नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने जामनगर स्थित रिलायंस फाउंडेशन की वनतारा वाइल्ड लाइफ रेस्क्यू एंड रिहैबिलिटेशन सेंटर को क्लीन चिट दे दी है। अदालत ने कहा कि अगर तय प्रक्रिया का पालन किया जाए तो मंदिरों से हाथियों का स्थानांतरण रिलायंस फाउंडेशन की वंतारा परियोजना को सौंपने में कोई आपत्ति नहीं है। एसआईटी को यह जांचने का काम सौंपा गया था कि भारत और विदेश से, खासकर हाथियों के अधिग्रहण में, सभी कानूनों का पालन हुआ या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने इस वन्यजीव सुविधा केंद्र को हाथियों के हस्तांतरण को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अपनी रिपोर्ट जमा कर दी है। इस रिपोर्ट के अनुसार, ‘वनतारा’ ने सभी कानूनी और नियामक मानदंडों का पालन किया है।
कोर्ट ने कहा, अगर वनतारा वन विभाग से हाथी लेता है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है, जब तक प्रक्रिया का पालन किया जाता है। हमारे द्वारा गठित एसआईटी ने बताया है कि अधिकारियों ने अनुपालन और नियामक उपायों के मुद्दों पर संतोष व्यक्त किया है।
‘वनतारा’ की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कोर्ट को बताया कि जिन देशों में जानवरों के शिकार की अनुमति है, वही देश भारत द्वारा ‘कुछ अच्छा करने’ पर आपत्ति उठा रहे हैं।
साल्वे ने दलील दी, “जब समिति आई तो पूरा स्टाफ उपलब्ध कराया गया, सब कुछ दिखाया गया। लेकिन यह दुनिया की अनोखी सुविधा है, जिसमें विशेषज्ञों की मदद से भारी निवेश किया गया है। अगर पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक हुई तो अंतरराष्ट्रीय मीडिया इसमें नकारात्मक कथाएं गढ़ सकता है।”
इस पर जस्टिस मित्तल ने कहा, “हम ऐसा होने नहीं देंगे। हम रिपोर्ट स्वीकार कर रहे हैं और मामला यहीं बंद कर रहे हैं। समिति स्वतंत्र थी, उसने विशेषज्ञों की मदद से जांच की और अपनी सिफारिशें दीं। अब सभी संबंधित प्राधिकरण उनकी सिफारिशों पर कार्रवाई कर सकते हैं। बार-बार आपत्ति उठाने की अनुमति नहीं दी जाएगी।”
जब एक वकील ने मंदिर से हाथी ले जाने से जुड़े मुद्दे का ज़िक्र करने की कोशिश की, तो अदालत ने इसे खारिज कर दिया। जस्टिस मित्तल ने कहा कि अब जबकि स्वतंत्र समिति ने किसी गड़बड़ी की बात नहीं पाई, तो अनावश्यक आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, “देखिए, कुछ बातें देश के गौरव से जुड़ी होती हैं। हमें इन्हें लेकर बेवजह हंगामा नहीं करना चाहिए। अगर हाथियों का अधिग्रहण कानून के तहत हुआ है, तो इसमें दिक्कत क्या है? आप अपने मंदिर में हाथी रखते हैं, दशहरे या शोभायात्राओं में उनका इस्तेमाल करते हैं। मैसूर में भी यही होता है। इसलिए, जब तक कानून का पालन हो रहा है, इसमें कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।”
एसआईटी का गठन क्यों किया गया था?
सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त को ‘वनतारा’ के खिलाफ तथ्यात्मक जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश दिया था। एसआईटी को जानवरों, खासकर हाथियों के अवैध अधिग्रहण, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम और अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुपालन, पशु चिकित्सा और कल्याण मानकों, सुविधा की पर्यावरणीय उपयुक्तता और वित्तीय पारदर्शिता की जांच का काम सौंपा गया था।
यह कदम मीडिया और सोशल मीडिया में सामने आई रिपोर्टों तथा गैर-सरकारी और वन्यजीव संगठनों से मिली शिकायतों के आधार पर उठाया गया था। आरोप था कि कानूनों का पालन नहीं किया गया और जानवरों, खासकर हाथियों का अधिग्रहण नियमों के विपरीत किया गया।
तीन दिवसीय दौरे के बाद एसआईटी ने अपनी रिपोर्ट तैयार कर 12 सितंबर को शीर्ष अदालत में सौंपी, जिसे 15 सितंबर को अदालत में पढ़ा गया। पीठ ने कहा कि उन्होंने जानबूझकर एसआईटी की रिपोर्ट को पहले नहीं पढ़ा था, ताकि सुनवाई के दौरान ही उसका अध्ययन किया जा सके। सुनवाई में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे (वनतारा की ओर से) और याचिकाकर्ता के वकील मौजूद थे।
जांच के दौरान एसआईटी ने विभिन्न राज्यों के वन विभागों के वरिष्ठ अधिकारियों और कई अन्य एजेंसियों से भी बातचीत की। ‘वनतारा’ के नेतृत्व दल के वरिष्ठ सदस्यों से लंबी पूछताछ की गई।
इस बीच, ‘वनतारा’ की ओर से जारी बयान में एक अधिकारी ने कहा कि हम माननीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को अत्यंत सम्मान के साथ स्वीकार करते हैं। ‘वनतारा’ पारदर्शिता, करुणा और कानून के पूर्ण अनुपालन के लिए प्रतिबद्ध है।