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पुस्तक समीक्षा- बाकी सब तो माया है: छोटे-छोटे क्षणों से बनी बड़ी कहानियां

पिछले दिनों लोकभारती प्रकाशन से आया पराग मांदले का कथा संग्रह ‘बाकी सब तो माया है’ उनका तीसरा कहानी संग्रह है। इस संग्रह में दर्ज कहानियां समाज की बदलती विसंगतियों और परिवर्तित होते जीवन-मूल्यों को तो दर्शाती ही हैं, आज की स्त्रियों के जीवन को भी बड़े करीब से देखती हैं। यह़ा ‘बाकी सब तो माया है’ की समीक्षा कर रही हैं लकी राजीव, इनकी सहज शैली इसे समीक्षा से ज्यादा एक पाठकीय प्रतिक्रिया या फिर एक ‘प्रशंसक की पाती’ के करीब ला खड़ा करती है।

“कुछ इच्छाओं को यदि उनके जागने के बाद अनदेखा कर दो तो वह अपनी‌ उपेक्षा के दंश से ही दम तोड़ देती हैं” ये ऐसी पंक्तियां हैं जिन‌ पर रुका जाता है, सोचा जाता है और फिर इन्हीं पंक्तियों को दोबारा पढ़ा जाता है।

कहानियां दिल की हैं, दिमाग़ की हैं लेकिन मनोविज्ञान हर कहानी के भीतर बैठा राज करता दिखता है। मैं यहां पराग मांदले के कहानी संग्रह ‘बाक़ी सब तो माया है’ के बारे में बात कर रही हूं, आगे बढ़ने से पहले एक ख़ास बात कहूंगी कि यदि आपको लेखक का नाम न पता हो तो यक़ीन करना‌ मुश्किल होता है,एक पुरुष लेखक की क़लम से स्त्री मन की ये कहानियां उपजीं होंगी?

पहली कहानी ‘चाह की गति न्यारी’ ऐसे विषय पर है, जिसके बारे में लोग बात करने में भी हिचकते हैं। मुद्दा ये है कि क्यों हिचकते हैं? सृजन एक पवित्र प्रक्रिया है, उसकी पवित्रता का ध्यान नहीं रखना चाहिए? पति-पत्नी के उन पलों में हिंसा की दुर्गंध का क्या काम है, जिन पलों में बस प्रेम की सुगंध ही फैली होनी चाहिए!

“क्या तुम उस पल‌ को याद कर सकती हो,जिस पल के संयोग का नतीजा ये बच्चा अथर्व है! मेरा अनुमान है कि जिस क्षण बीजारोपण हुआ,उस पल तुम्हारे मन में तीव्र घृणा का भाव रहा हो।” कहानी के एक पात्र से कहलवायी गयी ये बात कितनी गहरी है, कितनी महत्वपूर्ण! एक ही परिवार के दो बच्चों के व्यवहार में हम अंतर देखते हैं न, जबकि उनको समान माहौल मिला, समान रूप से पाले‌ गए। क्या हो सकता है कारण? ये कहानी एक ऐसे बच्चे के बारे में है, जिसका अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं, वो गुस्से में कुछ भी कर सकता है ( घर में हुआ हादसा इसी गुस्से ने करवाया, वो हादसा जिसके जिक्र से कहानी की शुरुआत होती है)

अगली कहानी ऐसे रिश्ते पर आधारित है, जिसका होना ही अपने आप में समस्या है, दुविधा है, सब कुछ धुंधला है, इसीलिए कहानी का नाम है, ‘बाक़ी सब तो माया है।’

यहाँ सोशल मीडिया पर मिले दो लोगों की दास्तान बतायी गयी है, कहानी की ख़ूबसूरत बात ये है कि इस लगाव और अलगाव के लिए किसी को भी ज़िम्मेदार नहीं ठहराया गया है, प्रवाह ऐसा है कि बस रुकते नहीं बनता ( कहानी इस रिश्ते के बारे में भी ऐसा ही कुछ बताती है जहां न बढ़ते बनता है,न रुकते बनता है) रिश्ता है, रिश्ते में प्रेम है, अपराध बोध भी है। बहुत स्वाभाविक भाव हैं और ये भाव स्वाभाविक भाषा में ही शब्दों में ढाले भी गए हैं।

“तुमने कभी यह नहीं सोचा कि तुम्हारी दोस्त के रूप में मेरा तुम्हारे परिवार द्वारा सहज स्वीकार मुझे कभी सहज नहीं होने देता। तुम्हारी पत्नी का औदार्य मेरे भीतर जाने अनजाने एक अपराध बोध जगाता था। मेरे मन में रह रहकर यह ग्लानि भरता था कि तुम्हारे समय और तवज्जो पर मेरा नहीं तुम्हारी पत्नी का, तुम्हारे परिवार का अधिकार है।’

‘वस्ल की कोख में खिलता है फूल हिज्र का’, शीर्षक कहानी विरोधाभास दर्शाता है, लेकिन कहानी पूरी होते होते वह अपने शीर्षक कै सार्थक कर जाता है। कहानी प्रेम की है, प्रेमियों की है। कहानी राजनीति की है, वर्ग-भेद‌ की है। कहानी सपने की है, सपनों की है..

