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निष्कासित IPS अधिकारी संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, जमानत देने से इनकार

नई दिल्ली: बर्खास्त  पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है। दरअसल, मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने 1990 के कस्टोडियल डेथ केस में अपनी आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने की मांग की थी।जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि वह सजा को निलंबित करने और संजीव भट्ट को जमानत पर रिहा करने के पक्ष में नहीं है। हालांकि, पीठ ने निर्देश दिया कि भट्ट द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील पर प्राथमिकता के आधार पर सुनवाई की जाएगी।

दरअसल, गुजरात के आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट ने 1990 के हिरासत में हुई मौत के मामले में उन्हें दी गई आजीवन कारावास की सजा को निलंबित करने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम संजीव भट्ट को जमानत देने के पक्ष में नहीं हैं और इसलिए उनकी जमानत की प्रार्थना खारिज की जाती है। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस वजह से अपील की सुनवाई पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपील की सुनवाई में तेजी लाने के लिए भी कहा।

ड्रग जब्ती मामले में 20 साल की सजा

बता दें कि बीते महीनें गुजरात की एक अदालत ने पूर्व आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को ड्रग्स के एक मामले में 20 साल की कैद और दो लाख रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई। पालनपुर की एडिशनल एंड सेशन कोर्ट ने पूर्व आईपीएस अधिकारी को ड्रग्स के एक मामले में 11 अलग-अलग धाराओं के तहत सजा सुनाई। अदालत ने 20 साल की कैद के अलावा दो लाख रुपए का अर्थ दंड भी लगाया है। साथ ही दंड न भरने पर एक साल की अतिरिक्त कैद होगी। हालांकि, कोर्ट के फैसले के बाद संजीव भट्ट के वकील ने कहा कि यह फैसले पहले से ही अपेक्षित था। उन्होंने कहा कि जज और सरकारी वकील खुलेआम कोर्ट रूम में साथ बैठते हैं। ऐसे में उनसे और क्या उम्मीद की जा सकती है। उन्होंने कहा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी “सिर्फ सच्चाई के लिए लड़ रहे हैं”।

कौन है संजीव भट्ट?

गौरतलब है कि संजीव भट्ट नरेंद्र मोदी सरकार की मुखर आलोचना के लिए जाने जाते हैं। आईपीएस से बर्खास्तगी से पहले, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें 2002 के गुजरात दंगों में तत्कालीन मोदी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार की मिलीभगत का आरोप लगाया गया था। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 2015 में सेवा से उनकी बर्खास्तगी ड्यूटी से अनधिकृत अनुपस्थिति के आधार पर की गई थी।

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