Saturday, October 11, 2025
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बिहार में तेजस्वी यादव का हर परिवार को सरकारी नौकरी देने का वादा पूरा होना क्यों लगभग असंभव है?

तेजस्वी यादव ने वादा किया है कि बिहार में सत्ता में आने पर वे राज्य में हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी देंगे। उन्होंने कहा है कि सरकार बनने के 20 दिनों के अंदर कानून पारित किया जाएगा और अगले 20 महीनों के अंदर बिहार के हर परिवार को सरकारी नौकरी दी जाएगी।

पटना: बिहार में चुनावी सरगर्मी के बीच राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता तेजस्वी यादव ने बड़ा दांव खेला है। उन्होंने हाल में बिहार में सत्ता में आने पर हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देने का वादा कर डाला। बिहार जैसे राज्य में सरकारी नौकरी केवल एक स्थायी रोजगार भर नहीं बल्कि समाज में सम्मान पाने का भी एक पैमाना है। राज्य में प्राइवेट नौकरियों की कमी के बीच ज्यादातर लोगों का लक्ष्य सरकारी नौकरी हासिल करने का होता है। ऐसे में तेजस्वी ने जो दांव फेंका है, उसने एक चर्चा तो छेड़ ही दी है।

हालांकि, यहां सवाल ये भी है कि तेजस्वी यादव ने जो वादा किया है, क्या वो केवल चुनावी जुमला भर है? क्या बिहार में हर एक परिवार के लिए सरकारी नौकरी देना संभव है? तेजस्वी को यह वादा इसलिए भी करना पड़ा क्योंकि बिहार में बेरोजगारी और पलायन एक बड़ा मुद्दा रहा है। साथ ही हाल में सत्तारूढ़ एनडीए और प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी ने रोजगार सृजन को लेकर कई चुनावी वादे किए हैं। लेकिन फिर सवाल यही है कि तेजस्वी ने जो वादा किया है, क्या वो वाकई पूरा किया जाएगा या सिर्फ पॉलिटिकल स्टंट भर है। आईए आंकड़ों से समझते हैं।

तेजस्वी यादव का सरकारी नौकरी का वादा और आंकड़े

साल 2023 के जाति-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार बिहार की 13.07 करोड़ की आबादी में लगभग 2.77 करोड़ परिवार हैं। इनमें से अभी केवल 1.57 प्रतिशत लोग ही सरकारी क्षेत्र में कार्यरत हैं। अगर हम प्रति परिवार एक नौकरी भी मान लें, तो इसका मतलब है कि लगभग 21 लाख परिवारों में वर्तमान में एक सदस्य सरकारी वेतन प्राप्त कर रहा है। ऐसे में तेजस्वी के चुनावी वादे के अनुसार वे शेष 2.56 करोड़ परिवारों यानी एक तरह से देखें तो लगभग पूरे राज्य को नई सरकारी नौकरियां देंगे।

हालाँकि, आंकड़े बताते हैं कि बिहार के सरकारी विभागों में केवल 5 लाख रिक्तियां हैं, जिससे इतने बड़े पैमाने पर भर्ती अभियान लगभग असंभव है।

अब और गणित लगाएंगे तो आंकड़े और चौंका देने वाला है। बिहार का 2024-25 का संशोधित बजट अनुमान लगभग 3,27,425 करोड़ रुपये है, जिसमें से 98,395 करोड़ रुपये पहले ही वेतन, पेंशन और ब्याज भुगतान आदि पर जा चुके हैं, जो राज्य के कुल व्यय का लगभग एक-तिहाई है।

वर्तमान में, बिहार सरकार केवल वेतन पर सालाना लगभग 54,000 करोड़ रुपये खर्च करती है। अगर 2.58 करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी दी जाए, तो न्यूनतम 25,000 रुपये मासिक वेतन पर भी, वार्षिक वेतन बिल लगभग 7.7 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा, जो राज्य के कुल बजट से दोगुना से ज्यादा है।

विश्लेषकों का कहना है कि ऐसा कदम बिहार को वित्तीय संकट की ओर धकेल देगा। इसके अलावा, जब सरकार के पास काम या पदों की कमी है, तो इतने सारे लोगों को नौकरी देने की व्यावहारिकता पर भी सवाल उठ रहे हैं। साथ ही 20 महीने में सभी परिवार को सरकारी नौकरी देने का लक्ष्य और भी मुश्किल है।

समस्या बस पैसे की नहीं…

वैसे, समस्या केवल वित्तीय नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस में पटना यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले अविरल पांडेय के छपे एक लेख के अनुसार राज्य के हालिया जाति सर्वेक्षण के आंकड़े बिहार में गहरी असमानताओं को भी बताते हैं। ऐसे में तेजस्वी यादव का वादा और अव्यवहारिक लगता हैं। दरअसल, बिहार में समग्र साक्षरता 79.7 प्रतिशत है लेकिन केवल 9.2 प्रतिशत आबादी ने उच्चतर माध्यमिक शिक्षा पूरी की है, और लगभग 7.46 प्रतिशत के पास ही स्नातक या इससे ऊपर की डिग्री है।

समाज में निचले तबतों में आंकड़े और भी निराशाजनक हैं। एससी में 3.44 प्रतिशत, ईबीसी में 4.95 प्रतिशत, और एसटी में 3.87 प्रतिशत ही स्नातक या उच्च योग्यता वाले हैं। अधिकांश सरकारी नौकरियों के लिए कम से कम मैट्रिक की आवश्यकता होती है, और क्लर्क या तकनीकी नौकरियों के लिए स्नातक या पेशेवर योग्यता की आवश्यकता होती है।

इस लिहाज से देखें तो लगभग चार घरों में से केवल एक ही घर भर्ती के लिए योग्य उम्मीदवार दे सकता है। इस तरह ‘प्रति परिवार एक सरकारी नौकरी’ का विचार और भी अव्यवहारिक लगने लगता है।

विनीत कुमार
विनीत कुमार
पूर्व में IANS, आज तक, न्यूज नेशन और लोकमत मीडिया जैसी मीडिया संस्थानों लिए काम कर चुके हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची से मास कम्यूनिकेशन एंड वीडियो प्रोडक्शन की डिग्री। मीडिया प्रबंधन का डिप्लोमा कोर्स। जिंदगी का साथ निभाते चले जाने और हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाली फिलॉसफी में गहरा भरोसा...
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