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राज की बातः जब एक अफसर ने मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी से दो टूक कहा- जो करना है कर लो, मैं आदेश वापस नहीं लूंगा

यह कहानी लगभग चालीस साल पुरानी है, जब सरदार पटेल के ही राज्य गुजरात में स्टील-फ्रेम माने जाने वाले एक आईएएस अधिकारी ने मुख्यमंत्री को साफ ‘ना’ कह दिया था।

गुजरात के पहले आदिवासी मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी, उस समय राजकोट नगर निगम चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवारों के समर्थन में प्रचार के लिए आए थे। स्थानीय नेताओं ने उनसे शिकायत की कि “नगर निगम का आयुक्त कांग्रेस को हराने की कोशिश कर रहा है। वह बड़े पैमाने पर एंटी-इन्क्रोचमेंट ड्राइव चला रहा है — रेसकोर्स रोड, जुबिली बाग, जवाहर रोड जैसे इलाकों में तोड़फोड़ कर रहा है। बड़ी इमारतों से लेकर ठेले तक सब तोड़े जा रहे हैं।”

मुख्यमंत्री ने निगम आयुक्त एस जगदीशन को टेलीफोन कर आदेश दिया “जब तक चुनाव है, अपना अभियान स्थगित कर दो, हमारे पार्टी का नुकसान हो रहा हैं।” 1980 बैच के आईएएस ऑफिसर ने अपने चैंबर से जवाब दिया-  “मेरे लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों बराबर है, शहर को सुंदर रखने और ट्रैफिक व्यस्था के लिए ,अभियान जारी रहेगा।”

 

Retired Officer S Jagdeesan

 

जब मुख्यमंत्री को अधिकारी ने दिया था ‘खरा’ जवाब

अमर सिंह चौधरी ने कड़क आवाज में कहा, “ड्राइव रोक दो, यह मुख्यमंत्री का आदेश है।” युवा अधिकारी ने जवाब दिया जो शायद उतना ही तल्ख था-  “मैं नहीं रोकूंगा, आपको जो करना हो कर लीजिए। जे थाई, तमै करी लो।”

मुख्यमंत्री अमर सिंह चौधरी ने तत्काल गांधीनगर स्थित मुख्य सचिव को फोन कर सारी बात बताई और आदेश दिया, “इस बदतमीज अधिकारी को तुरंत फील्ड से हटाया जाए।”

कुछ घंटों में ही कार्मिक विभाग के अपर मुख्य सचिव का फोन आयुक्त को आया। उन्होंने कहा, “आपको तत्काल राजकोट छोड़ना होगा। आपको औद्योगिक विकास निगम में संयुक्त निदेशक बना दिया गया है। आपकी जगह सूरत के युवा अधिकारी एस. आर. राव को नया आयुक्त नियुक्त किया गया है।” इसके बाद जगदीशन ने आदेश दिया कि उनके नाम की पट्टिका हटा दी जाए और वे रामकृष्ण नगर स्थित सरकारी आवास में चले गए।

अगली सुबह यह खबर स्थानीय गुजराती संध्या दैनिकों में छपी। खबर फैलते ही आयुक्त के सरकारी आवास के बाहर भीड़ जुटने लगी और सरकार विरोधी नारे लगाए गए। पूरे शहर में गुस्सा फैल गया — सरकारी दफ्तरों और संपत्तियों पर हमला होने लगा।

पुलिस कमिश्नर और जिला अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे। भीड़ को तितर-बितर करने के बाद उन्होंने आयुक्त से कहा, “आप तुरंत राजकोट छोड़ दीजिए।” जवाब मिला, “मैं सरकारी लिखित आदेश का इंतजार कर रहा हूँ।”

तबादला आदेश के बाद शहर में बिगड़ा माहौल

रात दो बजे, गांधी मैदान से कार्मिक विभाग के अवर सचिव आदेश लेकर आए और आयुक्त को थमा दिया। उन्हें आश्वासन दिया गया कि वे सुबह तक गांधीनगर के लिए निकल जाएंगे। लेकिन अगली सुबह हालात और बिगड़ गए। महिलाएं, छात्र, युवा और स्थानीय लोग आयुक्त के घर के बाहर इकट्ठा हो गए। सभी स्कूल और कॉलेज बंद कर दिए गए। आंदोलन हिंसक हो गया। पुलिस को कई जगह फायरिंग करनी पड़ी, जिसमें 6 लोग मारे गए और 20 घायल हुए। शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा।

पुलिस कमिश्नर ने आयुक्त को चेतावनी दी — “यदि आप तत्काल शहर नहीं छोड़ते हैं, तो आपको गिरफ्तार करना पड़ेगा। आपकी मौजूदगी से हिंसा भड़क रही है।”

आखिरकार वही पुलिस कमिश्नर, जो आयुक्त से 20 साल वरिष्ठ थे, उन्हें एस्कॉर्ट कर राजकोट से बाहर ले गए। रास्ते में महिलाओं ने नारियल और पेड़ा देकर विदा किया। कई जगह छात्र उनकी गाड़ी के आगे लेट गए, जिन्हें पुलिस को बलपूर्वक हटाना पड़ा।

 क्यों लोगों के दिलों में बने रहे निगम आयुक्त एस जगदीशन

हालांकि जगदीशन को हटा दिया गया था, लेकिन लोग उन्हें भुला नहीं सके। बाद में उनके नाम पर ‘जगदीशन मार्ग’ और ‘जगदीशन मार्केट’ बनाए गए। बॉलीवुड अभिनेता राज बब्बर ने भी एक फिल्म में जगदीशन के नाम से ही मुख्य किरदार निभाया, जिसकी शूटिंग राजकोट में ही हुई।

1989 में राजकोट के शास्त्री मैदान में एक जनसभा के दौरान विश्वनाथ प्रताप सिंह ने एलान किया कि जगदीशन को लोकसभा चुनाव लड़ाया जाएगा, और लोगों से उन्हें भारी बहुमत से जिताने की अपील की। लेकिन जगदीशन ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया।

उनकी लोकप्रियता की एक बड़ी वजह यह थी कि अपने कार्यकाल में उन्होंने राजकोट के जल संकट को दूर किया था। 

230 किलोमीटर दूर गांधीनगर से विशेष ट्रेन द्वारा रोज़ पीने का पानी मंगवाया, भादर और न्यारी बांधों से पाइपलाइन द्वारा शहर को जोड़ा, रात में खुद सड़कों पर निकलकर पानी की आपूर्ति की निगरानी करते थे। अगर कहीं पाइप टूटा मिलता, तो तुरंत मरम्मत कराते। महिलाएं उन्हें ‘बेटा’ कहती थीं। बाद में जब निगम चुनाव हुए, तो कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। अमर सिंह चौधरी को मुख्यमंत्री पद से भी हटना पड़ा।

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