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‘आप’ से झगड़े के बीच क्या स्वाति मालीवाल की राज्य सभा की सदस्यता भी खतरे में पड़ जाएगी? नियम क्या कहता है…

दिल्ली: आम आदमी पार्टी (आप) और स्वाति मालीवाल के बीच विवाद अब चरम पर है। मालीवाल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूर्व पीएस पर उनके साथ सीएम हाउस में मारपीट तक का आरोप लगाया। वहीं आम आदमी पार्टी यह तक अब कह रही है कि मालीवाल भाजपा के इशारे पर काम कर रही हैं। इन सबके बीच सवाल ये भी है कि क्या इस विवाद की वजह से मालीवाल की राज्य सभा की सदस्यता भी चली जाएगी। उन्हें आम आदमी पार्टी की ओर से राज्य सभा का सांसद बनाया गया है। ऐसे में अगर विवाद बढ़ा और पार्टी ने मालीवाल के खिलाफ कोई एक्शन लिया या पार्टी से बाहर किया तो क्या होगा? इस बारे में क्या नियम हैं, आईए जानते हैं।

केवल दो परिस्थितियों में जा सकती है संसद की सदस्यता

भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची को नियंत्रित करने वाले नियमों के अनुसार राज्य सभा सांसद को केवल दो परिस्थितियों में अयोग्य ठहराया जा सकता है। एक यह कि यदि वह स्वेच्छा से इस्तीफा देता है और दूसरा ये कि यदि कोई सांसद पार्टी के निर्देशों के विपरीत जाकर संसद में वोट करता है या फिर मतदान के दौरान गैरहाजिर रहता है।

इसके मायने ये हुए कि भले ही ‘आप’ मालीवाल को पार्टी से निलंबित (suspend) कर देती है, लेकिन वह पार्टी की सांसद बनी रहेंगी। उन्हें बस सदन में मतदान के समय ‘आप’ के निर्देशों का पालन करना होगा। हालांकि, अगर पार्टी उन्हें निकाल देती है तो वह अपने आप ही राज्यसभा की स्वतंत्र सांसद बन जाएंगी और जानकारों के मुताबिक फिर वह किसी भी पार्टी के निर्देशों से बंधी नहीं रहेंगी। हालांकि, इस स्थिति में मालीवाल के लिए जरूरी होगा कि वह अपना कार्यकाल खत्म होने तक किसी और पार्टी की सदस्यता हासिल नहीं करें।

अभी फिलहाल मालीवाल के केस में आम आदमी पार्टी की ओर से किसी भी तरह से संकेत नहीं दिए गए हैं कि वह आगे कदम अपने सांसद के खिलाफ उठाएगी। यह भी गौर करने वाली बात है कि मालीवाल ‘आप’ की नई सांसद हैं और इसी साल जनवरी में उन्होंने शपथ ग्रहण किया था।

हाल में दिखा है ऐसा उदाहरण

दसवीं अनुसूची के पैराग्राफ-2 की धारा (2) के अनुसार, ‘किसी सदन का एक निर्वाचित सदस्य जो किसी राजनीतिक दल द्वारा खड़े किए गए उम्मीदवार के तौर पर चुना गया हो, उसे सदन का सदस्य होने से अयोग्य घोषित किया जाएगा यदि वह ऐसे चुनाव के बाद किसी अन्य राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।’

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्यसभा सदस्य रीताब्रत बनर्जी का उदाहरण ताजा है। उन्हें 2017 में पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था, लेकिन वह 2020 तक एक स्वतंत्र सांसद बने रहे। बाद में वे तृणमूल कांग्रेस से जुड़े।

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