Friday, October 10, 2025
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वक्फ कानून से जुड़े तीन पहलू कौन से हैं, जिसका जिक्र सुप्रीम कोर्ट ने पहली सुनवाई में खास तौर पर किया?

नई दिल्ली: संसद के बाद वक्फ कानून को लेकर अदालत के कटघरे में कानूनी दांव-पेंच शुरू हो गए हैं। कानून की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने सुनवाई की। यह सुनवाई आज भी जारी रहेगी। 

कोर्ट ने कल की सुनवाई के दौरान वक्फ कानून के तीन प्रमुख मुद्दों की खास तौर पर चर्चा की और चिंता जताई। इसमें एक मसला ‘वक्फ बाय यूजर’ का रहा। दूसरा अहम बिंदू वक्फ परिषद और वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल किए जाने का प्रावधान और तीसरा वह प्रावधान है जिसमें विवादित वक्फ भूमि जैसे मसलों पर कलेक्टर को जिस तरह की शक्तियां दी गई हैं। 

दरअसल, 2025 के कानून में कहा गया है कि यदि जिला कलेक्टर किसी संपत्ति को सरकारी भूमि के रूप में चिन्हित करता है, तो वह दावे के बावजूद तब तक वक्फ संपत्ति नहीं रहेगी जब तक कि अदालत उसकी स्थिति निर्धारित नहीं कर देती। कुल मिलाकर क्या हैं तीनों पहलू, और कोर्ट ने क्या कहा, इसे समझने की कोशिश करते हैं।

 सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ बाय यूजर पर क्या कहा?

कोर्ट ने कहा, ‘जब कोई कानून पारित होता है, तो न्यायालय आम तौर पर हस्तक्षेप नहीं करते हैं। यदि ‘वक्फ बाय यूजर’ प्रोपर्टी को मुक्त कराया जाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं।’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘हम कहेंगे कि न्यायालय द्वारा वक्फ घोषित की गई या वक्फ मानी गई संपत्तियों को मुक्त नहीं किया जाएगा या उन्हें गैर-वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा, चाहे वह वक्फ बाय यूजर हो या घोषणा द्वारा किया गया वक्फ’

बता दें कि ‘वक्फ बाय यूजर’ का अर्थ है ऐसी भूमि जिसका लंबे समय से मुस्लिम धार्मिक या जनहित के उद्देश्य से प्रयोग होता रहा हो। भले ही इसे औपचारिक रूप से वक्फ के रूप में दर्ज नहीं किया गया हो, फिर भी इसे वक्फ माना जाता है। नया कानून इस अवधारणा को समाप्त कर देता है, जिससे लाखों मौजूदा वक्फ संपत्तियों की वैधता पर प्रश्नचिन्ह लग सकता है।

सीजेआई खन्ना ने कहा, ‘आप तर्क दे सकते हैं कि वक्फ-बाय-यूजर का दुरुपयोग हुआ है, लेकिन हर मामला गलत नहीं होता। कई वास्तविक मामले भी हैं। ऐसे में इसे पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता।’

वहीं, केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि 1923 से अब तक वक्फ की अनिवार्य पंजीकरण व्यवस्था रही है और बिना पंजीकरण के कोई भी वक्फ वैध नहीं माना जा सकता यहां तक कि ‘वक्फ-बाय-यूजर’ भी नहीं। उन्होंने कहा कि नए कानून में पंजीकृत वक्फ ही प्रभावी रहेंगे। मेहता ने बताया, “1923 से लेकर 1995 तक के सभी वक्फ अधिनियमों में यह स्पष्ट किया गया है कि पंजीकरण अनिवार्य है।”

कलेक्टर की जांच के दौरान संपत्ति के बतौर वक्फ रखने पर रोक

कोर्ट ने इस विषय पर कहा, ‘क्या यह उचित है? कलेक्टर द्वारा जांच शुरू करने के क्षण से और जब उन्होंने अभी तक निर्णय नहीं लिया है, तब भी आप कहते हैं कि इसे वक्फ नहीं माना जा सकता.. इस प्रावधान से क्या उद्देश्य पूरा होगा?’

कोर्ट ने कहा, ‘कलेक्टर कार्यवाही जारी रख सकते हैं, लेकिन प्रावधान प्रभावी नहीं होगा। यदि वे चाहें तो इस न्यायालय के समक्ष आवेदन प्रस्तुत कर सकते हैं और हम इसमें संशोधन कर सकते हैं।’

वक्फ बोर्ड और परिषद की संरचना पर सुप्रीम कोर्ट

कोर्ट ने कहा, ‘जब भी हिंदू बंदोबस्ती की बात आती है, तो क्या आप मुसलमानों को इन निकायों का सदस्य बनने की अनुमति देते हैं? खुलकर बताएं।’

कोर्ट ने आगे कहा, ‘जहां तक ​​बोर्ड और परिषद के संविधान का सवाल है, पदेन सदस्यों को उनकी आस्था की परवाह किए बिना नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन अन्य सदस्य मुसलमान होने चाहिए।’

गौरतलब है कि बुधवार को तीन जजों की बेंच मामले पर अंतरिम आदेश सुनाना चाहती थी। हालांकि, सॉलिसिटर जनरल मेहता ने कुछ और समय के लिए सुनवाई की मांग की। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि वह आदेश पारित करने से पहले 17 अप्रैल को दोपहर 3 बजे मामले की फिर से सुनवाई करेगा। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह ये भी तय करेगा कि मामलों की सुनवाई वही जारी रखेगा या इसे पहले विचार के लिए किसी हाई कोर्ट को भेजा जाए।

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