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‘सबूत मिटा रहे’, चुनाव आयोग के नए नियम पर बोले राहुल गांधी; EC ने कहा- ‘ऐसा करना वोटर की…’

नई दिल्ली: कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने शनिवार को एक बार फिर चुनाव आयोग पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने चुनाव आयोग की पारदर्शिता पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि चुनाव आयोग जानबूझकर चुनाव से जुड़ा अहम डेटा नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। राहुल गांधी ने शनिवार को चुनाव आयोग पर तीखा हमला करते हुए कहा कि वह जानबूझकर चुनाव से जुड़े जरूरी दस्तावेज और डेटा नष्ट कर रहा है। राहुल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वोटर लिस्ट मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में नहीं दी जाएगी, सीसीटीवी फुटेज कानून बदलकर छिपा दी गई है, और अब चुनाव की फोटो-वीडियो को एक साल नहीं, सिर्फ 45 दिन में ही नष्ट किया जाएगा। उन्होंने कहा कि जिससे जवाब चाहिए, वही सबूत मिटा रहा है, यानी “मैच फिक्स है” और फिक्स चुनाव लोकतंत्र के लिए ज़हर है।

चुनाव आयोग की सफाई-गोपनीयता और सुरक्षा जरूरी

राहुल गांधी के आरोपों पर चुनाव आयोग ने जवाब दिया है। चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि मतदान केंद्रों की वेबकास्टिंग फुटेज को सार्वजनिक करना, मतदाताओं की गोपनीयता और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है। आयोग के अनुसार, इस तरह की मांगें दिखने में तो जनहित और लोकतांत्रिक ईमानदारी के समर्थन में लगती हैं, लेकिन वास्तव में इनका उद्देश्य इसके विपरीत होता है।

चुनाव आयोग के अधिकारियों ने कहा कि राहुल गांधी की मांगें 1950 और 1951 के जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के खिलाफ हैं। आयोग ने यह भी कहा कि वह कानून और संविधान के अनुसार ही काम कर रहा है, और मतदाताओं की सुरक्षा व चुनाव की निष्पक्षता को बनाए रखना उसकी प्राथमिकता है।

मतदाताओं की पहचान उजागर होने का खतरा

चुनाव आयोग के अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि मतदान केंद्रों की सीसीटीवी फुटेज को सार्वजनिक करने से यह पता लगाया जा सकता है कि किसने वोट दिया और किसने नहीं, जिससे उन लोगों को दबाव, भेदभाव या डराने-धमकाने जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि अगर किसी राजनीतिक पार्टी को किसी बूथ पर कम वोट मिलते हैं, तो वह फुटेज देखकर यह पता लगा सकती है कि किसने वोट नहीं दिया। इससे चुनिंदा लोगों को परेशान या डराया जा सकता है।

अधिकारियों ने साफ किया कि चुनाव आयोग ये सीसीटीवी फुटेज सिर्फ आंतरिक प्रशासनिक कार्यों के लिए 45 दिनों तक ही सुरक्षित रखता है। यह नियम इसलिए है क्योंकि चुनाव परिणाम के खिलाफ याचिका दाखिल करने की कानूनी समयसीमा भी 45 दिन होती है।

 

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