Friday, October 10, 2025
Homeभारतकेंद्र सरकार ने कहा, वैवाहिक बलात्कार कानूनी नहीं सामाजिक समस्या, अपराधीकरण के...

केंद्र सरकार ने कहा, वैवाहिक बलात्कार कानूनी नहीं सामाजिक समस्या, अपराधीकरण के खिलाफ

नई दिल्ली: वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित किया जाने की मांग वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार ने पहली बार अपना स्पष्ट मत सुप्रीम कोर्ट में रखा है। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को दिए हलफनामे में कहा है कि ‘जबकि एक पति के पास निश्चित रूप से पत्नी की सहमति का उल्लंघन करने का मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन फिर भी ऐसे उल्लंघन को ‘बलात्कार’ कहना अत्यधिक कठोर और असंगत होगा।’

केंद्र ने मैरिटल रेप को अपराध बताने का क्यों किया विरोध?

गृह मंत्रालय ने मामले पर अपने 49 पन्ने के हलफनामे में कहा कि अगर वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी में लाया जाता है तो यह न केवल वैवाहिक संबंधों को बुरी तरह प्रभावित करेगा बल्कि भारत जैसे देश में विवाह संस्था में भी गंभीर गड़बड़ी पैदा होगी। सरकार ने ये भी कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म का पूरा मामला कानूनी से कहीं अधिक सामाजिक मुद्दा है।

सरकार का मानना है कि वैवाहिक बलात्कार को अगर अपराध की श्रेणी में लाया जाता है तो सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में इसका दुरुपयोग भी हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि किसी के लिए यह साबित करना मुश्किल होगा कि संबंध समहति से बनाए गए थे या नहीं। केंद्र ने यह भी तर्क दिया कि याचिकाकर्ताओं की यह गलत धारणा है कि विवाह ‘केवल एक निजी संस्था’ है।

केंद्र ने हालांकि अपने हलफनामे में ‘वैवाहिक बलात्कार’ को एक ऐसे कृत्य के रूप में स्वीकार किया जिसे ‘अवैध और आपराधिक होना चाहिए।’ लेकिन साथ ही कहा कि विवाह के भीतर इस तरह के उल्लंघन के परिणाम बाहर के नतीजों से भिन्न होते हैं। केंद्र ने कहा, ‘संसद ने विवाह के भीतर सहमति की सुरक्षा के लिए आपराधिक कानून प्रावधानों सहित विभिन्न उपाय प्रदान किए हैं। आईपीसी की धारा 354, 354ए, 354बी, 498ए और घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम- 2005 ऐसे उल्लंघनों के लिए गंभीर दंडात्मक परिणाम सुनिश्चित करते हैं।’

सरकार ने पहली बार रखा अपना मत

यह पहली बार है जब सरकार ने ‘वैवाहिक बलात्कार’ के मुद्दे पर अपना मत स्पष्ट तौर पर रिकॉर्ड पर रखा है और इसे अपराध की श्रेणी में रखने की याचिकाओं का विरोध किया है। इससे पहले 2022 में दिल्ली हाई कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने कहा था कि ‘इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा की जरूरत है’ और उस समय मौजूदा आपराधिक कानूनों की समीक्षा भी लंबित थी।

हाई कोर्ट ने दो जजों की बेंच ने तब खंडित फैसला सुनाते हुए कहा था, ‘जहां तक भारत सरकार (UOI/Union Of India) का सवाल है, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हमारे सामने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि यूओआई इस मामले में कोई स्टैंड नहीं लेना चाहता है। वास्तव में ये हलफनामा दायर किया गया था कि यूओआई इस मामले में आगे बढ़ने से पहले और चर्चा करना चाहेगा।’

बेंच एक एक जज जस्टिस राजीव शकधर जो इसे अपराध घोषित करने के पक्ष में थे, उन्होंने कहा था कि दलीलें ‘और अधिक समृद्ध होतीं, यदि तुषार मेहता यानी ने मामले में अदालत की और सहायता की होती।’

कर्नाटक हाई कोर्ट में भी उठा था मुद्दा

साल 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी एक पति के खिलाफ बलात्कार के मुकदमे की अनुमति दी थी। कोर्ट ने कहा था, ‘वैवाहिक बलात्कार में अपवाद देना सदियों पुरानी वाली बात है। एक आदमी एक आदमी है। बलात्कार एक बलात्कार है, चाहे वह किसी पुरुष, ‘पति’ द्वारा महिला ‘पत्नी’ पर किया गया हो।’

हालांकि, इस मुकदमे पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही इस विषय पर और याचिकाओं को एक साथ सुनने का फैसला किया। कोर्ट ने कर्नाटक हाई कोर्ट वाले मामले को भी दिल्ली हाई कोर्ट के खंडित फैसले से जुड़ी याचिकाओं के साथ जोड़ दिया था।

याचिकाकर्ताओं ने क्या मांग रखी है?

सुप्रीम कोर्ट दाखिल याचिकाओं में आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के अपवाद 2 और नए कानून बीएनएस की धारा 63 (बलात्कार) के अपवाद 2 को चुनौती दी गई है। दायर याचिकाओं में नए और पुराने कानूनों के उस प्रावधान को रद्द करने की मांग की गई है, जिसमें पत्नी की सहमति के बिना यौन संबंध बनाने को दुष्कर्म के अपराध की श्रेणी से बाहर रखा गया है।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments

मनोज मोहन on कहानीः याद 
प्रकाश on कहानीः याद 
योगेंद्र आहूजा on कहानीः याद 
प्रज्ञा विश्नोई on कहानीः याद 
डॉ उर्वशी on एक जासूसी कथा