Friday, October 10, 2025
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राज की बातः भैरों सिंह शेखावत ने जब राज्यपाल को चेताया- ‘एक पांव कब्र में है, ऊपर जा कर क्या जवाब दोगे?’

राजस्थान में तीन बार मुख्यमंत्री और भारत के उपराष्ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत अपनी ईमानदारी और हाजिरजवाबी के लिए जाने जाते थे। बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना के बाद केंद्र सरकार ने राजस्थान की सरकार को भी बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद राष्ट्रपति शासन के दौरान विधानसभा चुनाव हुए। शेखावत दो बार मुख्यमंत्री रह चुके थे और उन्हीं के नेतृत्व में 1993 का चुनाव बीजेपी ने लड़ा।

परिणाम घोषित होने पर बीजेपी या कांग्रेस किसी को भी बहुमत नहीं मिल पाया। ऐसे में दस निर्दलीय नव-निर्वाचित विधायकों ने शेखावत को समर्थन देने की घोषणा कर दी, जिससे बीजेपी बहुमत में आ गई।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता- जिनमें प्रणब मुखर्जी, भजनलाल, प्रिय रंजन दासमुंशी और अहमद पटेल शामिल थे- जयपुर के बड़े होटलों में ठहरे हुए थे। गुजरात के पूर्व गृहमंत्री प्रबोध रावल भी खासा कोठी में रुके थे, जहां उनके कमरे की निगरानी हरियाणा पुलिस के सुरक्षा अधिकारी कर रहे थे। मैं भी बगल की एक अतिथि शाला में ठहरा हुआ था। प्रबोध भाई से पुरानी जान-पहचान थी (मैं अहमदाबाद में टाइम्स ऑफ इंडिया में कार्यरत था), उनके साथ सुबह का नाश्ता होता था। उनके कमरे में रुपयों से भरे कई बक्से रखे थे।

उधर, पूर्व मुख्यमंत्री हरदेव जोशी अजमेर रोड स्थित अपने फार्महाउस में पार्टी नेताओं और विधायकों को भोज दे रहे थे। लेकिन परिणाम घोषित होने के एक सप्ताह बाद भी सरकार नहीं बन सकी। इस देरी से नाराज भाजपा नेताओं ने राजभवन के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया। लालकृष्ण आडवाणी विशेष विमान से जयपुर पहुंचे। अशोक रोड स्थित भाजपा कार्यालय से राज भवन के सारे रास्ते को बैरीकेड किया गया। आडवाणी और शेखावत के नेतृत्व में विधायक राजभवन तक मार्च करते हुए पहुंचे। विधायक राजभवन के लॉन में बैठ गए।

“कुछ तो खयाल करो, एक पांव कब्र में है…”

राज्यपाल बलिराम भगत (पूर्व लोकसभा अध्यक्ष) ने आडवाणी और शेखावत को बुलाया, लेकिन आधे घंटे तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। इस पर नाराज शेखावत ने बुजुर्ग राज्यपाल से कहा, “कुछ तो खयाल करो, एक पांव कब्र में है, ऊपर जाकर क्या जवाब दोगे?”

राज्यपाल अपने कार्यालय में गए और प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव से फोन पर बात की। उन्होंने सूचित किया कि कांग्रेस की ओर से अब तक सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया गया है। प्रधानमंत्री ने शेखावत को शपथ के लिए आमंत्रित करने का निर्देश दिया। राज्यपाल नीचे आए और शेखावत को अगले दिन सुबह शपथ ग्रहण के लिए आमंत्रित किया।

शेखावत ने निर्दलीय विधायकों और पत्रकारों के साथ बीजेपी मुख्यालय में भोजन किया। उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान मुझसे कहा था, “मैं अभी भी मुख्यमंत्री हूं, छुट्टी पर हूं, शीघ्र ही फिर जॉइन कर लूंगा।” जब वे चुनाव प्रचार से लौटे और प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे, तो पुलिस वायरलेस पर संदेश चल रहा था- “सीएम साहेब पधार रहे हैं।” जब यही सवाल शेखावत से किया गया तो उन्होंने मुस्कराकर कहा, “सही मैसेज था, मैं छुट्टी पर गया मुख्यमंत्री हूं।”

एक बार शेखावत जयपुर से दिल्ली जा रहे थे। सिविल लाइंस से उनका काफिला सांगानेर एयरपोर्ट के लिए रवाना हुआ। टोंक रोड पर ट्रैफिक एडिशनल एसपी बार-बार लोकेशन मांग रहे थे लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। झल्लाकर उन्होंने वायरलेस पर कह दिया, “बताता क्यों नहीं, भोस.. तुम्हारा सीएम साहब कहां है?”

बात पुरानी हो गई। एक दिन शेखावत को वही ऑफिसर ने एक समारोह में पहुंचने पर सैल्यूट किया  शेखावत ने मुस्कराकर जवाब दिया, “तुम्हारा भोस… वाला सीएम हाजिर है।” अधिकारी कुछ समझ नहीं पाए, तब शेखावत ने पूरी कहानी पत्रकारों को सुनाई और कहा कि उनकी गाड़ी में भी वायरलेस सेट होता है।

कांग्रेस नेता के बेटे का अपहण और शेखावत

मुख्यमंत्री रहते हुए शेखावत ने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। 16 फरवरी 1995 को जयपुर के सी-स्कीम इलाके से कांग्रेस नेता रामनिवास मिर्धा के बेटे हरेंद्र मिर्धा पंजाब के आतंकवादियों ने सुबह की सैर के दौरान अपहरण कर लिया। उनकी मांग थी कि खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख देवेंद्र सिंह खुल्लर जो पंजाब की जेल में बंद था, को रिहा किया जाए।

मैंने टाइम्स ऑफ इंडिया में रिपोर्ट भेजी कि मिर्धा को जयपुर के बाहरी क्षेत्र में ही रखा गया है। मुख्यमंत्री शेखावत ने मुझे बुलाकर कहा, “तुमने मेरी सारी मेहनत बर्बाद कर दी, अब वे लोग कहीं और ले गए होंगे।”

सौभाग्य से उसी दिन 26 फरवरी 1995 को जयपुर के मानसरोवर स्थित मॉडल टाउन में पुलिस की रूटीन चेकिंग के दौरान नवनीत सिंह कांडिया मारा गया। उसके पास से 77 लाख रुपये, एके-47 राइफल और हरेंद्र मिर्धा बरामद हुए। इस अपहरण कांड में आतंकवादी हार्मिक सिंह को अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। शेखावत ने इस पूरे घटनाक्रम के दौरान केंद्र सरकार से आतंकवादियों की मांग पर विचार करने की कोई अपील नहीं की।

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