Friday, October 10, 2025
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20 साल पहले जब हिंद महासागर में आई थी विनाशकारी सुनामी…2 लाख से ज्यादा मौतें

नई दिल्ली: दुनिया के इतिहास में 26 दिसंबर, 2004 का दिन शायद कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। एक ऐसा दिन, जब एक भयंकर तबाही ने कुछ मिनटों में दर्जन भर देश के लाखों लोगों की जान ले ली। यह एक ऐसी प्रकृतिक आपदा थी जिसने एशिया से लेकर पूर्वी अफ्रीका तक के लोगों को प्रभावित किया। यही नहीं, इस घटना से दुनिया के हर आम या खास इंसान का परिचय सुनामी शब्द से करा दिया। क्या हुआ था उस दिन और क्यों इसे आधुनिक इतिहास के सबसे बुरे प्राकृतिक आपदाओं में गिना जाता है, आईए जानते हैं।

26, दिसंबर 2004: हिंद महासागर से भूकंप और सुनामी

26 दिसंबर, 2004…यह रविवार का दिन था और लोग क्रिसमस के जश्न के बाद सुबह उठे ही थे। किसी को अंदाजा तक नहीं था कि अगले कुछ मिनटों में क्या होने वाला है।

सुबह के 7:59 बजे थे जब इंडोनेशियाई द्वीप सुमात्रा से करीब 160 मील (करीब 250 किलोमीटर) पश्चिम में हिंद महासागर के नीचे एक जबरदस्त भूकंप आया। इस भूकंप इतना तेज था कि इसकी वजह से समुद्र में 30 मीटर (100 फीट) से अधिक ऊंची विशाल लहरें पैदा हुईं।

इससे निकलने वाली उर्जा एक अनुमान के मुताबिक ऐसी थी जैसे हिरोशिमा पर उसी क्षमता वाले 23,000 परमाणु बम गिरा दिए गए हों। शुरू में भूकंप की तीव्रता 8.8 दर्ज की गई थी। कुछ देर बाद में अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ने इसकी आधिकारिक तीव्रता 9.1 और गहराई धरती में 30 किलोमीटर (18.6 मील) बताई। भूकंप के बाद समुद्री तल में तेज हलचल की वजह से ऊंची-ऊंची लहरे उठने लगीं और यही जब सुनामी के रूप में तटों से टकराई तो भयंकर तबाही मची।

भूकंप के बाद सुनामी…कई देशों में मची तबाही

इंडोनेशिया पहले से ही उच्च भूकंपीय गतिविधि वाला क्षेत्र रहा है। इंडोनेशियाई द्वीप समूह जापान से दक्षिण पूर्व एशिया तक प्रशांत बेसिन तक फैला हुआ है। सुनामी से सबसे ज्यादा तबाही इसी देश में मची। भूकंप के करीब 15 मिनट बाद ही ऊंची लहरे तेज बहाव के साथ तटों पर पहुंचने लगी थीं। इंडोनेशिया में सुनामी से मरने वालों की संख्या 130,000 से 160,000 के बीच होने के अनुमान हैं।

यह तेज लहरें थाईलैंड, भारत, श्रीलंकाई तटों पर भी पहुंची। लहरें शुरुआत में जब अपनी अधिकतम गति पर थी, तो वे 800 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड से आगे बढ़ रही थीं। यह सबसे तेज बुलेट ट्रेन की गति से भी दोगुनी से है। EM-DAT (एक वैश्विक डिजास्टर डेटाबेस) के अनुसार इस सुनामी से श्रीलंका में लगभग 35,000 लोग, भारत में 16,389 और थाईलैंड में 8,345 लोग मारे गए। तटों के किनारे बसे लाखों लोगों के घर बर्बाद हो गए।

सुनामी का इन देशों पर भी असर

सोमालिया में लगभग 300, मालदीव में 100 से अधिक लोग मारे गए। इसके अलावा मलेशिया और म्यांमार में दर्जनों लोग मारे गए। सुनामी ने 15 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित किया। इनमें से अधिकतर चार सबसे अधिक प्रभावित देशों- इंडोनेशिया, श्रीलंका, भारत और थाईलैंड से थे। यही नहीं, हजारों स्कूल, अस्पताल और बुनियादी ढाँचे नष्ट हो गए।

इस प्राकृतिक आपदा में लगभग 190,000 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। वहीं, करीब 40 से 45 हजार लोग लापता हैं। अब माना जाता है कि वे भी इस आपदा में मारे गए।

2004 की उस सुनामी के बाद क्या बदला?

सुनामी की उस प्राकृतिक आपदा के बाद दुनिया भर से मदद के लिए हाथ उठे। अरबों डॉलर की मानवीय सहायता प्रभावित इलाकों के लिए भेजी गई। 2004 की उस सुनामी ने हिंद महासागर क्षेत्र में तटीय समुदायों और देशों को ऐसी आपदा से बचाव के लिए अपनी तैयारियों के स्तर का पुनर्मूल्यांकन करने पर भी मजबूर किया।

भूकंप के समय हिंद महासागर में कोई चेतावनी प्रणाली नहीं थी। हालाँकि, अब दुनिया भर में 1,400 स्टेशनों को तैयार किया गया है, जो समय रहते सुनामी लहरों की चेतावनी जारी करें। इससे बचाव कार्य तेजी से शुरू किया जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, 2004 की आपदा ने बुरी तरह से प्रभावित इसलिए किया क्योंकि चेतावनी प्रणाली बेहद खराब स्तर की थी। समुद्र वैज्ञानिकों के अनुसार, अब सुनामी चेतावनी प्रणालियों पर लाखों डॉलर खर्च किए गए हैं। इस वजह से सरकारें भविष्य में आने वाली ऐसी तबाही से निपटने के लिए पहले से कहीं अधिक तैयार हैं।

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