Friday, October 10, 2025
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इतनी जल्दीबाजी क्यों थी?, सु्प्रीम कोर्ट ने एमसीडी स्थायी समिति चुनाव मामले में दिल्ली एलजी को लगाई फटकार

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना द्वारा एमसीडी स्थायी समिति के छठे सदस्य के चुनाव में हस्तक्षेप करने पर फटकार लगाई। दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने चुनाव प्रक्रिया को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसमें उन्हें बाहर रखा गया था। अदालत ने उपराज्यपाल के कदम को लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करार देते हुए पूछा कि धारा 487 का इस्तेमाल विधायी कार्यों में हस्तक्षेप के लिए कैसे किया जा सकता है?”

सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल से पूछा कि वह इस प्रकार की शक्ति का प्रयोग कैसे कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि उपराज्यपाल का यह कदम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप है, क्योंकि धारा 487 एक कार्यकारी शक्ति है। अदालत ने कहा, “यह विधायी कार्यों में हस्तक्षेप के लिए नहीं है। यह सदस्य के चुनाव का मामला है। यदि आप इस प्रकार हस्तक्षेप करते रहेंगे, तो लोकतंत्र का क्या होगा?”

न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने मामले की सुनवाई की और 14 दिनों के भीतर जवाब मांगा है। दो सप्ताह बाद अगली सुनवाई निर्धारित की है। दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से अधिवक्ता संजय जैन ने अदालत में पैरवी की।

आम आदमी पार्टी का क्या है आरोप?

दिल्ली की मेयर शैली ओबेरॉय ने 27 सितंबर को हुए एमसीडी स्थायी समिति के छठे सदस्य के चुनाव को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इस चुनाव में भाजपा की जीत हुई थी, जबकि आम आदमी पार्टी (आप) ने यह कहते हुए चुनाव का बहिष्कार किया था कि चुनाव प्रक्रिया दिल्ली नगर निगम अधिनियम के विपरीत है। मेयर की याचिका में मुख्य आपत्ति यह थी कि चुनाव में मेयर के बजाय एक भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी को अध्यक्ष बनाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- इतनी जल्दबाजी क्या थी?

सुप्रीम कोर्ट ने उपराज्यपाल के इस निर्णय पर भी सवाल उठाया कि शैली ओबेरॉय की अनुपस्थिति में चुनाव करवाने की जल्दबाजी क्यों थी। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि धारा 487 का उपयोग विधायी कार्यों में हस्तक्षेप के लिए नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा, ”धारा 487 के तहत चुनाव में बाधा डालने का अधिकार आपको कहां से मिला, खासकर जब स्थायी समिति के सदस्य का चुनाव हो? आपको इतनी जल्दी क्या थी कि आप दो दिन में ही चुनाव कराना चाहते थे? अगर आप इस तरह से दखल अंदाजी करते रहेंगे तो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का क्या होगा? यह एक कार्यकारी शक्ति है और इसका उपयोग विधायी कार्यों में बाधा डालने के लिए नहीं होना चाहिए।”

बता दें कि एमसीडी स्थायी समिति निगम की सबसे पावरफुल बॉडी है। एमसीडी की ओर सभी अहम परियोजनाओं का प्रस्ताव स्थायी समिति  ही करती है। एमसीडी स्टैंडिंग कमेटी में कुल 18 सदस्य होते हैं, जिसमें से 17 सदस्य चुन लिए गए हैं। इनमें से भाजपा के 9 और आम आदमी पार्टी के 8 सदस्य हैं।

पूरा मामला क्या है?

एमसीडी स्टैंडिंग कमेटी के अंतिम सदस्य का चुनाव 26 सितंबर को होना था। लेकिन, चुनाव से ठीक पहले भाजपा ने आम आदमी पार्टी के तीन पार्षदों को अपने पाले में कर लिया और कांग्रेस के 9 एमसीडी पार्षदों ने चुनाव में भाग न लेने का फैसला लिया। इसके बाद आम आदमी पार्टी संख्या बल के लिहाज से कमजोर दिखाई दे रही थी। इसके बाद मेयर ने चुनाव को पांच अक्टूबर तक के लिए टाल दिया था। लेकिन उपराज्यपाल ने  शुक्रवार (27 सितंबर ) को ही चुनाव कराने का फैसला किया।

27 सितंबर को हुए मतदान में भाजपा उम्मीदवार सुंदर सिंह को पार्टी के सभी 115 पार्षदों का समर्थन मिला, जबकि आप की उम्मीदवार निर्मला कुमारी को एक भी वोट नहीं मिला। इसकी वजह यह थी कि कांग्रेस और आप ने इस चुनाव का बहिष्कार किया था और इसमें हिस्सा नहीं लिया।

इस जीत के बाद 18 सदस्यीय एमसीडी स्थायी समिति में भाजपा के सदस्यों की संख्या 10 हो गई है, जबकि आम आदमी पार्टी  के पास केवल 8 सदस्य बचे हैं। जिस सीट के लिए यह चुनाव हुआ था, वह भाजपा नेता कमलजीत सहरावत के पश्चिमी दिल्ली से सांसद चुने जाने के बाद खाली हुई थी। इस मामले में एमसीडी मेयर शैली ओबेरॉय ने 1 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

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