देहरादून: उत्तराखंड देश का पहला राज्य बनने जा रहा है जिसने अपने मदरसा शिक्षा बोर्ड को खत्म कर दिया है। इसकी जगह अब उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम 2025 को लागू कराने की तैयारी है। इस अधिनियम को राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह ने भी हाल में मंजूरी दे दी है। इस बीच उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता हरीश रावत ने सरकार के कदम पर विरोध जताया है। उन्होंने कहा कि नई पहल मदरसा शिक्षा में आधुनिकीकरण की गति को रोक देगी।
वहीं, मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को बताया कि नए कानून के तहत सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अधिनियम के तहत स्थापित एक अलग सरकारी प्राधिकरण से अनिवार्य संबद्धता प्राप्त करनी होगी। इसके लागू होने के साथ मौजूदा उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड निरर्थक हो जाएगा और औपचारिक रूप से भंग हो जाएगा।
इससे पहले सोमवार को अधिनियम पर राज्यपाल को उनकी सहमति के लिए धन्यवाद देते हुए सीएम धामी ने कहा, ‘अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 को स्वीकृति प्रदान करने के लिए माननीय राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह का हार्दिक आभार। इस कानून के लागू होने के बाद मदरसों सहित अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अब उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से मान्यता लेनी होगी।’
मुख्यमंत्री ने आगे कहा, ‘अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मान्यता प्रदान करने के लिए अधिनियम के तहत एक प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। राज्यपाल की स्वीकृति से इस कानून का मार्ग प्रशस्त हुआ है, जो राज्य की शिक्षा व्यवस्था को और अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और गुणवत्तापूर्ण बनाएगा।’
राज्य मदरसा शिक्षा बोर्ड के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि मुख्यमंत्री की घोषणा से बोर्ड प्रभावी रूप से प्रासंगिक नहीं रह जाएगा, क्योंकि इसकी संबद्धता नए प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दी जाएँगी। उन्होंने संकेत दिया कि अधिनियम के पूरी तरह लागू होने के बाद बोर्ड को भंग कर दिया जाएगा।
2026 से नई शिक्षा नीति और NCF अपनाना अनिवार्य
सीएम धामी ने यह भी घोषणा की कि राज्य के सभी अल्पसंख्यक स्कूलों को जुलाई 2026 से शुरू होने वाले शैक्षणिक सत्र से नेशनल करिकुलम फ्रेमवर्क (NCF) को अपनाना और राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को लागू करना अनिवार्य होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘नया अल्पसंख्यक शिक्षा कानून यह सुनिश्चित करेगा कि अल्पसंख्यक संस्थानों में पढ़ने वाले छात्रों को गुणवत्तापूर्ण और आधुनिक शिक्षा मिले। यह राज्य के शैक्षिक सुधारों में एक अहम लम्हा है और शिक्षा व्यवस्था में समानता लाने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।’
वहीं, मुख्यमंत्री कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘उत्तराखंड भारत का पहला राज्य होगा जो अपने मदरसा बोर्ड को समाप्त कर देगा और अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में शामिल करेगा।’
नए अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम की अहम बातें
- नए कानून के लागू होते ही मदरसा बोर्ड पूरी तरह से खत्म हो जाएंगे
- अल्पसंख्यक स्कूलों को नए प्रधिकरण से उत्तराखंड शिक्षा बोर्ड से मान्यता लेनी होगी।
- साथ ही नए कानून के तहत सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों को अधिनियम के तहत स्थापित एक अलग सरकारी प्राधिकरण से अनिवार्य संबद्धता प्राप्त करनी होगी।
- सभी स्कूल एक शिक्षा प्रणाली का पालन करेंगे।
- इस विधेयक के तहत मदरसों को अब उत्तराखंड बोर्ड के अंतर्गत पंजीकरण कराना तो जरूरी होगा ही, साथ ही उनके पाठ्यक्रम में विज्ञान, गणित और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयों को शामिल करना अनिवार्य होगा।
आधुनिक तकनीकी शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण पर भी जोर दिया जाएगा। राज्य सरकार के अनुसार यह कदम अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों को बेहतर भविष्य के लिए सशक्त बनाने में मदद करेगा।
हालाँकि, कुछ संगठनों ने इस फैसले पर चिंता व्यक्त की है। उनका तर्क है कि मदरसों की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को बनाए रखने के लिए विशेष प्रावधान किए जाने चाहिए। इसके जवाब में सरकार ने आश्वासन दिया है कि पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा को अनुमति दी जाएगी, लेकिन आधुनिक शिक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी।
हरीश रावत ने जताया विरोध
इस बीच कांग्रेस ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा अधिनियम को लेकर विरोध जताया है। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता हरीश रावत ने बुधवार को कहा कि नया उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक 2025 मदरसा शिक्षा में आधुनिकीकरण की गति को रोक देगा।
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए हरीश रावत ने कहा, ‘नारायण दत्त तिवारी की सरकार के दौरान, मदरसों को समावेशी शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के लिए कुछ कदम उठाए गए थे, जिन पर बाद की सभी सरकारों ने आगे भी काम जारी रखा है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘इस नए कदम के प्रभाव और दुष्प्रभाव भविष्य में पता चलेंगे। हालाँकि, मुझे चिंता है कि इससे मदरसा शिक्षा में आधुनिकीकरण की गति रुक सकती है।’
उन्होंने आगे कहा, ‘मदरसों में समावेशी शिक्षा के परिणामस्वरूप, अब विभिन्न जातियों और धर्मों के लोग शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और राज्य पर बोझ भी कम हो रहा है। आप किसी समुदाय को जितना अलग-थलग करेंगे, उतनी ही कट्टरता बढ़ेगी, तनाव बढ़ेगा और सामाजिक घृणा बढ़ेगी।’