनमें से कुछ संगठनों की पहचान भारतीय एजेंसियों द्वारा पीपुल्स एंटी-फासिस्ट फ्रंट, द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ), कश्मीर टाइगर्स, तहरीक-ए-तालिबान कश्मीर और नवगठित माउंटेन वॉरियर्स ऑफ कश्मीर के रूप में की गई है।
गौरतलब है कि 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में पर्यटकों के ऊपर हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी टीआरएफ ने ही ली थी।