नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बीते दिनों अभिनेता से नेता बने विजय के रोड शो के दौरान करूर में हुई भगदड़ के लिए सीबीआई जांच कराने का निर्देश दिया है। विजय की पार्टी टीवीके (तमिलगा वेत्री कझगम) की रैली के दौरान 41 लोगों की मौत हो गई थी और 60 से अधिक लोग घायल हुए थे।
जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस एनवी अंजारिया की पीठ ने करूर भगदड़ जांच की निगरानी के लिए तीन सदस्यीय समिति का भी गठन किया है। इस समिति की अध्यक्षता रिटायर्ड जस्टिस अजय रस्तोगी करेंगे। समिति में तमिलनाडु कैडर के दो आईपीएस अधिकारी भी शामिल होंगे। ये अधिकारी राज्य के मूल अधिकारी नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने करूर भगदड़ मामले में सुनवाई के दौरान क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान कहा कि “निष्पक्ष जाँच हर नागरिक का अधिकार है।” पीठ ने यह आदेश कई याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुनाया। टीवीके के महासचिव (चुनाव रणनीति) के आधव अर्जुन ने भी याचिका दायर की थी। उन्होंने अपनी याचिका में इसकी जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने के मद्रास उच्च न्यायालय के आदेश को रद्द करने की भी मांग की थी।
अदालत ने करूर भगदड़ मामले में शु्क्रवार को हुई सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। वहीं, अन्य याचिकाकर्ताओं में एमुर पुथर के पी. सेल्वराज और अलमराथुपट्टी के पी. पन्नीरसेल्वम की भी याचिकाएं थीं। सेल्वराज ने भगदड़ में अपनी पत्नी और पन्नीरसेल्वम ने नौ वर्षीय बेटे को खो दिया था। इसके अलावा तमिलनाडु भाजपा के कानूनी प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष जी. एस मणि ने भी याचिका दायर की थी।
शुक्रवार को करूर भगदड़ मामले में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टीवीके में करूर रोड शो आयोजित करने की अनुमति देने प राज्य सरकार से सवाल किया। उन्होंने कहा कि एआईएडीएमके को भी इसी तरह की अनुमति देने से इस बात को आधार बनाकार इंकार किया गया था कि राज्य अभी भी राजनीतिक सभाओं के लिए मानक संचालन प्रक्रियाओं (एसओपी) को अंतिम रूप दे रहा है। अदालत ने कहा कि एसओपी से जुड़ी चिंताओं का समाधान करने के बजाय मद्रास उच्च न्यायलय ने एसआईटी का गठन किया है।
अदालत में क्या आरोप लगाए गए?
अदालत में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से एक ने दलील दी कि सरकार ने शवों का पोस्टमार्टम आधी रात को कराया और उनका अंतिम संस्कार सुबह चार बजे किया गया। इस पर तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ वकील पी विल्सन ने कहा कि यह पहली बार है जब पोस्टमार्टम के संबंध में इस तरह के आरोप लगाए गए हैं। उन्होंने कहा कि राज्य इस संबंध में एक विस्तृत हलफनामा दाखिल करेगा।
विल्सन ने कहा, “हमारे मुख्यमंत्री करूर गए और लोगों ने शवों के लिए गुहार लगानी शुरू कर दी जिसके बाद कलेक्टर ने अनुमति दे दी। पोस्टमॉर्टम के लिए आसपास के जिलों से डॉक्टरों को बुलाया गया।”
विल्सन ने आगे कहा “हमारे स्वास्थ्य सचिव ने स्पष्ट किया था कि सम्मेलन में भाग लेने वाले 220 डॉक्टर, 165 नर्सें और अन्य डॉक्टरों को जुटाया गया था।” इस पर न्यायमूर्ति माहेश्वरी ने पूछा कि क्या वे फोरेंसिक विशेषज्ञ थे।
टीवीके द्वारा दायर की गई याचिका में मद्रास उच्च न्यायालय की उन टिप्पणियों को भी चुनौती दी गई थी जिनमें यह भी कहा गया था कि अभिनेता और टीवीके प्रमुख विजय के नेतृत्व वाला पार्टी नेतृत्व घटनास्थल से भाग गया था और उसने जिम्मेदारी नहीं ली थी। याचिका में उच्च न्यायालय की इस टिप्पणी पर भी आपत्ति जताई गई थी कि टीवीके नेतृत्व की ओर से “जिम्मेदारी का कोई बयान या अभिव्यक्ति नहीं दी गई”। टीवीके के वकील ने तर्क दिया कि नेतृत्व को पीड़ितों और उनके परिवारों की सहायता करने का अवसर नहीं दिया गया।
एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता वी.राघवचारी ने आरोप लगाया कि यह भगदड़ स्वतः स्फूर्त नहीं थी। उन्होंने दावा किया कि कुछ डीएमके सदस्यों ने उस दिन दोपहर 3 बजे से ही किसी त्रासदी की भविष्यवाणी कर दी थी।
उन्होंने आगे आरोप लगाए कि पुलिस ने एक उपद्रवी को भीड़ पर जूता फेंकने दिया जिससे हंगामा शुरू हो गया। राघवचारी ने राज्य सरकार द्वारा टीवीके को उस स्थान पर सड़क रैली की अनुमति देने के फैसले पर भी सवाल उठाया जहां एआईएडीएमके को इसके लिए अनुमति नहीं दी गई थी। उन्होंने पुलिस को पूरी तरह से दोषी करार दिया।