मैसूरु: कर्नाटक सरकार के इस साल के मैसूरु दशहरा उत्सव के लिए बुकर पुरस्कार विजेता कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने के फैसले पर राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने हाल ही में घोषणा की थी कि बानू मुश्ताक इस बार नाडा हब्बा (राज्योत्सव) का उद्घाटन करेंगी। सरकार ने इसे कन्नड़ साहित्य और भाषा के लिए गर्व का क्षण बताया, लेकिन भाजपा नेताओं और कुछ संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया है।
भाजपा के कई नेताओं ने एक हिंदू उत्सव का उद्घाटन एक मुस्लिम व्यक्ति द्वारा किए जाने पर आपत्ति जताई है, जबकि सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी इस फैसले का बचाव कर रही है।
62 वर्षीय बानू मुश्ताक एक प्रसिद्ध कन्नड़ लेखिका, सामाजिक कार्यकर्ता और किसान आंदोलन की पूर्व सदस्य हैं। मई 2025 में, वह अपनी लघु कथा संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बनीं। मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन्हें प्रगतिशील विचारक और उनके साहित्यिक तथा सामाजिक योगदान को देखते हुए राज्य के सबसे प्रतिष्ठित सांस्कृतिक उत्सव का उद्घाटन करने के लिए एक योग्य पसंद बताया।
बानू मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनाए जाने पर भाजपा ने क्या कहा
भाजपा के कई नेताओं ने मुश्ताक के चयन पर सवाल उठाए हैं। भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि, सांसद प्रताप सिम्हा और निष्कासित विधायक बसनगौड़ा आर. पाटिल (यत्नाल) ने इस फैसले का विरोध करते हुए कहा कि वे मुश्ताक के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि उनके एक हिंदू देवी की पूजा करने के खिलाफ हैं।
प्रताप सिम्हा ने सोशल मीडिया पर कहा कि मुश्ताक किसी कन्नड़ साहित्यिक सम्मेलन की अध्यक्ष बन सकती हैं, लेकिन एक हिंदू धार्मिक कार्यक्रम का हिस्सा बनना उनके लिए अनुचित है। उन्होंने एक वीडियो क्लिप साझा किया जिसमें मुश्ताक को यह कहते हुए सुना जा सकता है कि कन्नड़ भाषा को एक धर्म के बराबर माना जाता है ताकि उन जैसे अल्पसंख्यकों को बाहर किया जा सके। सिम्हा ने सवाल उठाया कि “जो लेखिका कन्नड़ को दुनिया की देवी के रूप में स्वीकार नहीं करती”, वह देवी चामुंडेश्वरी की पूजा कैसे कर सकती हैं।
बसनगौड़ा पाटिल यत्नाल ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि देवी चामुंडेश्वरी को फूल चढ़ाना और दीया जलाना मुश्ताक के अपने धार्मिक विश्वासों के साथ मेल नहीं खाता है। उन्होंने मुश्ताक से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या वह अभी भी इस्लाम का पालन करती हैं, या अब वह मानती हैं कि सभी धर्म एक ही मोक्ष की ओर ले जाते हैं।
मैसूर राजपरिवार और कांग्रेस ने क्या कहा?
मैसूरु के सांसद और पूर्ववर्ती मैसूरु साम्राज्य के संरक्षक यदुवीर वाडियार ने इस मुद्दे पर एक अलग रुख अपनाया। उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि चूंकि यह एक “धर्मनिरपेक्ष” कार्यक्रम है, इसलिए उन्हें मुश्ताक के उद्घाटन करने पर कोई आपत्ति नहीं है। हालांकि, उन्होंने बाद में एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि उत्सव की पवित्र विरासत को देखते हुए, मुश्ताक को मुख्य अतिथि बनने से पहले देवी भुवनेश्वरी और देवी चामुंडेश्वरी के प्रति अपनी श्रद्धा स्पष्ट करनी चाहिए।
वहीं, सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी ने इस फैसले का पुरजोर बचाव किया है। कर्नाटक के गृह मंत्री जी. परमेश्वर ने कहा कि दशहरा केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि “राज्य का उत्सव” है। उन्होंने कहा कि यह पीढ़ियों से एकता के त्योहार के रूप में मनाया जाता रहा है, और इसमें धार्मिक विचारों को मिलाना या पृष्ठभूमि के आधार पर भागीदारी पर सवाल उठाना गलत है। कांग्रेस ने उदाहरण देते हुए कहा कि 1926 से 1941 के बीच मैसूरु के दीवान रहे सर मिर्जा इस्माइल ने भी इस उत्सव को आयोजित करने में मदद की थी, और 2017 में कवि निसार अहमद ने इसका उद्घाटन किया था।
सरकार के इस फैसले को लेकर सोशल मीडिया पर कई आपत्तिजनक टिप्पणियां भी आईं। कई पोस्टों में लेखिका को उनके धर्म को लेकर निशाना बनाया गया। उडुपी पुलिस ने उन पोस्टों पर दो मामले दर्ज किए हैं जो मुश्ताक के धर्म की आलोचना कर रहे थे और सरकार पर “हिंदू भावनाओं का अपमान” करने का आरोप लगा रहे थे। इन पोस्टों को भारतीय न्याय संहिता की धारा 353(2) के तहत दर्ज किया गया, जो समुदायों के बीच शत्रुता भड़काने वाले झूठे या भड़काऊ कंटेंट को प्रसारित करने पर दंड का प्रावधान है है।
बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब दशहरा विवादों में घिरा है। पहले भी दलित और प्रगतिशील संगठनों ने महिषासुर को राक्षस मानने के बजाय स्थानीय शासक और सुधारक के रूप में सम्मानित करने की परंपरा अपनाई थी। इस कारण दशहरा और “महिषा दशहरा” के बीच टकराव की स्थिति भी बनी।
मैसूर दशहरा क्यों है खास?
मैसूरु दशहरा हर साल देवी चामुंडेश्वरी की आराधना के साथ शुरू होता है। 10 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में लोक नृत्य, साहित्यिक आयोजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रदर्शनियां और ‘जंबो सवारी’ जैसी भव्य परंपराएं शामिल होती हैं। विजयादशमी के दिन सजे-धजे हाथियों और झांकियों के साथ निकलने वाली शोभायात्रा दुनिया भर के पर्यटकों को आकर्षित करती है।
इस विवाद के बीच, बानू मुश्ताक ने कहा कि वह इस आमंत्रण से खुश हैं और इसे न केवल अपने लिए बल्कि कन्नड़ साहित्य के लिए एक सम्मान मानती हैं। उन्होंने इसे सरकार की ओर से मिला प्यार और विश्वास बताया और कहा कि वह सांस्कृतिक उत्सव में भाग लेंगी।