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आरबीआई ने लगातार 10वीं बार रेपो रेट में कोई बदलाव क्यों नहीं किया?

नई दिल्लीः भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की नई गठित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने 9 अक्टूबर 2024 को समाप्त हुई अपनी बैठक में रेपो दर को 6.5% पर स्थिर रखा। यह लगातार दसवीं बार हुआ है जब केंद्रीय बैंक ने इस प्रमुख नीतिगत दर को नहीं बदला। बैठक के दौरान, समिति ने मौद्रिक नीति रुख को ‘वापसी’ से बदलकर ‘तटस्थ’ कर दिया, लेकिन खुदरा महंगाई और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर के अनुमानों को क्रमश: 4.5% और 7.2% पर स्थिर रखा।

क्यों स्थिर रखी गई रेपो दर?

मौद्रिक नीति समिति ने 5:1 के बहुमत से रेपो दर को स्थिर रखने का निर्णय लिया। नए सदस्य नागेश कुमार ने रेपो दर में 25 बेसिस पॉइंट की कटौती का सुझाव दिया था। RBI गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि सितंबर की महंगाई दर में खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी और बेस इफेक्ट्स के कारण तेज उछाल की संभावना है। हालांकि, चौथी तिमाही में महंगाई दर में कुछ नरमी की उम्मीद है, लेकिन अप्रत्याशित मौसमीय घटनाओं और भू-राजनीतिक तनावों से महंगाई पर ऊपर की ओर दबाव बना रह सकता है।

विश्लेषकों का मानना है कि वर्तमान परिस्थितियों में केंद्रीय बैंक के लिए मौद्रिक नीति में ढील देना उचित नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि भले ही पिछले दो महीनों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के तहत महंगाई दर 4% के भीतर रही हो, लेकिन खाद्य महंगाई अभी भी एक बड़ी चिंता बनी हुई है। इसके अलावा, पश्चिम एशिया में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से वैश्विक तेल कीमतों में उछाल की आशंका है, जो महंगाई की अनिश्चितता को और बढ़ा सकती है।

महंगाई और विकास दर के अनुमान क्यों स्थिर रखे गए?

आरबीआई ने खुदरा महंगाई और जीडीपी के अनुमान में कोई बदलाव नहीं किया। समिति ने 2024-25 के लिए महंगाई दर को 4.5% और जीडीपी  विकास दर को 7.2% पर स्थिर रखा है। शक्तिकांत दास ने कहा कि सितंबर की महंगाई में बड़ा उछाल आने की संभावना है, खासकर खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते। हालांकि, अच्छी खरीफ फसल और पर्याप्त अनाज भंडार की वजह से चौथी तिमाही में महंगाई दर में नरमी की उम्मीद है। इसके बावजूद, अप्रत्याशित मौसम और अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से महंगाई पर दबाव बना रह सकता है।

मौद्रिक नीति रुख में बदलाव क्यों?

आरबीआई ने ‘वापसी’ रुख को ‘तटस्थ’ कर दिया है, जिसका मतलब है कि अब बाजार से नकदी की आपूर्ति को कम करने के लिए कदम नहीं उठाए जाएंगे। मौद्रिक नीति समिति का मानना है कि इस बदलाव से भारतीय अर्थव्यवस्था को बदलते वैश्विक और घरेलू परिदृश्यों के अनुरूप ढालने में मदद मिलेगी। खाद्य महंगाई में नरमी और मानसून के अनुकूल रहने के चलते, यह बदलाव भारतीय महंगाई परिदृश्य के लिए सकारात्मक संकेत देता है।

कोटक महिंद्रा बैंक की कॉरपोरेट बैंकिंग प्रमुख अनु अग्रवाल ने कहा, “आरबीआई का यह बदलाव महंगाई और विकास दोनों को संतुलित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। वैश्विक रूप से, US फेडरल रिजर्व की नीतियों में भी नरमी देखी जा रही है, जिससे यह बदलाव और भी उपयुक्त लगता है।”

क्या उधार दरों में कोई बदलाव होगा?

आरबीआई द्वारा रेपो दर को स्थिर रखने का मतलब है कि जिन उधार दरों को रेपो दर से जोड़ा गया है, उनमें कोई वृद्धि नहीं होगी, जिससे उधारकर्ताओं को राहत मिलेगी और उनकी मासिक किश्तों (EMI) में वृद्धि नहीं होगी। हालांकि, बैंकों द्वारा उन ऋणों पर ब्याज दरों में वृद्धि हो सकती है जो MCLR (मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड-बेस्ड लेंडिंग रेट) से जुड़े होते हैं।

क्या भविष्य में रेपो दर में कटौती की संभावना है?

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि खाद्य महंगाई में सुधार होता है, तो दिसंबर 2024 में रेपो दर में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती हो सकती है। CareEdge रेटिंग्स के अनुसार, “खाद्य महंगाई में नरमी से रेपो दर में कटौती की गुंजाइश बन सकती है। हालांकि, मौद्रिक नीति समिति खाद्य महंगाई के जोखिमों पर सतर्क रहेगी।”

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