Wednesday, September 10, 2025
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द ग्रेट निकोबार प्रोजेक्टः 72 हजार करोड़ की यह परियोजना विवादों में क्यों, कांग्रेस क्यों उठा रही सवाल?

‘ग्रेट निकोबार द्वीप के समग्र विकास’ के रूप में जाना जाने वाला यह प्रोजेक्ट 2021 में नरेंद्र मोदी कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था। यह 30 वर्षों में 72,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर पूरा होगा।

भारत के दक्षिणी छोर से 9 किमी दूर द ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट के जरिए केंद्र सरकार अपने दक्षिण-पूर्वी किनारे पर व्यावसायिक ट्रांसशिपमेंट क्षमता का लाभ उठाना चाहता है। इस प्रोजेक्ट को भारत के लिए एक वैश्विक शिपिंग हब बनने के प्रवेश द्वार के रूप में प्रचारित किया जा रहा है।

हालांकि पर्यावरणविदों और आलोचकों का मानना है कि यह प्रोजेक्ट दुनिया के सबसे अधिक जैव-विविधता वाले और आपदा-प्रवण पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह कर देगा। अरबों डॉलर के इस प्रोजेक्ट पर कांग्रेस लगातार सवाल खड़े कर रही है। सोनिया गांधी के द हिंदू में लिखे एक लेख के बाद यह परियोजना एक बार फिर चर्चा में है। आइए समझते हैं कि यह प्रोजेक्ट क्या है, भारत को इससे क्या उम्मीद है, और क्यों यह इतना विवादों में है।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट क्या है?

‘ग्रेट निकोबार द्वीप के समग्र विकास’ के रूप में जाना जाने वाला यह प्रोजेक्ट 2021 में नरेंद्र मोदी कैबिनेट द्वारा अनुमोदित किया गया था। यह 30 वर्षों में 72,000 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत पर पूरा होगा। यह परियोजना ग्रेट निकोबार के 910 वर्ग किमी क्षेत्र के लगभग 10 प्रतिशत हिस्से को कवर करेगी।

इसके चार मुख्य घटक हैं। पहला- गैलाथिया खाड़ी में एक ट्रांसशिपमेंट बंदरगाह बनाया जाएगा, जो सालाना 14.5 मिलियन कंटेनर यूनिट संभालने में सक्षम होगा। इस बंदरगाह का उद्देश्य चीन के प्रभाव वाले मलक्का जलडमरूमध्य के पास स्थित सिंगापुर के बंदरगाह को टक्कर देना है, जहाँ से दुनिया का लगभग 25% व्यापार होता है। इस बंदरगाह के बनने से भारत का लक्ष्य मलक्का जलडमरूमध्य से आने वाले 20-30% क्षेत्रीय माल को अपनी ओर आकर्षित करके विदेशी हब पर अपनी निर्भरता कम करना है।

दूसरा, बेहतर कनेक्टिविटी के लिए 3,300 मीटर के रनवे वाला एक नया अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा प्रस्तावित है, जो बड़े विमानों को भी संभाल पाएगा। तीसर- ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करने के लिए 450 मेगावाट का गैस-आधारित और सौर ऊर्जा संयंत्र भी बनाया जाएगा। चौथा और आखिरी (नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार) 65,000 निवासियों, जिनमें श्रमिक और प्रवासी शामिल हैं, के लिए 16,569 हेक्टेयर की एक टाउनशिप भी बनाने की योजना है।

ग्रेट निकोबार परियोजना का आर्थिक और रणनीतिक महत्व

सरकारी अनुमानों के अनुसार, यह पोर्ट 2040 तक सालाना 30,000 करोड़ रुपये का राजस्व उत्पन्न कर सकता है, साथ ही 50,000 नौकरियाँ भी पैदा करेगा। यह केंद्र की ‘सागरमाला’ पहल के अनुरूप है, जो तटीय आर्थिक क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देती है।

रणनीतिक रूप से, यह प्रोजेक्ट भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री खतरों के खिलाफ एक अग्रिम पंक्ति के रूप में कार्य कर सकता है। यह चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ रणनीति का मुकाबला करने का भी एक तरीका है। नौसेना के पूर्व प्रमुख, एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा था कि ये द्वीप हमारी रणनीतिक पहुँच को बहुत बढ़ा देते हैं।

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर विवाद क्यों है?

हालांकि आलोचकों का कुछ अलग ही कहना है। पर्यावरणविद मानते हैं कि यह प्रोजेक्ट एशिया के सबसे समृद्ध पारिस्थितिक तंत्रों में से एक को खतरे में डाल देगा। ग्रेट निकोबार एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जहाँ 200 से ज्यादा पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। पोर्ट के लिए प्रस्तावित यह क्षेत्र विशाल लेदरबैक समुद्री कछुए के लिए सबसे महत्वपूर्ण घोंसला बनाने का स्थान है। पर्यावरणविदों का कहना है कि लाखों क्यूबिक मीटर समुद्री तल की खुदाई से मूंगा चट्टानें नष्ट हो जाएँगी।

यह द्वीप लगभग 300-400 सदस्यों वाली ‘शोम्पेन’ जनजाति का घर भी है। यह एक विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह है, जो शिकार और भोजन इकट्ठा करने की परंपराओं पर निर्भर रहते हैं। यह प्रोजेक्ट उन्हें उनकी 130 वर्ग किमी की पैतृक भूमि से विस्थापित कर देगा। संरक्षण समूह ‘सर्वाइवल इंटरनेशनल’ के एक अधिकारी कैलम रसेल ने कहा था कि बाहरी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता न होने के कारण इन लोगों के लिए खतरा बढ़ जाएगा।