एक सपना पूरा होने को है, दूसरा सपना टूटने को। मुझे कहानी पढ़कर लगा कि कहाँ हैं बॉलीवुड निर्देशक, जो ऐसी किसी स्क्रिप्ट पर शानदार मूवी नहीं बनाते, कौन कहता है अच्छे प्लॉट का अकाल है? यहां नायक शंकर की बेचैनी ऐसे दिखाई गई है कि पाठक बेचैन हो जाता है, लेखक को बधाई!

कहानी ‘दूर है मंज़िल अभी’ एक छोटी सी कहानी है जो कि गहरा असर करती है। बात केवल उस साधन को बदलने की है, जिससे घर से ऑफिस तक की दूरी तय की जाती है। पर क्या बात केवल इतनी सी है? हमारे पास जो साधन है, वो क्या ज़रूरत के हिसाब से लिया जाता है। अगर हां, तो क्लास/स्टेटस/हैसियत जैसे शब्द इसके साथ जुड़ते कैसे हैं? कहानी अंत तक आते आते चेहरे पर तो मुस्कान छोड़ जाती है लेकिन मन के भीतर एक सवाल! “जीवन और उसे जीने के तरीके के बारे में मेरी अपनी समझ थी, मैं उसके अनुरूप ही अपने को ढालने का प्रयास कर रहा था। मगर मैं यह आग्रह नहीं रखना चाहता था कि मेरी कसौटी को कोई दूसरा भी प्रमाण माने।”इन पंक्तियों को पोस्टर बनाकर यदि हर घर में टांग दिया जाए तो जेनरेशन गैप से उपजी परिस्थितियां उतनी डरावनी नहीं होंगी, जितनी धीरे धीरे होती जा रही हैं।

‘रक्तकुंड में खिला कँवल एक’ कहानी को जहां तक मेरी समझ है, जादुई यथार्थवाद की श्रेणी में रखा जा सकता है। कहानी पढ़ते हुए एक सम्मोहन महसूस होता है, विचारों का इधर से उधर निर्बाध गति से बहना..जैसे आंखें मूंदकर सपना देखा जा रहा हो। सपने में हम क्या देखते हैं, वही जो दिमाग़ के कोने-कोने में धंसा रहता है। परिवार, ऑफिस, ग़लत सही का हिसाब और अतीत का कोई अधूरा अध्याय…वही सपना ये कहानी दिखाती है, लेखक की आंखों से! ये कहानी एक पेंटिंग है, या कहें कि छोटी-छोटी पेंटिंग जोड़कर बनाया एक कोलाज है। जो भी है यह बेहद लुभावना है। ज़रा इन पंक्तियों को एक नज़र देखिए-

“मगर उसे महिला का चेहरा उसे कुछ जाना पहचाना लगा, अचानक जैसे कोई बिजली चमकी और उसने पहचाना कि यह चेहरा उसकी पत्नी से मिलता था! पत्नी का ख्याल आते ही उसकी आंखों से फिर एक बार जो आंसुओं की बारिश शुरू हुई तो रुकने का नाम नहीं लिया.. लगातार रोने से उसकी आंखें सूज गई थी और अपनी पलकों के भार से मुंदने लगी थीं। कुछ पलों बाद उसे महसूस हुआ जैसे वह किसी समुद्र में है और ऊंची नीची लहरों के थपेड़े खाता हुआ डूब रहा है, तभी उसे बीच समंदर में एक काला फोन दिखाई दिया। उसके भीतर यह ख़्याल उठा कि फोन का रिसीवर उठाते ही फोन एक नाव में तब्दील हो जाएगा।”

अगली कहानी है- ‘बदलाव’ ..ये कहानी चौंकाती है। शायद मैंने पहली ऐसी कहानी पढ़ी है, जिसके पात्र मनुष्य नहीं, बल्कि कुछ और हैं। सब कुछ बताकर कहानी का मज़ा खत्म करने का पाप मैं नहीं लूँगी लेकिन इतना ज़रूर कहूंगी कि ये पात्र प्रतीकात्मक भी हो सकते हैं, यदि मैं इनको मनुष्य रूप में देखूं तो भी ईर्ष्या, द्वेष, होड़ इसी स्तर की दिखती है।

