Homeभारतशाही ईदगाह कमिटी को रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा के विरोध पर दिल्ली...

शाही ईदगाह कमिटी को रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा के विरोध पर दिल्ली हाई कोर्ट की फटकार…क्या है मामला?

नई दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को शाही ईदगाह प्रबंध समिति को फटकार लगाते हुए एकल न्यायाधीश के खिलाफ ‘निंदनीय’ दलीलें देने के लिए माफी मांगने को कहा। एकल न्यायाधिश ने हाल ही में एक विवादित भूमि पर फैसला देते हुए उसे मस्जिद का नहीं बल्कि दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) का घोषित किया था।

कोर्ट ने मस्जिद समिति द्वारा दायर एक आवेदन के हिस्सा की उन कुछ पंक्तियों पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें एकल न्यायाधीश के फैसले की ‘सत्यता’ पर सवाल उठाया गया था। इस फैसले में डीडीए को शाही ईदगाह पार्क में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की मूर्ति स्थापित करने की भी अनुमति दी गई थी।

मामले की सुनवाई जब बुधवार को हुई तो कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और जस्टिस तुषार राव गेडेला की पीठ ने विवाद को सांप्रदायिक रंग देने के लिए ईदगाह समिति की निंदा की और निर्देश दिया वह इस तरह के आचरण के लिए कल तक (26 सितंबर) तक माफीनाम जारी करे।

कोर्ट की शाही ईदगाह प्रबंध समिति पर तल्ख टिप्पणी

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कार्यवाहक चीफ जस्टिस मनमोहन ने कहा, ‘अदालत के जरिए सांप्रदायिक राजनीति खेली जा रही है! आप मामले को ऐसे पेश कर रहे हैं जैसे कि यह एक धार्मिक मुद्दा है, लेकिन यह कानून और व्यवस्था की स्थिति है।’

वहीं, जस्टिस गडेला ने कहा, ‘प्रतिमा (झांसी की रानी] का होना बहुत गर्व की बात है। हम इन दिनों महिला सशक्तिकरण के बारे में बात करते हैं और आपको इससे समस्या है।’

कार्यवाह मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने कहा, ‘वह सभी धार्मिक सीमाओं से ऊपर एक राष्ट्रीय नायक हैं। याचिकाकर्ता (मस्जिद समिति) सांप्रदायिक रेखाएं खींच रहे हैं और अदालत का इस्तेमाल किया जा रहा है। हमें सांप्रदायिक आधार पर विभाजन नहीं बंटना चाहिए। आपका सुझाव ही विभाजनकारी है। यदि जमीन आपकी थी, तो आपको ही स्वेच्छा से प्रतिमा स्थापित करने की पहल करनी चाहिए थी!’

शाही ईदगाह कमिटी की क्या दलील थी?

शाही ईदगाह कमेटी के वकील ने बुधवार की सुनवाई में दलील दी थी कि शाही ईदगाह के सामने झांसी की रानी की प्रतिमा स्थापित करने से क्षेत्र में कानून व्यवस्था की स्थिति पैदा हो सकती है।

उन्होंने कोर्ट को बताया कि दिल्ली अल्पसंख्यक समिति ने पहले यथास्थिति का आदेश पारित किया था और इसलिए मूर्ति स्थापित नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक समिति के इस आदेश को एकल न्यायाधीश के समक्ष चुनौती नहीं दी गई और इसलिए यह आदेश अभी भी लागू होगा।

मस्जिद समिति के वकील ने आगे कहा कि डीडीए और दिल्ली नगर निगम द्वारा एक वैकल्पिक स्थल की पहचान की गई है, जहां प्रतिमा स्थापित की जा सकती है।

हालांकि, इसी दौरान सुनवाई में नया मोड़ तब आया, जब डीडीए के वकील ने समिति की दलीलों में कुछ ‘निंदनीय’ पैराग्राफों पर अदालत का ध्यान खींचा। डीडीए के वकीले ने कहा कि ये बातें एकल न्यायाधीश के लिए थी जिन्होंने हाल ही में फैसला दिया था विवादित भूमि डीडीए की है।

इसके बाद डिवीजन बेंच ने इस पर गौर करते हुए शाही ईदगाह प्रबंध समिति को ऐसी दलीलें देने के लिए माफी पत्र देने का आदेश दिया। कोर्ट की फटकार के बाद समिति के वकील ने बिना शर्त माफी मांगने पर सहमति जताने के अलावा अपील वापस लेने की अनुमति मांगी। कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 27 सितंबर को करेगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा
Exit mobile version