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अभियुक्त बरी हुआ तो पीड़ित या उनके कानूनी वारिस कर सकते हैं अपील: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त के बरी हो जाने की स्थिति में किसी भी अपराध के पीड़ित को, चाहे अपराध की प्रकृति कुछ भी हो, सीधे अपील करने का अधिकार होना चाहिए। अब तक राज्य या शिकायतकर्ता को ही अपील दायर करने का अधिकार था।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक कानून के मामले में एक महत्वपूर्ण व्याख्या करते हुए कहा है कि अपराध के पीड़ितों और उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को भी बरी किए गए अभियुक्त के मामले में फैसले को चुनौती देने का अधिकार है। अब तक निचली अदालत या हाई कोर्ट द्वारा किसी अभियुक्त को बरी किए जाने की स्थिति में, राज्य या शिकायतकर्ता को ही अपील दायर करने का अधिकार था।

टाइम्स ऑफ इंडिया कि रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने पिछले सप्ताह अभियुक्तों को बरी किए जाने के विरुद्ध अपील करने का अधिकार दो और श्रेणियों के लोगों को प्रदान कर दिया। इसमें वे लोग जिन्हें अपराध में चोट या नुकसान हुआ है और अपराध के पीड़ितों के कानूनी उत्तराधिकारी शामिल हैं।

58 पन्नों के इस ऐतिहासिक फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा, ‘अपराध के पीड़ित के अधिकार को दोषसिद्धि झेल चुके अभियुक्त के अधिकार के बराबर रखा जाना चाहिए, जो (अभियुक्त) अधिकार के तौर पर सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता) की धारा 374 के तहत अपील कर सकता है।’

पीठ ने कहा, ‘हमारा मानना ​​है कि पीड़ित को कमतर अपराध के लिए दोषसिद्धि के विरुद्ध, अपर्याप्त मुआवजा दिए जाने के विरुद्ध, या यहाँ तक कि बरी किए जाने के मामले में भी अपील करने का पूरा अधिकार है…जैसा कि सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान में कहा गया है।’

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों और विधि आयोग की रिपोर्टों का हवाला देते हुए, पीठ ने कहा कि अपराध के पीड़ितों के अभियुक्तों को बरी किए जाने या कम सजा दिए जाने के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील दायर करने के अधिकार को ‘सीमित नहीं किया जा सकता।’

‘पीड़ित की मृत्यु हो जाने पर उत्तराधिकारी को अपील करने का हक’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘किसी अपराध के लिए दोषी ठहराए गए व्यक्ति को सीआरपीसी की धारा 374 के तहत अपील करने का अधिकार है, और इस पर कोई शर्त नहीं है। इसी प्रकार, किसी भी अपराध के पीड़ित को, चाहे अपराध की प्रकृति कुछ भी हो, सीआरपीसी के अनुसार अपील करने का अधिकार होना चाहिए।’

जस्टिस नागरत्ना और विश्वनाथन ने कहा कि यदि किसी अपराध के पीड़ितों को अभियुक्तों को बरी किए जाने या कम सजा दिए जाने के खिलाफ अपील करने का अधिकार है, तो उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को भी अपील दायर करने का समान अधिकार होगा। यदि अपील दायर करने के बाद पीड़ित घायल व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो कानूनी उत्तराधिकारी मुकदमा चलाने के लिए आगे आ सकते हैं।

कोर्ट ने कहा, ‘ऐसा हमेशा नहीं होता कि राज्य या शिकायतकर्ता अपील करना पसंद करें। लेकिन जब पीड़ित के अपील करने के अधिकार की बात आती है, तो सीआरपीसी की धारा 378(4) के तहत उच्च न्यायालय से अपील करने की विशेष अनुमति मांगने पर जोर देना, सीआरपीसी की धारा 372 में प्रावधान जोड़कर संसद द्वारा व्यक्त की गई मंशा के उलट होगा।’

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा, ‘इसलिए, राज्य या शिकायतकर्ता द्वारा बरी किए जाने के आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने की वैधानिक कठोरता को सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान में इस तरह नहीं पढ़ा जाना चाहिए पीड़ित के उसमें उल्लिखित आधारों पर अपील दायर करने के अधिकार प्रतिबंधित हैं, जबकि ऐसा कहीं नही है।’

विनीत कुमार
पूर्व में IANS, आज तक, न्यूज नेशन और लोकमत मीडिया जैसी मीडिया संस्थानों लिए काम कर चुके हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज, रांची से मास कम्यूनिकेशन एंड वीडियो प्रोडक्शन की डिग्री। मीडिया प्रबंधन का डिप्लोमा कोर्स। जिंदगी का साथ निभाते चले जाने और हर फिक्र को धुएं में उड़ाने वाली फिलॉसफी में गहरा भरोसा...

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