Friday, October 10, 2025
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12 राज्यों में 1500 से अधिक Aadhaar से छेड़छाड़, यूपी में हाई-टेक साइबर रैकेट का भंडाफोड़

मेरठ/संभल: उत्तर प्रदेश पुलिस ने बदायूं और अमरोहा से संचालित एक हाई-टेक पहचान धोखाधड़ी रैकेट का भंडाफोड़ किया है। रैकेट ने देशभर के 12 राज्यों में 1,500 से अधिक आधार कार्ड धारकों की बायोमेट्रिक जानकारी से छेड़छाड़ की है। इस ऑपरेशन का नेतृत्व संभल के एसपी कृष्ण कुमार बिश्नोई और एएसपी अनुकृति शर्मा ने किया। पुलिस ने इस गिरोह के चार मुख्य सदस्यों को गिरफ्तार किया है।

गिरफ्तार किए गए आरोपियों में बदायूं के आशीष कुमार, धर्मेंद्र सिंह, रौनक पाल और अमरोहा के कासिम हुसैन शामिल हैं। सभी की उम्र 20 से 25 वर्ष के बीच है। पुलिस के अनुसार, यह गिरोह यूआईडीएआई की प्रणाली में तकनीकी खामियों का फायदा उठाकर धोखाधड़ी कर रहा था।

टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, इस गिरोह का नेटवर्क बेहद संगठित था और इसमें 200 से 300 “रिटेल एजेंट” शामिल थे, जो उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, पंजाब, पश्चिम बंगाल और दिल्ली जैसे राज्यों में फैले हुए थे। ये एजेंट ऐसे ग्राहकों से दस्तावेज इकट्ठा करते थे जो अपने आधार कार्ड में नाम, पता, जन्मतिथि या मोबाइल नंबर को अवैध रूप से अपडेट कराना चाहते थे। इसके बदले में वे 2,000 रुपये से 5,000 रुपये तक वसूलते थे।

फर्जी वेबसाइट और नकली दस्तावेजों का जाल

इस पूरे नेटवर्क का तकनीकी मास्टरमाइंड आशीष कुमार था, जो एक बीटेक ड्रॉपआउट है। पुलिस का कहना है कि आशीष ने आधार और पासपोर्ट सेवा की सरकारी वेबसाइट्स की नकल करते हुए फर्जी पोर्टल बनाए थे। इन पोर्टलों के ज़रिए एजेंट फर्जी जानकारी भरते और नकली दस्तावेज़, यहां तक कि पासपोर्ट भी जनरेट कर लेते थे।

ये जानकारियाँ यूआईडीएआई की असली प्रणाली में इस तरह फीड की जाती थीं कि वे वैध लगें। इसके लिए गिरोह अधिकृत आधार ऑपरेटरों की संवेदनशील बायोमेट्रिक जानकारी- जैसे कि आईरिस स्कैन की क्लोनिंग करता था और भू-स्थान प्रतिबंध (geo-fencing) को बायपास करने के लिए उन्नत सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करता था।

नकली फिंगरप्रिंट का करते थे इस्तेमाल

गिरोह के सदस्य कासिम हुसैन ने विशेष रूप से फिंगरप्रिंट स्कैनर में छेड़छाड़ करने का काम किया। उसने सिलिकॉन मोल्डिंग की मदद से नकली फिंगरप्रिंट बनाए, जिन्हें असली ऑपरेटरों और गरीब वर्ग के आम लोगों के अंगूठे के निशानों से तैयार किया गया था। इन नकली निशानों से स्कैनर को यह प्रतीत होता था कि असली ऑपरेटर ही स्कैन कर रहा है।

पुलिस को इस रैकेट के पास से फर्जी राशन कार्ड, जन्म प्रमाण पत्र और अन्य पहचान दस्तावेज भी मिले हैं। दिसंबर 2024 में जब आधार वेरिफिकेशन के नियम सख्त हुए, तब गिरोह ने रणनीति बदलते हुए तीसरे पक्ष के पोर्टल्स का इस्तेमाल करना शुरू किया और 20 से अधिक फर्जी पासपोर्ट बनाए, जिनमें से कई को यूआईडीएआई प्रणाली में सफलतापूर्वक अपलोड कर दिया गया।

सख्त धाराओं में केस दर्ज

पुलिस ने इन आरोपियों के खिलाफ धोखाधड़ी, पहचान चोरी, फर्जी सील रखने, संरक्षित प्रणालियों तक अनधिकृत पहुंच आदि के आरोपों में आधार अधिनियम, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2016 और पासपोर्ट अधिनियम 1967 के तहत मामले दर्ज किए हैं।

एसपी बिश्नोई ने कहा, “यह एक सुनियोजित और अत्याधुनिक तकनीकी फ्रॉड था, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में फैलाकर अंजाम दिया जा रहा था। हम इस मामले में और भी गिरफ्तारियां जल्द कर सकते हैं।”

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