मद्रास हाई कोर्ट ने कहा है कि श्रद्धालुओं द्वारा दान किया गया मंदिर का धन केवल मंदिर का है और इसका किसी अन्य काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कि इस तरह के धन का उपयोग केवल धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए ही किया जाना चाहिए। इसके साथ ही मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ के जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और जी अरुल मुरुगन की पीठ ने 2023 और 2025 के बीच तमिलनाडु सरकार द्वारा जारी किए गए पांच सरकारी आदेशों (जीओ) को भी रद्द कर दिया। इसमें मंदिर के धन का इस्तेमाल करके मैरिज हॉल के निर्माण की अनुमति दी गई थी।
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इसी सप्ताह की शुरुआत में पारित एक आदेश में पीठ ने कहा कि तमिलनाडु सरकार मंदिर के संसाधनों का उपयोग केवल मंदिरों के रखरखाव और विकास तथा उससे जुड़ी धार्मिक गतिविधियों के लिए करने के लिए बाध्य है।
कोर्ट ने फैसले में क्या कुछ कहा?
कोर्ट ने फैसले में कहा कि हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती (HR&CE) अधिनियम, 1959 मंदिर के धन को केवल धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों जैसे ‘पूजा, अन्नदान, तीर्थयात्री कल्याण और गरीबों की सहायता’ पर खर्च करने की अनुमति देता है, न कि राजस्व को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों के लिए।
कोर्ट ने कहा, ‘मंदिर के लिए फंड भक्तों, दानदाताओं द्वारा दिए गए दान और देवता/मंदिर को दान की गई अचल संपत्तियों से केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए, या मंदिरों में मंदिर उत्सव मनाने के लिए, या मंदिर के रखरखाव और विकास में उपयोग करने के लिए एकत्रित की जाती है। इस प्रकार मंदिर के फंड को सार्वजनिक निधि या सरकारी निधि नहीं माना जा सकता। मंदिर निधि हिंदू धार्मिक लोगों द्वारा मंदिरों, देवताओं, या हिंदू धार्मिक रीति-रिवाजों, प्रथाओं या विचारधाराओं आदि के साथ उनके भावनात्मक या आध्यात्मिक लगाव के कारण दिया गया योगदान है।’
कोर्ट ने यह आदेश राम रविकुमार द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया। याचिका में तमिलनाडु सरकार के आदेशों को चुनौती देते हुए दावा किया गया था कि राज्य के पास मंदिर के धन को विवाह हॉल के निर्माण सहित वाणिज्यिक उपक्रमों के लिए उपयोग करने का कोई अधिकार नहीं है। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि विवाह हॉल को धार्मिक उद्देश्यों के लिए निर्माण के रूप में वर्गीकृत नहीं किया जा सकता क्योंकि उन्हें किराए पर दिया जाता है।
तमिलनाडु सरकार ने क्या दलीलें रखी थी?
मामले में तमिलनाडु सरकार की ओर से एडिशनल एडवोकेट वीरा कथिरावन ने तर्क दिया कि मंदिर के धन का उपयोग मानव संसाधन एवं सामाजिक न्याय अधिनियम की धारा 36-ए और 36-बी के तहत निर्माण के लिए किया जा सकता है। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि वर्तमान मामले में प्रस्तावित निर्माण कार्य दरअसल हिंदू धार्मिक प्रवृति के लोगों के लिए था। सरकार ने अदालत को बताया कि अभी तक कोई धनराशि जारी नहीं की गई है और सभी प्रस्तावित निर्माण कार्यों के लिए आवश्यक अनुमति प्राप्त की जाएगी।
हालाँकि, हाई कोर्ट ने राज्य के इस तर्क को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह को एक संस्कार माना जाता है, लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत इसमें करारनामे के तत्व भी शामिल हैं। इसलिए, हिंदू विवाह अपने आप में मानव संसाधन एवं सामाजिक न्याय अधिनियम के तहत एक ‘धार्मिक उद्देश्य’ नहीं है।
अदालत ने आगाह किया कि मंदिर के धन को स्पष्ट रूप से अनुमत उद्देश्यों के अलावा अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करने की अनुमति देने के प्रावधान का दायरा बढ़ाने से दुरुपयोग और गबन का रास्ता भी खुल सकता है। ऐसे में यह और हिंदू श्रद्धालुओं के धार्मिक अधिकारों का भी उल्लंघन होगा, जो आस्था के साथ मंदिरों में दान करते हैं।