Friday, October 10, 2025
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विरासतनामा: ताज महल की ज़मीन और हक़-तर्क की तफ़्तीश

सन 2022 में जयपुर की पूर्व राजकुमारी और राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी ने दावा किया कि शाहजहां ने जिस जमीन पर ताजमहल का निर्माण करवाया था, वह मूल रूप से उनके जयपुर राजघराने की हुआ करती थी। उन्होंने दावा किया कि उनके पास ऐसे दस्तावेज़ हैं जो ताजमहल के निर्माण वाली ज़मीन पर उनके शाही परिवार के दावे को दर्शाते हैं।

राजकुमारी दीया कुमारी के ताजमहल पर दिए बयान के बहाने जयपुर राजघराने और मिल्कियत के दावे का खूब मज़ाक बना लेकिन तथ्यपरक इतिहास इसी ओर इशारा करता है कि आगरा की उक्त ‘ज़मीन’ पर रही जयपुर राजघराने की मिल्कियत का दावा कतई खोखला नहीं है। कई ऐतिहासिक संदर्भ यह साबित करते हैं कि ताजमहल को बनाने के लिए शाहजहां ने ‘ज़मीन’ आमेर (जयपुर) के राजघराने से ही ली थी।

  एक मशहूर अमरीकी क्यूरेटर और स्कॉलर रहे, जिनकी 1985 में छपी किताब : , – में वे लिखते हैं:

“राजकुमार खुर्रम (शाहजहाँ) की सबसे प्रिय पत्नी मुमताज़ महल की मौत के बाद, उसकी कब्र यानी ताजमहल बनाने के लिए राजा मानसिंह की ज़मीन ली गई थी।”

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एक प्रख्यात इतिहासकार हैं और भारतीय इतिहास & स्थापत्य कला के प्रोफेसर हैं। इनकी 2006 में आई किताब : में Tillotson लिखते हैं:

“यह सर्वविदित है कि आगरा में जिस ज़मीन पर ताजमहल बनाया गया, वह पहले आमेर घराने की थी..”

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किताब : जिसे & ने संकलित किया, इसमें 2 फ़रमान दर्ज हैं जो शाहजहां के दरबार से जयपुर के राजा जय सिंह के नाम भेजे गए, उनकी ताजमहल के लिए दी गई ज़मीन की तस्दीक करते हुए:

“शाही फ़रमान की प्रति राजा जय सिंह के नाम, तारीख़ 26 जमादि उस्सानी 1043 हिजरी, बादशाह के शासन के छठे वर्ष
— तारीख़ 28 दिसंबर 1633

इस फ़रमान का उद्देश्य राजा जय सिंह को अकबराबाद (आगरा) में चार संपत्तियों — जिन्हें “जागीरें” या “हवेलियाँ” कहा गया है — का स्वामित्व देना था। ये संपत्तियाँ उन्हें उस हवेली के बदले में दी गईं, जो पहले उनके दादा राजा मान सिंह की थी और जिसे उन्होंने मुमताज़ महल की कब्र (ताजमहल) के निर्माण के लिए स्वेच्छा से दान कर दी थी।”

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प्रख्यात इतिहासकार विलियम डालरिंपल के आमेर घराने के आगरा की ज़मीन पर मिल्कियत के दावे का समर्थन करते हुए किए गए ट्वीट के बाद संदर्भ सूची में एक और किताब का नाम जुड़ जाता है, जो तस्दीक करती है कि ताज महल बनाने के लिए शाहजहां ने जयपुर राजघराने के राजा जय सिंह से ही ज़मीन ली थी।

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मशहूर कला इतिहासकार की किताब : में वे लिखती हैं:

“जिस ज़मीन पर शाहजहाँ ताजमहल बनाना चाहते थे, वह पहले आमेर के कच्छवाहा शासकों की सम्पत्ति थी, जो अकबर के समय से ही मुग़लों के पहले सहयोगी राजपूत शासक थे। यह ज़मीन राजा मान सिंह (जिनका देहांत 1614 में हुआ) के पास थी और बाद में उनके पोते राजा जय सिंह को मिली। शाहजहाँ ने यह ज़मीन राजा जय सिंह से कानूनी रूप से प्राप्त की और बदले में आगरा में शाही संपत्ति की चार हवेलियाँ उन्हें दे दीं।

ताजमहल के लिए जो स्थान चुना गया, वह यमुना नदी के दाहिने किनारे, शहर के दक्षिणी किनारे पर था। यह ज़मीन आगरा की नदी किनारे की एक आलीशान हवेली थी, जो पहले आमेर के राजा मान सिंह की थी और फिर उनके पोते जय सिंह के पास आई थी। शाहजहाँ को यह जगह बहुत पसंद आई क्योंकि, जैसा कि इतिहासकार क़ज़विनी ने लिखा, ‘ऊँचाई और सुंदरता के लिहाज़ से यह उस स्वर्गवासिनी रानी की क़ब्र के लायक लगती थी।’

हालाँकि राजा जय सिंह यह ज़मीन उपहार में देने को तैयार थे, लेकिन शाहजहाँ ने अपनी पत्नी की आख़िरी आरामगाह से जुड़े इस सौदे में किसी भी तरह का दीनी शुबा न पेश आए, इसलिए ज़मीन के बदले में उन्हें आगरा में चार अन्य हवेलियाँ दीं।”

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इनके अलावा की किताब ; . . की किताब : और इतिहासकार की ताजमहल पर की गई रिसर्च में ताजमहल बनाने के लिए ज़मीन का जयपुर राजघराने द्वारा दिए जाने के सबूत मौजूद हैं। 

सियासी गोलबंदियों के सियाह दौर में अपनी सुविधानुसार इतिहास को अंगीकृत करना या खारिज करना कोई नई बात नहीं है लेकिन जायज़ दावों को सियासत से अलहदा रखना ही हितकर होता है। कनॉट प्लेस का नाम राजीव चौक कर देने से यह ड्यूक ऑफ कनॉट या राजीव गांधी की मिल्कियत नहीं हो जाती। इतिहास में कनॉट प्लेस जयपुर घराने की ज़मीन जयसिंहपुरा पर 20वीं सदी में बसाया ‘व्यापारिक केंद्र’ ही रहेगा ! शाहजहां द्वारा बनाई गई जामा मस्जिद गुज्जरों की ज़मीन ‘पहाड़ी भोजला’ पर बनी ही दर्ज रहेगी। इतिहास में बंगला साहिब गुरुद्वारा भी आमेर के मिर्ज़ा राजा जय सिंह द्वारा सिख गुरुओं को श्रद्धास्वरूप भेंट किया गया बंगला ही रहेगा। चण्डीगढ़ शहर पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का सपना हो सकता है पर इस शहर की ज़मीन रहेगी उन्हीं मूलनिवासियों की मिल्कियत जिनके 28 गांव उजाड़कर इसे कभी बसाया गया। इसी तरह जयपुर राजघराने के ताज महल की ज़मीन पर किए दावे को खारिज करने से इतिहास में दर्ज हक़-तर्क नहीं बदल जाएगा। 

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