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ब्रिटिश काल के कानून की जगह अब भारत का अपना नया क्रिमिनल लॉ…जानिए इससे जुड़ी बड़ी बातें

नई दिल्ली: आजादी के 76 साल बाद भारत एक ओर ऐतिहासिक मोड़ पर खड़ा है। जुलाई से क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। तीन नए आपराधिक कानून (क्रिमिनल लॉ) लागू होने जा रहे हैं। ब्रिटिश कालीन 1860 की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की जगह अब भारतीय न्याय संहिता ले रहा है। साथ ही सीआरपीसी की जगह भारतीय सुरक्षा संहिता और इंडियन एविडेंस एक्ट की जगह भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू हो जाएंगे।

जाहिर है नए आपराधिक कानूनों के लागू होने के बाद काफी कुछ बदलने जा रहा है। कई नियम- कायदे बदल जाएंगे जो कई सालों से चले आ रहे थे। आखिर क्या कुछ बदलेगा…इस बारे में कुछ बड़ी बातें हम आपको क्रमवार तरीके से बताने जा रहे हैं।

नए क्रिमिनल लॉ से जुड़ी बड़ी बातें

नए कानूनों में तकनीक को महत्व दिया गया है। नए कानून के अनुसार जीरो एफआइआर (किसी भी पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करा सकेंगे), ऑनलाइन पुलिस शिकायत, इलेक्ट्रानिक माध्यमों से समन भेजना सहित बेहद घृणित अपराधों में क्राइम सीन की वीडियोग्राफी अनिवार्य होगी।

पहले चार्जशीट की प्रति केवल आरोपी को दी जाती थी। अब पीड़ित को भी चार्जशीट की कॉपी मिल सकेगी। इसके अलावा सात साल या इससे अधिक की सजा के प्रावधान वाले सभी आपराधिक मामलों में फॉरेंसिक अनिवार्य होगा।

किसी पीड़ित महिला की कोर्ट में सुनवाई महिला मजिस्ट्रेट ही करेगी। यह संभव नहीं होता है तो बेहद संवेदनशील मामले में किसी महिला की उपस्थिति में ही पुरुष मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान दर्ज होगा।

अहम ये भी है महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में एजेंसियों को दो महीने के अंदर जांच पूरी करनी होगी।

हाईकोर्ट अगर किसी शख्स को तीन महीने या उससे कम की जेल की सजा या तीन हजार रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा देता है तो उसे ऊपरी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकेगी। इससे पहले आईपीसी में 6 महीने से कम की सजा को चुनौती देने पर रोक थी।

साथ ही निचली कोर्ट या सेशन अदालतें अगर किसी को तीन महीने या उससे कम की जेल या 200 रुपये का जुर्माना या दोनों की सजा देती हैं, तो इसे भी ऊपरी अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकेगी।

मजिस्ट्रेट कोर्ट से अगर किसी अपराध में 100 रुपये का जुर्माना बतौर सजा दिया जाता है तो इसके खिलाफ अपील नहीं हो सकेगी।

नए कानून में कैदियों के लिए राहत है। इससे जेल में कैदियों की बढ़ती संख्या और जेलों में बढ़ते बोझ से भी निपटने में सहूलियत होगी। नए कानून के अनुसार अगर कोई कैदी जिसके मामले की सुनवाई जारी है यानी वो अंडर ट्रायल है और अधिकतम सजा का एक तिहाई से ज्यादा वक्त जेल में बिता चुका है, तो उसे जमानत दी जा सकती है। ये रियायत केवल पहली बार अपराध करने वाले कैदियों के लिए है।

ऐसे आरोपी जिन्होंने ऐसे अपराध किए हैं, जिसमें उन्हें उम्रकैद की सजा हो सकती है, उन्हें जमानत नहीं दी जाएगी।

गैंगरेप के मामले में 20 साल की सजा या आजीवन जेल की भी सजा हो सकती है। अगर पीड़िता नाबालिग हो तो जेल या मृत्युदंड तक का प्रावधान है।

नए कानून के अनुसार अगर अपराधी फरार है तो भी उसके खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है। नए कानूनों के मुताबिक आरोप तय होने के 90 दिन के बाद भी अगर आरोपी कोर्ट में पेश नहीं होता है तो ट्रायल शुरू कर दिया जाएगा। पहले ऐसा नहीं था। पुराने कानून के अनुसार किसी अपराधी या आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू किया जा सकता था, जब वो अदालत में मौजूद हो।

नए कानून भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद की परिभाषा स्पष्ट की गई है। पुराने कानून में ऐसा नहीं था। नए कानून के अनुसार अगर कोई देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा को खतरे में डालता है या फिर आम लोगों को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने, सरकारी संपत्तियों को नुकसान के इरादे से भारत या दुनिया के किसी भी हिस्से से कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा।

नए कानून में मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम मर्डर के लिए आजीवन कारावास या मौत की सजा का भी प्रावधान है। इसके अलावा मानसिक बीमारी शब्द को ‘अनसाउंड माइंड’ में बदला गया है।

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