Friday, October 10, 2025
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बंगाल में दिलीप घोष को लेकर हलचल! ममता से मुलाकात…पीएम मोदी और शाह के कार्यक्रम से दूरी, क्या हैं मायने?

कोलकाता: दिलीप घोष को क्या पश्चिम बंगाल में साइडलाइन किया जाएगा? ये सवाल उठने लगे हैं और चर्चा जोरों पर है। कभी पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई का प्रमुख चेहरा रहे और आरएसएस कार्यकर्ता रहे दिलीप घोष की पार्टी में भूमिका 2021 में प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद लगातार कम हो रही है। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के कोलकाता के कार्यक्रम में भी दिलीप घोष नजर नहीं आए, जिससे उनके पार्टी में भविष्य को लेकर अटकलें तेज हो गई हैं।

पिछले हफ्ते यानी 29 मई को पीएम मोदी ने अलीपुरद्वार में एक जनसभा की, जिसमें उन्होंने तृणमूल कांग्रेस और बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर जमकर निशाना साधा और राज्य में अगले साल 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर सरगर्मी बढ़ा दी। इसके बाद 1 जून को अमित शाह ने कोलकाता के नेताजी इंडोर स्टेडियम में भाजपा पार्टी कार्यकर्ताओं की एक बैठक की, जिसमें बंगाल कैडर के सभी नेता मौजूद थे। 

दिलीप घोष दोनों ही कार्यक्रमों में मौजूद नहीं थे। इसे लेकर दिलीप घोष से जब पत्रकारों ने कुछ दिन पहले पूछा तो उन्होंने कहा कि उन्हें किसी भी कार्यक्रम के लिए आमंत्रित नहीं किया गया था। मीडिया द्वारा उनकी अनुपस्थिति के बारे में पूछे जाने पर दिलीप घोष ने रविवार को कहा, ‘अभी, पार्टी के भीतर मेरे पास कोई पद नहीं है। स्वाभाविक रूप से, मुझे आमंत्रित नहीं किया गया था…मुझे हर बैठक में आमंत्रित करना अनिवार्य या आवश्यक नहीं है।’

घोष ने मामले को हल्का बताते हुए आगे कहा कि बंगाल भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथागत रॉय भी शाह की रैली में मौजूद नहीं थे।

घोष की गैरहाजिरी पर भाजपा प्रदेश अध्यक्ष क्या बोले?

तमाम चर्चाओं के बीच पार्टी के प्रमुख कार्यक्रमों से घोष की अनुपस्थिति को लेकर पूछे जाने पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने कहा, ‘वह (घोष) एक वरिष्ठ नेता हैं, लेकिन मैं इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कह सकता कि वह क्यों अनुपस्थित थे।’

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने ने कहा, ‘पश्चिम बंगाल भाजपा इकाई के सभी राज्य समिति सदस्यों को शाह के कार्यक्रम के लिए आमंत्रित किया गया था। हम आधिकारिक तौर पर यह नहीं कह सकते कि पार्टी दिलीप घोष से खुद को दूर रखना चाहती है या वह पार्टी से दूरी बनाना चाहते हैं।’

वहीं, एक नेता ने कहा, ‘हम मान रहे हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों में वह भाजपा के कामों से कम जुड़े रहेंगे।’

RSS कार्यकर्ता दिलीप घोष का भाजपा में सफर

लंबे समय से आरएसएस कार्यकर्ता रहे घोष को 2015 में बंगाल इकाई का नेतृत्व करने के लिए भाजपा नेतृत्व द्वारा चुना गया था। अगले साल 2016 के विधानसभा चुनावों में, भाजपा ने बंगाल में अपने कदम जमाने को लेकर शुरुआती मजबूत संकेत दिखाए। टीएमसी के जबरदस्त प्रदर्शन के बीच भाजपा ने तीन सीटें हासिल कीं और 17% वोट शेयर हासिल किया। घोष ने मेदिनीपुर सीट पर जीत हासिल की।

अगले तीन साल तक घोष ने एक ऐसी टीम का नेतृत्व किया जिसने धीरे-धीरे बंगाल में भाजपा के लिए जमीन तैयार की। 2019 के लोकसभा चुनावों में भी यह मेहनत काम रंग लाई। भाजपा ने 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल की, जो राज्य में उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। घोष ने मेदिनीपुर लोकसभा सीट जीती।

भाजपा के लिए यहां तक सबकुछ सकारात्मक नजर आ रहा था। हालात 2021 में बदलने शुरू हुए। भाजपा 2021 के विधानसभा चुनावों में जोरशोर से उतरी। उसे उम्मीद थी कि वह ममता बनर्जी सरकार को हटाने में कामयाब रहेगी। हालांकि, ऐसा नहीं हुआ। भाजपा 294 सीटों में से केवल 77 सीटें ही जीत पाई।
हार के बाद घोष की जगह सांसद सुकांत मजूमदार को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया गया। इसके बाद से घोष सुर्खियों से दूर हो गए हैं।

2024 में हार और फिर ममता से मुलाकात

बंगाल भाजपा में बदलते हालात के बीच सायंतन बसु और रितेश तिवारी जैसे नेता, जिन्हें घोष का करीबी माना जाता था, उन्होंने ऐसी शिकायतें करनी शुरू की कि उन्हें नजरअंदाज किया जा रहा है। इन सबके बीच 2024 के लोकसभा चुनावों में घोष को मेदिनीपुर से टिकट नहीं दिया गया। इसके बजाय उन्हें बर्दवान-दुर्गापुर सीट से चुनाव लड़ने के लिए कहा गया। यह सीधे तौर पर घोष के लिए एक झटका था। वह पूर्व क्रिकेटर और तृणमूल उम्मीदवार कीर्ति आजाद से चुनाव हार गए। 

हाल के महीनों में घोष के लिए स्थिति और भी कठिन हो गई है। इसी साल अप्रैल में वह बंगाल के दीघा में जगन्नाथ मंदिर के उद्घाटन के ममता बनर्जी सरकार के कार्यक्रम में मौजूद थे, और यहां तक ​​​​कि मुख्यमंत्री के साथ उनकी छोटी से मुलाकात भी हुई, जो चर्चा में रही। घोष ने मंदिर की भी प्रशंसा की, जिसे टीएमसी भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे के जवाब के रूप में पेश कर रही है।

संभवत: यह भाजपा के लिए अच्छा संदेश नहीं था। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने घोष के कदम की आलोचना भी की। उन्होंने कहा कि पार्टी ने मंदिर समारोह का ‘सामूहिक रूप से बहिष्कार करने का फैसला किया है।’ दूसरी ओर जवाब में घोष ने कहा कि उन्हें मंदिर जाने के लिए किसी की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

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