Friday, October 10, 2025
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चीन के लिए जासूसी करने के आरोपी पत्रकार की जमानत रद्द करने की अपील सुप्रीम कोर्ट ने की खारिज

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार राजीव शर्मा को दी गई जमानत को चुनौती देने वाली दिल्ली पुलिस की अपील को खारिज कर दिया है। राजीव शर्मा को चीनी खुफिया एजेंसी के लिए जासूसी करने और राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित गुप्त दस्तावेजों को अपने पास रखने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 4 अप्रैल को जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और पी बी वराले की पीठ ने शर्मा को दी गई डिफॉल्ट जमानत को रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। साथ ही मुकदमे में तेजी लाने का निर्देश दिया।

दिल्ली हाई कोर्ट ने 4 दिसंबर, 2020 को राजीव शर्मा को जमानत दी थी, क्योंकि पुलिस उनकी गिरफ्तारी के 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करने में नाकाम रही थी। उन्हें 14 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था और उन पर आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत आरोप लगाए गए थे।
दिल्ली पुलिस ने जमानत को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी।

राजीव शर्मा पर क्या आरोप हैं?

अभियोजन पक्ष के अनुसार उनके घर की तलाशी के दौरान भारतीय रक्षा विभाग से संबंधित कुछ संवेदनशील/गोपनीय दस्तावेज बरामद किए गए थे। पुलिस ने कहा कि आगे की जांच से पता चला कि शर्मा ने गुप्त/संवेदनशील दस्तावेज/महत्वपूर्ण जानकारी हासिल की और उन्हें चीनी खुफिया अधिकारियों को बताया। आरोप के अनुसार इसके बदले में उन्हें महिपालपुर, दिल्ली में चीनी नागरिकों द्वारा संचालित शेल कंपनियों के जरिए हवाला के माध्यम से पैसे मिल रहे थे। 

पुलिस के अनुसार राजीव शर्मा ईमेल और टेलीग्राम, व्हाट्सएप जैसे प्लेटफार्मों के माध्यम से चीनी अधिकारियों माइकल, शू और जॉर्ज के संपर्क में थे। पुलिस ने कहा कि एक अनुरोध पर सैन्य खुफिया महानिदेशक (DGMI) ने पुष्टि की है कि शर्मा से बरामद दस्तावेज गोपनीय थे। पुलिस के अनुसार DGMI ने बताया कि जब्त सामग्री प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा मामलों से जुड़ी थी और इसके अनधिकृत तरीके से खुलासा करने पर राष्ट्रीय सुरक्षा को नुकसान, राष्ट्रीय हितों को नुकसान या फिर सरकार को अपने कामकाज में शर्मिंदगी उठानी पड़ सकती है।

नवंबर-2020 में ट्रायल कोर्ट पहुंचे थे राजीव शर्मा

गिरफ्तारी के बाद राजीव शर्मा ने नवंबर 2020 में डिफॉल्ट जमानत की मांग करते हुए ट्रायल कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उनकी दलील थी कि पुलिस ने मामले में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं की है। हालांकि अदालत ने यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि 60 दिन की अवधि समाप्त नहीं हुई है। इसके बाद उन्होंने पटियाला हाउस कोर्ट का रुख किया, जहाँ ड्यूटी मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने भी इसे खारिज करते हुए कहा कि अपराध में चार्जशीट दाखिल करने की अवधि 90 दिन होगी। 

बाद में शर्मा ने हाईकोर्ट का रुख किया था। राजीव शर्मा ने राकेश कुमार पॉल बनाम असम राज्य केस में 2017 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया जिसमें चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा – 60 दिन या 90 दिन – के बारे में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 167 की व्याख्या करते हुए डिफॉल्ट जमानत के मुद्दे की बात कही गई थी।

धारा 167(2)(ए) सीआरपीसी के अनुसार मजिस्ट्रेट को अगर लगता है कि पर्याप्त आधार मौजूद है तो वह आरोपी को 15 दिन की पुलिस हिरासत से और अधिक दिन तक रखने की भी इजाजत दे सकता है। हालांकि, कोई भी मजिस्ट्रेट इस अनुच्छेद के तहत आरोपी व्यक्ति को 90 दिनों से अधिक की हिरासत नहीं दे सकता अगर जांच मृत्युदंड, आजीवन कारावास या कम से कम 10 साल की अवधि के कारावास जैसे दंडनीय अपराध से संबंधित है। किसी और अपराध से संबंधित मामलों में 60 दिनों से अधिक की हिरासत नहीं दी जा सकती।

जमानत पर सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट राज्य के इस तर्क से सहमत नहीं नजर आया कि मामले में आरोपपत्र दाखिल करने के लिए उसके पास 90 दिन थे। कोर्ट ने कहा कि इसे 60 दिनों में दाखिल किया जाना था। ऐसे में हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को खारिज कर दिया और राजीव शर्मा को डिफॉल्ट जमानत दे दी।

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