कर्नाटक में सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण-2025 यानी जातीय जनगणना सोमवार से शुरू हो रहा है। यह सर्वेक्षण 16 दिनों तक चलेगा और राज्य की 7 करोड़ से अधिक आबादी को कवर करेगा। लगभग 2 करोड़ घरों में 1.75 लाख प्रवर्तक (ज्यादातर सरकारी शिक्षक) घर-घर जाकर 60 सवालों वाले प्रश्नावली के जरिए जानकारी जुटाएंगे। इसका खर्च करीब 420 करोड़ रुपये आंका गया है।
सर्वेक्षण की शुरुआत से पहले ही इसमें शामिल कुछ जातियों को लेकर विवाद खड़ा हो गया। मोबाइल ऐप पर 33 हिंदू जातियों के नाम क्रिश्चियन पहचान के साथ दिखाए जाने को लेकर आलोचनाओं और आपत्तियां सामने आईं। इसमें ‘अक्कसालिगा क्रिश्चियन’, ‘ब्राह्मण क्रिश्चियन’, ‘कुरुबा क्रिश्चियन’, ‘वोक्कालिगा क्रिश्चियन’ और ‘वैश्य ब्राह्मण क्रिश्चियन’ जैसी जातियाँ शामिल थीं। भाजपा नेताओं के प्रतिनिधिमंडल ने इस पर राज्यपाल थावरचंद गहलोत से शिकायत की थी। राज्यपाल ने इस मुद्दे पर चिंता जताते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘क्रिश्चियन’ टैग के साथ जातियों को शामिल करने से समाज में अशांति फैल सकती है।
सर्वेक्षण ऐप से 33 जातियों को ‘मास्क’ किया गया
विवाद बढ़ता देख, कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग ने शनिवार को घोषणा की कि इन जातियों के नाम ऐप की सूची से हटा दिए गए हैं। हालांकि, यदि कोई नागरिक अपनी पहचान इसी तरह दर्ज कराना चाहता है तो उसे ‘अन्य’ कॉलम में दर्ज कर सकता है। आयोग ने साफ किया कि जातियों की यह सूची केवल प्रवर्तकों के उपयोग के लिए है, यह न तो सार्वजनिक दस्तावेज है और न ही इसकी कोई कानूनी वैधता है।
आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर नाइक ने कहा, “इन नई जातियों का समावेश 2015 की कंठाराजु आयोग रिपोर्ट में था। जब से यह मुद्दा विवादों में आया, हमने 33 जातियों को ड्रॉपडाउन से हटा दिया है। लेकिन कोई चाहे तो अपनी इच्छा से इन्हें दर्ज करा सकता है।” सदस्य-सचिव केए दयानंद ने बताया कि 2015 के सर्वेक्षण में 4 लाख से ज्यादा लोगों ने स्वयं को “क्रिश्चियन पहचान” से जोड़ा था, जिनमें 5,000 ब्राह्मण और 2,000 वोक्कालिगा भी शामिल थे।
नई जनगणना की क्या है प्रक्रिया
नई जनगणना की प्रक्रिया में हर घर को बिजली मीटर नंबर के आधार पर जियो-टैग किया जाएगा और उसे यूनिक हाउसहोल्ड आईडी (UHID) दी जाएगी। राशन कार्ड और आधार की जानकारी को भी मोबाइल नंबर से जोड़ा जाएगा। जो लोग घर पर नहीं मिलेंगे या शिकायत दर्ज कराना चाहेंगे, उनके लिए हेल्पलाइन नंबर (8050770004) और ऑनलाइन विकल्प की व्यवस्था की गई है।
हालांकि, ग्रेटर बेंगलुरु क्षेत्र में प्रशिक्षण और प्रशासनिक तैयारियों के चलते यह प्रक्रिया दो-तीन दिन देरी से शुरू होगी और संभव है कि सर्वेक्षण की समयसीमा 7 अक्टूबर से आगे बढ़ाई जाए।
इस बीच, राज्य की प्रमुख जातियाँ अपने-अपने समुदाय को संगठित करने में जुट गई हैं। वोक्कालिगा समुदाय के संतों और नेताओं ने अपने लोगों से कहा है कि वे अपनी जाति ‘वोक्कालिगा’ और धर्म ‘हिंदू’ ही लिखें। वहीं, वीरशैव-लिंगायत समुदाय के नेताओं ने सदस्यों को अपनी इच्छानुसार धर्म का चयन करने की सलाह दी है, जबकि जाति के कॉलम में ‘वीरशैव-लिंगायत’ लिखने को कहा है। इन समुदायों के अलावा, कुरबा, मुस्लिम और अनुसूचित जाति जैसे अन्य समुदायों ने भी अपनी संख्या को मजबूत करने के लिए बैठकें की हैं।
इस सर्वे में 1.75 लाख से अधिक गणनाकार (गणक) काम करेंगे, जिनमें ज्यादातर सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं। इस पर अनुमानित 420 करोड़ रुपये का खर्च आएगा और इसमें 60 सवालों की एक प्रश्नावली तैयार की गई है। हालांकि, ग्रेटर बेंगलुरु क्षेत्र में यह सर्वे 2-3 दिन की देरी से शुरू होगा।
भाजपा ने लगाए ये आरोप
बीजेपी ने कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाया है कि वह जल्दबाजी में यह सर्वेक्षण कर रही है और इसका मकसद हिंदुओं को बाँटना है। पार्टी ने यह भी सवाल उठाया कि जब केंद्र पहले ही राष्ट्रीय जनगणना में जाति-आधारित गणना की घोषणा कर चुका है तो फिर राज्य सरकार इस खर्चीले अभ्यास की जरूरत क्यों महसूस कर रही है।
वहीं, राज्य सरकार का तर्क है कि पिछड़े वर्ग आयोग अधिनियम, 1995 की धारा 11(1) के तहत हर दस साल में सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण जरूरी है। 2015 की पिछली गणना को कई समुदायों ने “अवैज्ञानिक” बताकर खारिज कर दिया था और नए सर्वे की मांग की थी। इसी वजह से कैबिनेट ने जून में नए सर्वेक्षण को मंजूरी दी।
आयोग का दावा है कि यह सर्वेक्षण वैज्ञानिक और निष्पक्ष तरीके से किया जाएगा और दिसंबर 2025 तक सरकार को रिपोर्ट सौंपी जाएगी, जिसके आधार पर वर्गों का पुनर्वर्गीकरण और आरक्षण कोटे में फेरबदल संभव है।