नई दिल्ली: टाटा संस के प्रमुख शेयरधारक टाटा ट्रस्ट्स के भीतर मचा घमासान सत्ता के गलियारों तक पहुँच गया है। टाटा समूह के करीबी सूत्रों ने माना है कि पूरे मामले पर सरकार मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती। न्यूज-18 की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि सरकार ने टाटा ट्रस्ट्स के भीतर बढ़ती दरार पर ध्यान दिया है और भारत के सबसे प्रभावशाली समूहों में से एक में अस्थिरता को रोकने के लिए यदि आवश्यक हो तो हस्तक्षेप करने के लिए तैयार है।
टाटा ट्रस्ट्स बोर्ड की बैठक 10 अक्टूबर को होने वाली है, जबकि सरकारी अधिकारी दोनों पक्षों के साथ मिलकर इस संकट को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार टाटा समूह के करीबी सूत्रों ने चेतावनी दी है कि अगर इस विवाद का जल्द समाधान नहीं किया गया, तो इसका असर टाटा संस के कामकाज पर भी पड़ सकता है। टाटा समूह के करीबी सूत्रों ने ये भी कहा कि 10 अक्टूबर की बैठक का ‘हालिया तनाव से कोई लेना-देना नहीं है।’
बहरहाल, विवाद के बीच मंगलवार शाम को टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन नोएल टाटा और टाटा संस के चेयरमैन एन चंद्रशेखरन गृह मंत्री अमित शाह के आवास पर चर्चा के लिए पहुँचे। इसमें टाटा ट्रस्ट्स के वाइस-चेयरमैन वेणु श्रीनिवासन और ट्रस्टी डेरियस खंबाटा भी मौजूद रहे। साथ ही वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भी इस बैठक में शामिल हुईं। करीब 45 मिनट से लेकर एक घंटे चली बैठक में क्या हुआ, इसकी जानकारी सामने नहीं आ सकी है लेकिन सूत्रों के अनुसार सरकार झगड़े को जल्द खत्म कराना चाहती है ताकि कंपनी पर असर नहीं हो। लेकिन सवाल है कि पूरा विवाद आखिर है क्या?
टाटा ग्रुप में क्यों मचा है विवाद?
टाटा ग्रुप में मची उथल-पुथल की वजह बोर्ड नियुक्तियां, इंफोर्मेशन एक्सेस, नियंत्रण तंत्र जैसी बातें है। इसी को लेकर ट्रस्टियों के बीच अंदरूनी कलह सामने आ रही है। स्थिति ये है कि ये दो खेमों में बंट गए हैं। एक खेमा नोएल गुट का माना जा रहा है, जिसमें नोएल टाटा के साथ वेणु श्रीनिवास और विजय सिंह (पूर्व नामित निदेशक) शामिल हैं। दूसरे गुट में मेहली मिस्त्री, प्रमित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियर खंबाटा हैं।
सूत्रों के अनुसार झगड़ा 11 सितंबर की हुई मीटिंग के बाद बढ़ा। इसमें टाटा संस के बोर्ड पर 77 साल के विजय सिंह को नामित निदेशक के तौर पर दोबारा नियुक्त करने पर बात होनी थी। सिंह 2012 से इस पद पर हैं। पिछले साल रतन टाटा के निधन के बाद ट्रस्ट्स ने फैसला किया था टाटा संस बोर्ड पर नामित निदेशक यानी नॉंमिनी डायरेक्टर को 75 साल की उम्र के बाद हर साला दोबारा नियुक्त करना होगा।
फिर से नियुक्ति का प्रस्ताव नोएल टाटा और वेणु श्रीनिवासन ने रखा था। हालांकि, मेहली मिस्त्री, प्रामित झावेरी, जहांगीर एचसी जहांगीर और डेरियस खंबाटा ने इससे इनकार किया। इन चारों के मना करने से बहुमत की वजह से प्रस्ताव रद्द हो गया।
इसके बाद इन चारों की ओर से मेहली मिस्त्री को टाटा संस बोर्ड पर नॉमिनी के तौर पर प्रस्तावित करने की कोशिश की गई। लेकिन नोएल टाटा और श्रीनिवासन ने विरोध जताया। बता दें कि मेहली मिस्त्री के नेतृत्व वाले चार ट्रस्टी शापूरजी पलोनजी फैमिली से जुड़े हैं। इस फैमिली की टाटा संस में 18.37% हिस्सेदारी है। इस बात पर भी असहमति है कि बोर्ड की बैठकों में हुई चर्चा की कितनी जानकारी बाकी ट्रस्टियों के साथ साझा की जाए।
टाटा ग्रुप में विवाद क्यों बना चिंता का विषय?
जानकार टाटा ग्रुप में इस विवाद को एक दुर्लभ मामले के तौर पर देख रहे हैं। यह झगड़ा एक छोटी-मोटी कंपनी या बेडरूम का नहीं है। यह ग्रुप भारत के सबसे प्रतिष्ठित व्यवसायिक घराने में शामिल है, इसलिए इस पर रेगुलेटर समेत निवेशक और जाहिर तौर पर बाजार की भी नजरें हैं। यहां ये भी जानना जरूरी है कि करीब 156 साल पुराने टाटा ग्रुप का बिजनेस लगभग 400 कंपनियों तक फैला है। इसमें 30 कंपनियों बीएसई और एनएसई में लिस्टेड हैं।