नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 9 अक्टूबर को बच्चों को यौन शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) नौवीं कक्षा से पहले ही शुरू करने का समर्थन किया है। मौजूदा समय में यह नौंवी कक्षा से शुरू होता है।
जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस आलोक अराधे की पीठ ने कम उम्र से ही सेक्स एजुकेशन की आवश्यकता पर बल दिया और अधिकारियों से सुधारात्मक उपाय करने का आग्रह किया ताकि बच्चों को उचित रूप से सूचित या संवेदनशील बनाया जा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान क्या कहा?
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा “हमारी राय है कि बच्चों को यौन शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) कम उम्र से ही देनी चाहिए न कि नौवीं कक्षा से। संबंधित अधिकारियों को इस पर विचार करना चाहिए और सुधारात्मक कदम उठाने चाहिए ताकि बच्चों को यौवन के बाद होने वाले बदलावों और उनसे जुड़ी सावधानियों के बारे में जानकारी मिल सके।”
अदालत की यह टिप्पणी एक 15 वर्षीय लड़के की अपील को स्वीकारते हुए आई है। इस बच्चे पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा- 376 (रेप) और धारा- 506 (आपराधिक धमकी) तथा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (Pocso Act) की धारा – 6 (गंभीर यौन उत्पीड़न) के तहत अपराध का आरोप है।
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इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बीते साल अगस्त 2024 में अपीलकर्ता किशोर को जमानत देने से इंकार कर दिया था। इसके बाद उसने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2025 में उसे जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड द्वारा निर्धारित नियमों और शर्तों के अधीन उसे जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया था। यह निर्देश इस बात पर गौर करने के बाद दिया गया था कि अभियुक्त स्वयं नाबालिग है।
उत्तर प्रदेश से हलफनामा प्रस्तुत करने को कहा
अदालत ने इसके साथ ही उत्तर प्रदेश राज्य को एक हलफनामा भी प्रस्तुत करने को कहा जिसमें यह बताया गया हो कि किशोरों को यौन और उससे संबंधित विषयों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में यौन शिक्षा कैसे लागू की जा रही है?
उत्तर प्रदेश द्वारा इस बाबत एक हलफनामा प्रस्तुत किया गया जिसमें राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) के निर्देशों के अनुरूप कक्षा 9 से 12 के लिए माध्यमिक शिक्षा विभाग द्वारा तैयार किए गए पाठ्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की गई।
इस दौरान पीठ ने यह भी कहा कि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने के लिए सुधारात्मक उपाय करने चाहिए किशोरावस्था के दौरान बच्चों में होने वाले परिवर्तनों के बारे में जानकारी दी जाए। इसके साथ ही इस संबंध में आवश्यक देखभाल और सावधानी भी बरती जाएं।
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सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और पूर्व में अपने द्वारा जारी किए गए जमानत आदेश को स्थायी कर दिया। यह जमानत आदेश मुकदमे की समाप्ति तक लागू रहेगा।
अदालत ने सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया कि उसकी टिप्पणियां सिर्फ जमानत तक ही सीमित हैं न कि मामले के गुण-दोष पर। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता वी.एन रघुपति ने पक्ष रखा जबकि प्रतिवादी की तरफ से अधिवक्ता अभिषेक साकेत, सुदीप कुमार, मनीषा, रुपाली और घनश्याम सिंह ने पक्ष रखा।