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क्या है चांदीपुरा वायरस जो गुजरात के 14 साल से कम उम्र वाले बच्चों को कर रहा प्रभावित? जानें लक्षण और बचने के उपाय

अहमदाबाद: गुजरात के अलग-अलग इलाकों में चांदीपुरा वायरस से संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है। पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) ने बुधवार को पुष्टि की कि गुजरात में चांदीपुरा वायरस से एक चार साल की लड़की की मौत हो गई है। इस साल वायरस के कारण मृत्यु का यह पहला मामला है जिसकी पुष्टि हुई है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वायरस के कारण राज्य में अब तक 20 संदिग्ध मौतें हो चुकी हैं।

पिछले हफ्ते सोमवार को गुजरात के हिम्मतनगर अस्पताल में चांदीपुरा वायरस से छह लोगों की मौत हो गई थी हालांकि इसकी अभी पुष्टि नहीं हुई है कि यह मौत वायरस के कारण हुई है नहीं। राज्य में तेजी से फैल रहे चांदीपुरा वायरस को लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने गुरुवार को समीक्षा बैठक की है।

मुख्यमंत्री पटेल ने इस बीमारी से निपटने के लिए किए जा रहे उपायों की समीक्षा की। उन्होंने आंगनवाड़ी कार्यकर्ता बहनों और आशा वर्करों को ग्रामीण क्षेत्रों में सर्वे कर जागरूकता फैलाने की अपील की है।

गुजरात में मामले में हुई है बढ़ोतरी

जानकारी के मुताबिक, इस वायरस को लेकर अब तक जितने भी मामले सामने आए उन में अधिकतर मामले राज्य से ही आए है और बाकी एक दो केस अन्य राज्य से भी गुजरात में आए हैं। गुजरात में सबसे ज्यादा मामले साबरकांठा और अरावली में पाए गए हैं जहां सिल्वरपुरा से चार-चार लोग पॉजिटिव पाए गए हैं।

साबरकांठा जिले में संदिग्ध चांदीपुरा वायरस के संक्रमण से चार बच्चों की मौत हो गई है और दो अन्य सिविल अस्पताल में भर्ती हैं। यह जानकारी शनिवार को एक आधिकारिक बयान में दी गई।

खतरे को देखते हुए बढ़ाई गई सावधानी

वायरस के खतरे को देखते हुए राज्य ने निगरानी बढ़ा दी है, स्वच्छता जागरूकता बढ़ाने के लिए आशा कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया है। यही नहीं निजी चिकित्सकों को मामलों को तेजी से संभालने और बढ़ाने के लिए प्रशिक्षित भी किया गया है।

एक्सपर्ट ने क्या कहा है 

गुजरात के स्वास्थ्य उप निदेशक डॉ जॉयस कटिर ने कहा है कि जिस तरीके से यह वायरस राज्य में फैल रहा है इससे घबराने के जरूरत नहीं है क्योंकि अभी केवल छिटपुट मामले ही सामने आ रहे हैं। वायरस से बचाव के लिए उन्होंने लोगों से स्वच्छता और शीघ्र चिकित्सा देखभाल करने पर जोर दिया है।

शीर्ष वायरोलॉजिस्ट डॉ. रमन गंगाखेड़कर ने डॉ जॉयस कटिर के बातों को दोहराया है और कहा है कि इसे लेकर ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा है कि इस वायरस के बड़े पैमाने पर फैलने की संभावना बहुत कम है क्योंकि यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलता है।

बड़े प्रकोप की संभावना कम-जानकार

गंगाखेड़कर ने यह भी कहा कि यह वायरस मुख्य रूप से 14 वर्ष तक के बच्चों को प्रभावित करता है और इसे बड़े लोगों के बीच प्रसारित होते नहीं देखा गया है जिससे पता चलता है कि छिटपुट मामले संभव हैं लेकिन बड़े प्रकोप की संभावना बहुत की कम है।

गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ने क्या कहा है

वायरस के बढ़ते संक्रमण के मद्देनजर स्वास्थ्य मंत्री ऋषिकेश पटेल ने इससे पहले कहा था कि इससे डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन सावधानी बरतने की जरूरत है। उनके अनुसार, चांदीपुरा कोई नया वायरस नहीं है, पहला मामला साल 1965 में महाराष्ट्र से सामने आया था। उसके बाद गुजरात में भी यह संक्रमण पाया गया है।

इन लोगों को करता है प्रभावित

ऋषिकेश पटेल ने कहा कि यह संक्रमण आमतौर पर बरसात के मौसम में देखने को मिलता है। यह संक्रमित रोग रेत मक्खी, मच्छर के काटने से होता है। 9 महीने से 14 साल की उम्र के बच्चों में यह संक्रमण पाया जाता है। खास तौर पर यह ग्रामीण क्षेत्रों में इस वायरस का संक्रमण ज्यादा देखने को मिलता है।

वायरस के लक्षण

चांदीपुरा वायरस में अक्सर अचानक तेज बुखार आना, उसके बाद दौरे पड़ना, दस्त, मस्तिष्क में सूजन, उल्टी का होना शामिल है, जो मौत का कारण बन सकता है।

