आज जब एक विधायक दो-दो सुरक्षा कर्मियों के साथ घूमता है, तब याद आता है कि एक जमाना था जब मुख्यमंत्री भी बिना अंगरक्षक के रहते थे।
राज्य के पहले दलित मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री को कभी भी पटना अथवा उनके निर्वाचन क्षेत्र कोड़ा में सुरक्षा कर्मियों के साथ नहीं देखा गया। शास्त्री तीन बार बिहार में मुख्यमंत्री रहे, राज्यसभा में विपक्ष के नेता और इंदिरा गांधी की कैबिनेट में आवास और नगर निगम मंत्री रहे, लेकिन कहीं भी उन्होंने सुरक्षा कर्मी नहीं रखा था।
मुझे अच्छी तरह याद है, मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने कभी भी पायलट या एस्कॉर्ट गाड़ी नहीं ली। मुख्य सचिवालय, जहां मुख्यमंत्री का ऑफिस था, वहां से शाम को वे पैदल ही संजय गांधी उद्यान स्थित अपने आवास आते थे। उन्होंने मुख्यमंत्री आवास नहीं लिया था और वन विभाग के अतिथि-शाला में रहते थे। वे विवाहित थे, लेकिन कभी पत्नी के साथ नहीं रहे। उन्हें कोई संतान भी नहीं थी।
कटिहार में पोस्टेड एक डिप्टी कलेक्टर श्री ब्रह्मदेव राम ने बताया कि मुख्यमंत्री को पटना जाने के लिए रात वाली ट्रेन पकड़नी थी। वे प्लेटफॉर्म पर ही दो घंटे बैठे रहे। कोई स्टाफ उनके साथ नहीं था।
उन्होंने खुद यह कहानी पटना में पत्रकारों को सुनाई थी। एक बार मैडम (इंदिरा गांधी) ने मुझे बुलाया और पूछा– “शास्त्री जी, आपका समय दिल्ली में कैसे बीतता है? मैंने बताया– जब संसद सत्र चलता है, तब पार्लियामेंट में ही रहता हूं। सुबह में विविध भारती पर गाना सुनता हूं। कभी मूड किया तो सिनेमा देखने चला जाता हूं।”
मैडम ने पूछा – “अकेले जाते हैं सिनेमा देखने?” मैंने कहा – “नहीं, गार्ड जो टिकट कटवाता है, वह रहता है।”
जनता सरकार में राम सुंदर दास मुख्यमंत्री बने। वे आर ब्लॉक में तीन कमरों के सरकारी आवास में रहते थे। वे प्रतिदिन पैदल पटना जंक्शन स्थित महावीर मंदिर जाते थे। साथ में छाता भी रखते थे और प्रतिदिन लॉटरी का टिकट खरीदते थे।
वे पैदल ही अशोक सिनेमा वाली गली से अदालतगंज होते हुए लौटते थे। उसी रास्ते पर एक चाय की दुकान थी, जहां दो दैनिक समाचार पत्रों के कार्यालय थे। इन अखबारों के पत्रकार भी वहां चाय पीने आते और कभी-कभी रामसुंदर दास जी को भी चाय पिलाते।
एक दिन शाम को उनके लिए सरप्राइज था। वे चाय की दुकान पर पहुंचे तो पत्रकारों ने उनसे कहा – “आज यहां आपके लिए अंतिम चाय है। कल सुबह आप मुख्यमंत्री बन जाएंगे, तब यहां आना मुश्किल होगा।” रामसुंदर दास को पता ही नहीं था कि वे कर्पूरी ठाकुर की जगह मुख्यमंत्री चुने गए हैं।
वे ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिनके बेडरूम तक लोग बिना रोक-टोक जा सकते थे और अपनी समस्या का तुरंत समाधान पा सकते थे।
सुरक्षा का तामझाम और सोलह-सत्रह गाड़ियों का काफिला लालू प्रसाद के मुख्यमंत्री काल में शुरू हुआ। गौतम सागर राणा, जो पहले गृह विभाग में उपमंत्री रहे, ने एक घटना सुनाई –”एक बार लालू जी ने मुझे मुख्यमंत्री आवास बुलाया और कहा – चलो देखते हैं, कैसे राजपाट चल रहा है। बंगले में स्थित सुरक्षा कार्यालय को मैसेज भेज दिया गया। नीचे उतरने से पहले ही सायरन बजने लगा। काफिला एयरपोर्ट की ओर बढ़ा। चितकोहरा (उत्तर दिशा) से एक ट्रक आ रही थी और दक्षिण से मुख्यमंत्री का काफिला जा रहा था। चौराहे पर ट्रक ने सीएम की गाड़ी को ओवरटेक करने की कोशिश की।
मुख्यमंत्री ने अपने ड्राइवर को आदेश दिया – ट्रक को ओवरटेक करके गाड़ी आगे लगाओ। सीएम साहब उतरे और ट्रक के ड्राइवर को गले से पकड़कर नीचे उतारा और कड़े शब्दों में कहा – “साला, ट्रक ठीक से नहीं चलाता है?”
छह फीट लंबे ड्राइवर ने भी कुछ अपशब्द कह दिए। तब लालू जी ने चिल्लाकर साथ चल रहे जिलाधिकारी से कहा – “अरविंद बाबू, पकड़िए इसको। बिहार के मुख्यमंत्री को यह मार ही देता, तो बिहार का क्या होता?” तब ट्रक ड्राइवर को एहसास हुआ कि उसने मुख्यमंत्री से पंगा ले लिया था।