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Axiom-4 मिशन: शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में 14 दिन रहने के दौरान क्या-क्या प्रयोग करेंगे?

नई दिल्ली: भारतीय वायु सेना (IAF) के ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला इतिहास रचने जा रहे हैं। उन्होंने अपने पहले अंतरिक्ष मिशन के लिए उड़ान भरी। अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए एक्सिओम-4 मिशन (AX-4) बुधवार (25 जून) दोपहर भारतीय समय के अनुसार 12.01 बजे फ्लोरिडा में नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (Nasa) केनेडी स्पेस सेंटर से सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ। 

इस मिशन के तहत एलन मस्क के स्पेसएक्स कैप्सूल- क्रू ड्रैगन C213- पर सवार होकर अलग-अलग देशों के चार अंतरिक्ष यात्री दो सप्ताह के लिए अंतरिक्ष में जा रहे हैं। भारत के शुभांशु शुक्ला इस दौरान एक्सिओम-4 मिशन के पायलट हैं और साथ ही ISS पर रहने के दौरान कई प्रयोग भी करेंगे। आईए, इस पर विस्तार से नजर डालते हैं।

शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष में कौन-कौन से प्रयोग करेंगे?

भारतीय वायुसेना के 39 वर्षीय शुभांशु शुक्ला, एक्सिओम-4 मिशन के पायलट हैं। शुक्ला समेत चार अंतरिक्ष यात्री अपने 14 दिनों के प्रवास के दौरान अंतरिक्ष में 60 प्रयोग करेंगे। स्पेस स्टेशन पहुंचने के बाद भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला भारत के लिए सात प्रयोग करेंगे, जिनमें मशल रिजनरेशन, पौधों से जुड़ा जीव विज्ञान (plant biology), सूक्ष्म शैवाल विकास (microalgae growth) और सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण (microgravity) में मानव-कंप्यूटर संपर्क से संबंधित प्रयोग शामिल हैं।

मायोजेनेसिस और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के मांसपेशी पुनर्जनन प्रयोग (muscle regeneration) में शुक्ला संवर्धित मांसपेशी स्टेम कोशिकाओं का विश्लेषण करेंगे, ताकि उनके पुनर्जनन और अंतरिक्ष में माइटोकॉन्ड्रियल मेटाबॉलिज्म में होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जा सके।

वैज्ञानिक अंतरिक्ष यात्रियों में अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के दौरान मांसपेशियों को होने वाले नुकसान से निपटने के तरीके खोज रहे हैं। ये प्रयोग पृथ्वी पर बढ़ती उम्र से मांसपेशियों को होने वाले नुकसान या मांसपेशियों की बीमारियों से पीड़ित लोगों के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

शुभांशु शुक्ला द्वारा किया जाने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण शोध अंतरिक्ष में खाद्य सूक्ष्म शैवाल पर सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण विकिरण के प्रभाव का स्टडी करना शामिल है। वे विश्लेषण करेंगे कि गुरुत्वाकर्षण की अनुपस्थिति में ये सूक्ष्मजीव किस प्रकार विकसित होते हैं। इस प्रयोग को इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (ICGEB) द्वारा डिजाइन किया गया है जिसमें कहा गया है कि सूक्ष्म शैवाल का उपयोग लंबी अंतरिक्ष उड़ानों में प्रयोगों के लिए किया जा सकता है, क्योंकि वे स्थायी रूप से भोजन उगाने में कामयाब रहते हैं।

प्रयोग में यह भी जांच की जाएगी कि क्या इन सूक्ष्मजीवों को भविष्य के मिशनों में अंतरिक्ष में भोजन के रूप में इस्तेमाल किए जाने की संभावना है।

एक्स-4 मिशन में अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में मूंग और मेथी के बीजों के विकास का अध्ययन भी करेंगे। इससे भविष्य की अंतरिक्ष उड़ानों के लिए खाद्य इंतजाम को और बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है।

भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु ने भी मिशन के लिए दो प्रयोग तैयार किए हैं। इसमें अंतरिक्ष में कंप्यूटर स्क्रीन के उपयोग के प्रभाव का अध्ययन करना और माइक्रोफौना, और यूटार्डिग्रेड पैरामैक्रोबियोटस या जल भालू (एक सूक्ष्मप्राणी) की वृद्धि और अस्तित्व का आकलन करना शामिल है।

इस मिशन के दौरान यह स्टडी भी किया जाना है कि माइक्रोग्रैविटी किस तरह से अंतरिक्ष यात्रियों की नजर, स्पर्श और आँखों की हरकत को प्रभावित करती है। भविष्य के अंतरिक्ष यान के लिए कंट्रोल सिस्टम के डिजाइन को बेहतर बनाने के लिए यह स्टडी महत्वपूर्ण है।

IISc के दूसरे प्रयोग में यह अध्ययन करना भी शामिल है कि टार्डिग्रेड्स या जल भालू (एक प्रकार का सूक्ष्मप्राणी) अंतरिक्ष में कैसे जीवित रहते हैं। शुभांशु शुक्ला इन जलीय जीवों का आकलन करेंगे जो विकिरण, वैक्यूम और ठंडे तापमान को सहन कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का लक्ष्य उन जीनों की पहचान करना है जो इन सूक्ष्मप्राणियों को ऐसी स्थिति में रहने लायक बनाते हैं।

पायलट के तौर पर शुभांशु शुक्ला की भूमिका क्या होगी?

मिशन के पायलट के रूप में भारतीय वायुसेना के शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष यान के प्रक्षेपण, इसके एक कक्ष से दूसरे कक्ष में जाने, ISS पर डॉकिंग और अनडॉकिंग के साथ-साथ अंतरिक्ष यान के फिर से पृथ्वी की कक्षा में प्रवेश और लैंडिंग के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। वह पृथ्वी पर मिशन नियंत्रण टीमों के साथ संचार का समन्वय भी करेंगे।

बताते चलें कि भारत के शुभांशु शुक्ला के अलावा, Ax-4 क्रू में पोलैंड और हंगरी के सदस्य भी शामिल हैं, जो दोनों देशों का ISS के लिए पहला मिशन है। पोलैंड, हंगरी और भारत के अलावा अमेरिका की पैगी व्हिटसन भी इस मिशन का हिस्सा हैं।

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