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मंदिर में महज इस्लाम धर्म के पर्चे बांटना और उसकी मान्यताओं को समझाना अपराध नहीं: कर्नाटक हाई कोर्ट

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट का एक फैसला चर्चा में आ गया है। हाई कोर्ट ने तीन मुस्लिम व्यक्तियों के खिलाफ दर्ज एक प्राथमिकी को रद्द कर दिया है। इन पर एक हिंदू मंदिर में इस्लाम धर्म की शिक्षा को बढ़ावा देने वाले पर्चे बांटने और मौखिक रूप से अपनी धार्मिक मान्यताओं को वहां मौजूद लोगों को समझाने का आरोप लगाया गया था। 

आरोपियों पर एफआईआर में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 299, 351(2) और 3(5) और कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम- 2022 (KPRFR) की धारा 5 के तहत आरोप लगाए गए थे। एफआईआर के खिलाफ इन मुस्लिमों ने कर्नाटक हाई कोर्ट का रुख किया था और इसे रद्द करने की माँग की थी। कोर्ट ने मामले पर सुनवाई करते हुए माना कि उन्होंने कानून के तहत कोई अपराध नहीं किया है, क्योंकि उन्होंने किसी भी व्यक्ति को इस्लाम में धर्मांतरित करने का कोई प्रयास नहीं किया।

वेबसाइट लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि 04.05.2025 (4 मई, 2025) को शाम 4:30 बजे, जब वह जामखंडी स्थित रामतीर्थ मंदिर गए थे, तो वहां कुछ लोग इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार करने वाले पर्चे बाँट रहे थे और अपनी धार्मिक मान्यताओं को मौखिक रूप से समझा रहे थे। 

शिकायत में कहा गया है कि घटनास्थल पर मौजूद श्रद्धालुओं ने उनकी गतिविधियों के बारे में पूछताछ करने के लिए उनसे संपर्क किया। इस पर जवाब में, उन्होंने कथित तौर पर हिंदू धर्म की आलोचना और अपमानजनक टिप्पणियाँ शुरू कर दीं।

इसके अलावा शिकायत में यह भी कहा गया कि वे लोग दूसरे लोगों को इस्लाम धर्म अपनाने के लिए लुभाने का प्रयास कर रहे थे। इसके लिए लोगों को गाड़ी और दुबई में नौकरी के अवसर जैसे प्रलोभन दिए जा रहे थे। 

आरोपों पर क्या दी गई दूसरे पक्ष की ओर से दलील?

वहीं, आरोपों को रद्द करने की मांग करते हुए दूसरे पक्ष ने तर्क दिया कि वे केवल अल्लाह या पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं का प्रचार कर रहे थे। यह भी दलील दी गई कि उन्होंने किसी का धर्म परिवर्तन कराने का प्रयास नहीं किया। ऐसे में प्राथमिकी में लगाए गए आरोप KPRFR अधिनियम की धारा 5 के तहत दंडनीय अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा नहीं करते हैं।

इसके अलावा, यह भी कहा गया कि केपीआरएफआर अधिनियम की धारा 4 में निर्दिष्ट है कि वे लोग या उनके निकट रिश्तेदार ही इस संबंध में शिकायत कर सकते हैं, जिनका धर्म परिवर्तन कराया गया हो। इस मामले में दूसरे पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि दूसरा प्रतिवादी, एक तृतीय पक्ष होने के नाते, अधिनियम के तहत शिकायतकर्ता के रूप में योग्य नहीं है। वहीं, अभियोजन पक्ष ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि प्राथमिकी में लगाए गए आरोप अधिनियम की धारा 5 के तहत अपराध के होने का खुलासा करते हैं।

कर्नाटक हाई कोर्ट ने क्या कहा?

मामले पर सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 3 गलत बयानी, बल, धोखाधड़ी, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन या शादी के वादे के माध्यम से एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्म परिवर्तन को प्रतिबंधित करती है। वहीं, अधिनियम की धारा 4 निर्दिष्ट करती है कि शिकायत दर्ज करने के लिए कौन सक्षम है। इसे परिवर्तित व्यक्ति, उनके माता-पिता, भाई-बहन और रक्त संबंध वाले दूसरे रिश्तेदार, जीवनसाथी, गोद लेने और कुछ अन्य रिश्तेदारों तक सीमित किया गया है। अधिनियम की धारा 5 उन लोगों के लिए सजा निर्धारित करती है जो अधिनियम की धारा 3 का उल्लंघन करते हैं। 

इसके बाद कोर्ट ने कहा, ‘वर्तमान मामले में, शिकायत एक तीसरे पक्ष द्वारा दर्ज की गई थी, जो अधिनियम की धारा 4 के तहत शामिल किए गए व्यक्तियों की श्रेणी में नहीं आता है। इसलिए, दूसरे प्रतिवादी द्वारा एफआईआर दर्ज करना, जिसके पास सुपुर्दगी का अधिकार नहीं है, कानूनी रूप से अमान्य है।’

इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि भले ही एफआईआर में आरोपों को बयानों के आधार पर स्वीकार किया जाता है लेकिन यह एक्ट की धारा-3 के तहत अपराध के आवश्यक तत्वों को पूरा करने में विफल है, क्योंकि ऐसा कोई आरोप नहीं है कि किसी का धर्म परिवर्तन कराया गया या किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन कराने का प्रयास किया गया। इसके साथ ही कोर्ट ने एफआईआर रद्द करने का भी फैसला सुना दिया।

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