नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने 7 अक्टूबर, सोमवार को 2017 के उन्नाव पीड़िता की मां द्वारा दायर की गई एक विविध आवेदन पर सुनवाई की। इस आवेदन में उन्होंने अपने और अपने परिवार के सदस्यों के जीवन और स्वतंत्रता को गंभीर खतरा होने का आरोप लगाया। वहीं, सुप्रीम कोर्ट से सीआरपीएफ सुरक्षा वापस लेने के फैसले को वापस लेने की मांग की है।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उनके परिवार से सीआरपीएफ की सुरक्षा वापस लेने की मांग की थी। जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस पीबी वराले की पीठ ने दिल्ली सरकार को हो हफ्तों के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया। इसमें दिल्ली सरकार को यह बताना होगा कि क्या आवेदक और उनके परिवार के सदस्यों के जीवन को कोई खतरा है। दिल्ली सरकार को यह भी बताना होगा कि क्या परिवार ने सुरक्षा कवर की मांग करते हुए सक्षम प्राधिकारी से संपर्क किया है।
सुप्रीम कोर्ट के घटनाक्रम के बाद आया आदेश
यह घटनाक्रम न्यायालय द्वारा 25 मार्च को दिए गए उस आदेश के बाद आया है जिसमें भारत सरकार द्वारा दायर एक हस्तक्षेप याचिका को स्वीकार कर लिया गया था। इस याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के 1 अगस्त, 2019 के उस निर्देश में संशोधन की मांग की गई थी जिसमें पीड़िता, उसके वकील, माँ, भाई-बहन, चाचा और चाचा के परिवार को तत्काल सीआरपीएफ सुरक्षा प्रदान करने का आदेश दिया गया था। केंद्र सरकार ने पीड़िता को छोड़कर सभी से सुरक्षा वापस लेने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट में आज हुई सुनवाई के दौरान अधिवक्ता महमूद प्राचा ने बताया कि सुरक्षा के लिए एक आवेदन दिल्ली विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष लंबित है।
जस्टिस मिथल ने कहा कि इस स्तर पर सुरक्षा प्रदान करने में उत्तर प्रदेश राज्य की कोई भूमिका नहीं है और उन्होंने पूछा कि आवेदन किस प्राधिकारी के समक्ष किया गया था। जब आवेदक के वकील प्रासंगिक दस्तावेज प्रस्तुत नहीं कर सके तो जस्टिस वराले ने कहा “
जब तक आप यह नहीं दिखाएंगे तब तक कोई भी आदेश पारित करना बहुत कठिन होगा।”
दिल्ली एनसीआर के वकील ने दलील दी कि आवेदक ने किसी स्थानीय प्राधिकरण से संपर्क नहीं किया है। अदालत ने इसके बाद दिल्ली को आवेदक और उसके परिवार के प्रति खतरे की आशंका के बारे में हलफनामा दाखिल करने को कहा है।
2019 में सीजेआई को लिखा पत्र
साल 2019 में सीजेआई को एक पत्र लिखा गया था जिसमें धमकियों की आशंका व्यक्त की गई थी। इसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी संबंधित मामलों को लखनऊ स्थित सीबीआई अदालत से दिल्ली की एक जिला अदालत में ट्रांसफर कर दिया था। जुलाई 2019 में रायबरेली के पास में एक ट्रक ने रेप पीड़िता की कार को टक्कर मार दी थी दो मौसी की मौत हो गई और पीड़िता तथा वकील गंभीर रूप से घायल थे।
दिसंबर 2019 में ट्रायल कोर्ट ने भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और अन्य को दोषी ठहराया था। सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को इस मामले में हर तीन महीने में पीड़िता और उसके परिवार को होने वाले खतरे की आशंका का आकलन करने का निर्देश दिया था।
अभी दायर किए गए आवेदन के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से 2022 में खतरे को लेकर एक हलफनामा दायर किया गया था, जिसके बाद से सीबीआई द्वारा कोई रिपोर्ट नहीं प्रस्तुत की गई है।
वहीं, पीड़ित परिवार की ओर से आरोप लगाया गया कि सुरक्षा वापस लेने के बाद आवेदक के आवास पर रात में हमला किया गया और तोड़फोड़ की गई। इसके साथ ही कीमती सामान भी चुरा लिया गया। इसमें यह भी दावा किया गया कि दोषी का अभी भी प्रभाव काफी है और पीड़िता की परिवार की सुरक्षा के लिए वह गंभीर खतरा है।