आलोचकों ने तटीय विनियमन क्षेत्र-1A जैसे कानूनी मुद्दों पर भी सवाल उठाए हैं, जहाँ बड़े निर्माण परियोजनाओं की अनुमति नहीं है। मार्च 2025 में, केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुआल ओराम ने दावा किया था कि स्थानीय लोगों से कोई आपत्ति नहीं मिली थी। लेकिन इस दावे का लिटिल और ग्रेट निकोबार ट्राइबल काउंसिल के अध्यक्ष बार्नाबास मंजू ने खंडन किया था। उन्होंने साफ किया था कि 2022 में औपचारिक आपत्तियाँ प्रस्तुत की गई थीं, लेकिन उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

सोनिया गांधी ने द ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट को लेकर क्या सवाल खड़े किए?

सोमवार को कांग्रेस संसदीय दल की अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ‘द हिंदू’ में एक लेख लिखकर इस प्रोजेक्ट की तीखी आलोचना की। राहुल गांधी ने लेख को साझा करते हुए लिखा कि यह परियोजना आदिवासी अधिकारों का हनन करती है और कानूनी व विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक उड़ाती है।

‘द मेकिंग ऑफ एन इकोलॉजिकल डिजास्टर इन द निकोबार’ शीर्षक से लिखे लेख में सोनिया गांधी ने प्रोजेक्ट को सुनियोजित दुस्साहस बताया और कहा कि यह प्रकृति और आदिवासियों के अस्तित्व के लिए खतरा है।

सोनिया गांधी ने लेख में कहा कि 72,000 करोड़ रुपये का यह पूरी तरह से गलत खर्च एक तरफ द्वीप के स्वदेशी आदिवासी समुदायों के अस्तित्व के लिए खतरा है, तो दूसरी तरफ दुनिया के सबसे अनोखे पेड़-पौधों और वन्यजीवों वाले पारिस्थितिकी तंत्र को तबाह कर रहा है। इसके अलावा, यह इलाका प्राकृतिक आपदाओं के प्रति बहुत संवेदनशील है। फिर भी, इसे संवेदनहीन तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है जो सभी कानूनी और विचार-विमर्श प्रक्रियाओं का मजाक है।

उन्होंने आगे लिखा कि ‘2004 की सुनामी के दौरान भी निकोबारी आदिवासियों को अपने गाँव छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था। यह प्रोजेक्ट अब इस समुदाय को स्थायी रूप से विस्थापित कर देगा, जिससे उनके पैतृक गाँवों में लौटने का सपना हमेशा के लिए खत्म हो जाएगा।’

सोनिया गांधी ने लिखा था, इस प्रोजेक्ट के लिए द्वीप की लगभग 15% भूमि के पेड़ों को काटना होगा, जिससे एक राष्ट्रीय और विश्व स्तर पर अद्वितीय वर्षावन पारिस्थितिकी तंत्र तबाह हो जाएगा। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का अनुमान है कि 8.5 लाख पेड़ काटे जा सकते हैं। यह एक निराशाजनक आँकड़ा है, लेकिन यह एक बड़ा कम अनुमान भी हो सकता है, क्योंकि स्वतंत्र अनुमानों ने सुझाव दिया है कि अंततः 32 लाख से 58 लाख तक पेड़ काटे जा सकते हैं।

सोनिया गांधी के सवालों पर भाजपा ने क्या कहा?

सोनिया गांधी के उठाए इन सवालों पर भाजपा प्रवक्ता अनिल के एंटनी ने पलटवार किया। उन्होंने कांग्रेस पर भारत के रणनीतिक हितों को कमजोर करने का आरोप लगाया।

एंटनी ने याद दिलाया कि ग्रेट निकोबार में रणनीतिक बुनियादी ढाँचे का विकास यूपीए सरकार के समय में ही शुरू हुआ था। उन्होंने बताया कि आईएनएस बाज नौसैनिक हवाई स्टेशन को 31 जुलाई, 2012 को कैंपबेल बे में कमीशन किया गया था, जब सोनिया गांधी यूपीए की अध्यक्ष थीं।

अनिल एंटनी ने सवाल किया कि एक दशक बाद, आप, आपका परिवार और आपकी पार्टी किस आधार पर और किसकी ओर से, राष्ट्रीय सुरक्षा के ऐसे महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट को अब एक दुस्साहस मान रहे हैं?

वहीं, असम सरकार के मंत्री अशोक सिंघल ने भी कहा कि कांग्रेस का राष्ट्रीय महत्व के प्रोजेक्ट्स का विरोध करने का इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस किसी प्रोजेक्ट का विरोध करती है, तो देश को निश्चिंत रहना चाहिए कि वह प्रोजेक्ट देश के हित में है।

अनिल शर्मा
अनिल शर्माhttp://bolebharat.in
दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में उच्च शिक्षा। 2015 में 'लाइव इंडिया' से इस पेशे में कदम रखा। इसके बाद जनसत्ता और लोकमत जैसे मीडिया संस्थानों में काम करने का अवसर मिला। अब 'बोले भारत' के साथ सफर जारी है...
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