‘लौटने की आस’ कहानी पर मुझे आपत्ति है, इस पर उपन्यास क्यों नहीं लिखा लेखक ने? इतना महत्वपूर्ण विषय उठाया गया है, आदिवासी स्त्रियों के स्वास्थ्य को लेकर संघर्ष, उनके जीवन में हर दिन आती समस्याएं, जिन पर लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है। कहानी से यह साफ दिखता है कि इस पर लिखने के लिए लेखक ने बहुत मेहनत की होगी, जानकारी जुटाई होगी, प्रक्रिया समझी होगी। ख़ैर, ये तो पाठकों का सौभाग्य है कि ये कहानी इस संग्रह में उपलब्ध है।

अंत में जिस कहानी की बात करूंगी वो इस संग्रह की सबसे जानदार कहानी है, शीर्षक है ‘मुकम्मल नहीं, ख़ूबसूरत सफ़र हो’..स्त्री मन की उथल-पुथल जिस तरह से इस कहानी में दिखायी गयी है, उसको पढ़कर लगता है कि न न, ये तो कोई पुरुष लिख ही नहीं सकता। बॉस के प्रति झुकाव होना, सम्मान का प्रेम में परिवर्तित होना तो सामान्य बात है लेकिन कहानी आगे बढ़ते बढ़ते भावनाओं के रोलर कोस्टर पर सवार रखती है। फिर वो घटना… जिस घटना ने नायिका को बिखेर कर रख दिया, वो घटना दरअसल हुई इसलिए थी कि सब कुछ बिखर न जाए! कहानी के अंत तक आते आते नायिका जब ये बात समझ जाती है, ठीक उसी वक्त कहानीकार के लिए तालियों की आवाज़ सुनायी देती है…ये कहानी आराम से, ठहरकर पढ़ने वाली है, पढ़कर समझने वाली है और समझकर आत्मसात करने वाली है।

“सागर सर की आंखें अब भी बंद थी। उनके चेहरे पर एक मासूम मुस्कराहट थी, समंदर के किनारे अपने पांव पर रेत थापकर घरौंदा बनाने में तन्मय किसी छोटे बच्चे किसी मासूम मुस्कराहट। एक ओर उनकी हथेलियों से शरीर में प्रवाहित होती ऊष्मा मुझे बेचैन कर रही थी और मैं अपनी हथेलियां हटा लेना चाहती थी, वहीं सागर सर को देखते हुए मुझे लग रहा था कि मैं अनंत काल तक उन्हें इसी तरह देखती रहूं। यह पल ऐसे ही स्थिर हो जाएं, जैसे किसी विशाल जलप्रपात से एक विशाल धारा नीचे गिरे और धरती को छूते ही स्थिर हो जाए। मैं अपलक उस धारा की हजारों लड़ियों की माला को जी भर के देखूं, उनके साथ खेलूं उनमें भीगूं और फिर उनसे अछूती परे होकर फिर उन्हें अपलक देखूं.. मगर ना उस धारा का प्रवाह ठहरता है कभी, ना समय की धारा का”

ये कहानी सबको पढ़नी चाहिए, हर युवा को…किसी कमज़ोर पल‌ का प्रवाह उठाकर कहाँ पटक सकता है, ये जानना चाहिए और प्रेम का असली स्वरूप सबकुछ नष्ट करना नहीं, बल्कि सब कुछ बचा लेना‌ होता है, ये भी समझना चाहिए।

इस संग्रह की सबसे ख़ास बात है कि हर कहानी में कुछ अलग बात है, अलग प्रयोग किए गए हैं। मेरे लिए कहानियों का मतलब है रोचक होना।

‘फिर क्या हुआ’ जैसे प्रश्न का बने रहना और उसका उत्तर पा लेना…यानी कहानी शुरू होती है, अंत से जाकर मिलती है। लेखक को ख़ूब सारी शुभकामनाएं, वो इसी तरह अच्छी कहानियां रचते रहें और पाठकों को उपलब्ध कराते रहें।

समीक्षित किताब- बाकी सब तो माया है
विधा- कहानी
प्रकाशक- लोकभारती प्रकाशन
प्रकाशन वर्ष- 2025
मूल्य-299

लकी राजीव
जन्म-कानपुर (उ प्र) शिक्षा - एम ए (अंग्रेजी साहित्य), बीएड, शास्त्रीय नृत्य (भरतनाट्यम) में प्रशिक्षित, अनेक पत्रिकाओं में कहानियां प्रकाशित, रेडियो पर कहानियाँ प्रसारित, पहला कहानी संग्रह 'करिया' भी प्रकाशित। संप्रति - स्वतंत्र लेखन संपर्क- luckyrajeevlucky@gmail.com

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