Friday, October 10, 2025
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व्हाट्सऐप चैट को क्या सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है? जानिए, दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या कहा है

दिल्ली: दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि व्हाट्सऐप चैट को भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत उचित प्रमाणीकरण के बगैर अदालत में सबूत के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने इलेक्ट्रोनिक्स कंपनी डेल इंडिया की ओर से दायर एक अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। एक मामले में कंपनी के लिखित बयानों को देरी के आधार पर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा रिकॉर्ड पर लेने से इनकार के खिलाफ यह याचिका हाई कोर्ट में दी गई है।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार कोर्ट ने कहा, ‘साक्ष्य अधिनियम 1872 के तहत अनिवार्य उचित प्रमाणपत्र के बिना व्हाट्सएप चैट को सबूत के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता है।’

मामले में जिला आयोग के आदेश को दिल्ली राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने दिसंबर 2023 में बरकरार रखा था। इसके बाद कंपनी ने इसे दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी है। हालांकि, देरी के बारे में बताते हुए डेल ने कहा कि उसे जिला आयोग में शिकायतकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील से पूरी शिकायत की प्रति समय पर नहीं मिले थे। अपने इसी दावे को पुष्ट करने के लिए कंपनी ने शिकायतकर्ता के साथ हुई व्हाट्सएप चैट का स्क्रीनशॉट भी साझा किया। हालांकि, कोर्ट ने स्क्रीनशॉट को संज्ञान में लेने से इनकार कर दिया।

कोर्ट ने कहा, ‘भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक रिट याचिका पर विचार करते समय इस न्यायालय द्वारा व्हाट्सएप चैट के स्क्रीन शॉट को अकाउंट में नहीं रखा जा सकता है। खासकर और भी तब जब यह दिखाने के लिए कुछ भी नहीं है कि चैट राज्य आयोग के समक्ष भी प्रस्तुत किए गए थे। इस कोर्ट को वर्तमान रिट याचिका में भी इसका कोई संदर्भ नहीं मिला है। इसके अलावा राज्य आयोग के आदेश में भी इसकी कोई चर्चा नहीं है।’

हाई कोर्ट ने यह भी गौर किया कि जिला आयोग ने डेल को मिले समन के साथ भेजे गए दस्तावेजों की डाक रसीदें मांगी और मामले को विस्तार से देखा। आयोग इस नतीजे पर पहुंचा था कि समन के साथ दस्तावेजों का एक पूरा सेट भेजा गया था और उसे डेल ने प्राप्त किया था।

कोर्ट ने आगे कहा, ‘इसलिए, जिला आयोग ने माना कि लिखित बयान दाखिल करने में सात दिनों की देरी को माफ करने के लिए याचिकाकर्ता का आवेदन प्रामाणिक नहीं है।’

कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि यह मानने का कोई कारण नहीं है कि जिला आयोग द्वारा इस देरी को माफ करने से इनकार करना गलत था।

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