वायरस के प्रभाव को देखते हुए एक्सपर्ट ने कहा है कि अगर बच्चे रोगियों में उच्च श्रेणी के बुखार, उल्टी, दस्त, सिर दर्द और ऐंठन जैसे प्राथमिक लक्षण दिखाई देते हैं, तो तत्काल एक चिकित्सक को रेफर करें।

कैसे बचे इससे

इस वायरस से संक्रमित होने से बचने के लिए लोगों को अपने आस-पास साफ सफाई करने की सलाह दी जाती है। यह वायरस बारिश के मौसम में ज्यादा एक्टिव पाए जाते हैं और अभी बरसात का सीजन चल रहा है। ऐसे में लोगों को साफ-सफाई के साथ अपने पहनावे पर भी ध्यान देने की सलाह दी जाती है।

मच्छर और काटने वाले कीड़ों से बचने के लिए लोगों को फुल आस्तीन वाले कपड़े पहनने और रात में सोते समय मच्छदानी का इस्तेमाल करने का सुझाव दिया जाता है।

यही नहीं मक्खिों से बचने के खाने-पीने की चीजों को ढक कर रखने और उन्हें धो कर इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है। चांदीपुरा वायरस का अभी तक कोई भी टीका नहीं बना है। ऐसे में इसके शुरुआती लक्षण पाए जाने पर तुरंत अस्पताल में भर्ती होने की सलाह दी जाती है।

48 से 72 घंटों में मर जाते हैं संक्रमित बच्चे

बताया गया है कि इस वायरस से संक्रमित बच्चे लक्षण दिखने के 48-72 घंटों के भीतर मर जाते हैं। ऐसे में यह वायरस शिशुओं और वयस्क के लिए घातक है। गुजरात सरकार ने लोगों को सावधानी बरतने की अपील की है।

चांदीपुरा वायरस के कारण दिमाग में सूजन होता है। इसमें पहले फ्लू के लक्षण पाए जाते हैं और फिर यह धीरे-धीरे कोमा और मौत तक बढ़ जाता है।

चांदीपुरा वायरस का मृत्यु दर है 50 फीसदी

डॉ जयेश कतीरा ने कहा है कि चांदीपुरा वायरस का मृत्यु दर 50 फीसदी है यानी इससे संक्रमित होने वाले आधे संदिग्ध मरीजों की मौत हो जाती है। स्वास्थ्य मंत्री के निर्देश पर राज्य स्वास्थ्य विभाग ने प्रभावित इलाकों में सक्रिय निगरानी की है।

अब तक कुल 4,487 घरों में 18,646 व्यक्तियों की जांच की जा चुकी है। वायरस के नियंत्रण के लिए कुल 2093 घरों में कीटनाशकों का छिड़काव भी किया गया है।

क्या है चांदीपुरा वायरस

चांदीपुरा वायरस, रैबडोविरिडे परिवार का एक सदस्य है, जो फ्लू जैसे लक्षण पैदा करता है और तीव्र इंसेफेलाइटिस, मस्तिष्क की गंभीर सूजन का कारण बन सकता है।

कब हुई थी इसकी भारत में शुरुआत

इसकी पहचान सबसे पहले 1965 में महाराष्ट्र की एक गांव में हुई थी और इसी गांव के नाम पर इसका नाम रखा गया था। इसे देश में इंसेफेलाइटिस बीमारी के विभिन्न प्रकोपों ​​से जोड़ा गया है।

यह वायरस रेत की मक्खियों के काटने से फैलता है। यह मक्खियां पत्थर या मिट्टी वाले घरों में पनपती है जिस तरीका का घर अक्सर गांवों में देखा जाता है। लगभग तीन दशकों के बाद यह वायरस 2003 में फिर से लौटा था उस समय उसका प्रकोप देखने को मिला था।

2003 में आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में इसका बड़ा प्रभाव देखा गया था। वायरस के कारण उस समय 329 प्रभावित बच्चों में से 183 की मृत्यु हो गई थी। 2004 में भी इस वायरस के कारण गुजरात में छिटपुट मामले देखे गए थे।

2007 में भी महाराष्ट्र के नागपुर में इस वायरस का लक्षण देखने को मिला था। चांदीपुरा वायरस महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के कुछ हिस्सों में अभी भी चिंता का कारण बना हुआ है।

वैक्सीन को लेकर क्या हुआ

पिछले कुछ सालों में जिस तरीके से यह वायरस बढ़ रहा है उसे देखते हुए साल 2016 में इसकी वैक्सीन को लेकर चर्चा काफी बढ़ी थी लेकिन अभी तक इस पर कुछ हो नहीं पाया है। इस वायरस को देखते हुए वायरोलॉजिस्ट, न्यूरोलॉजिस्ट, बाल रोग विशेषज्ञों और सरकार को मिलकर इसे रोकने और इसके वैक्सीन पर काम करनी होगी।

समाचार एजेंसी आईएएनएस के इनपुट के साथ

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