Friday, October 10, 2025
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पैंगोंग झील के किनारे सेना के शिवाजी की प्रतिमा लगाने पर विवाद, लद्दाख पार्षद ने पूछा- क्षेत्रीय संस्कृति से क्या है संबंध

लेह: भारतीय सेना ने 26 दिसंबर को पूर्वी लद्दाख में पैंगोंग त्सो झील के किनारे 14,300 फीट की ऊंचाई पर छत्रपति शिवाजी महाराज की एक भव्य प्रतिमा स्थापित की। इसकी घोषणा 28 दिसंबर को की गई।

यह स्थान चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी-LAC) के पास स्थित है, जिससे यह घटनाक्रम रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। भारतीय सेना के लेह स्थित 14 कोर (फायर एंड फ्यूरी कोर) ने प्रतिमा का उद्घाटन किया।

इस मौके पर लेफ्टिनेंट जनरल हितेश भल्ला ने इसे मराठा योद्धा शिवाजी की “अटूट भावना” का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रतिमा भारत के प्राचीन रणनीतिक कौशल को आधुनिक सैन्य क्षेत्र में एकीकृत करने के प्रयासों का हिस्सा है।

हालांकि, यह पूरी घटना अब विवाद का विषय बन गई है, क्योंकि कुछ लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि लद्दाख की स्थानीय संस्कृति और पारिस्थितिकी के लिहाज से शिवाजी की प्रतिमा का क्या संबंध है।

पूर्वी लद्दाख में शिवाजी की प्रतिमा को लेकर चुशुल के पार्षद ने जताई नाराजगी

चुशुल के पार्षद कोंचोक स्टैनजिन ने भी इस पर आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि स्थानीय समुदायों से बिना सलाह किए इसे स्थापित किया गया है और इसका लद्दाख के पर्यावरण और वन्यजीवों से कोई तालमेल नहीं है।

स्टैनजिन ने यह भी सुझाव दिया कि ऐसी परियोजनाओं को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो स्थानीय समुदायों और प्रकृति का सम्मान करती हों।

भारतीय सेना के वरिष्ठ अफसरों ने प्रतिमा लगाने की है वकालत

सेना से जुड़े कुछ वरिष्ठ अधिकारियों ने यह भी सुझाव दिया कि लद्दाख में डोगरा जनरल जोरावर सिंह की प्रतिमा होनी चाहिए थी। जनरल सिंह ने 19वीं सदी में लद्दाख पर विजय प्राप्त की थी और उनका सैन्य अभियान लद्दाख को जम्मू और कश्मीर राज्य में शामिल करने का कारण बना था।

यह प्रतिमा चीन के साथ सीमा विवाद के बीच स्थापित की गई है। पैंगोंग त्सो झील एलएसी के पास स्थित है, जो भारत और चीन के बीच वास्तविक सीमा है। दोनों देशों के बीच 2020 में हिंसक झड़प के बाद सीमा पर गतिरोध बना हुआ था, लेकिन अक्टूबर 2024 में दोनों देशों ने सैनिकों की वापसी पर सहमति जताई।

इसके बाद भारतीय सेना ने इस क्षेत्र में बुनियादी ढांचे में सुधार करने के प्रयास किए, जिसमें सड़कें और पुल बनाना शामिल है। इस प्रतिमा का स्थान इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह क्षेत्र भारत और चीन के बीच सीमा विवाद से जुड़ा हुआ है और भारतीय सेना ने इसे अपनी सुरक्षा और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने के रूप में देखा है।

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